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    भारत में पॉक्सो मामलों में पहली बार बड़ा मोड़, दर्ज से ज़्यादा मामलों का निपटारा न्याय व्यवस्था ने तोड़ी “तारीख पर तारीख” वाली छवि

    भारत में पॉक्सो मामलों में पहली बार बड़ा मोड़



    We News 24 : डिजिटल डेस्क »✍️रिपोर्ट: रवि शुक्ला | वी न्यूज 24 | नई दिल्ली


    नई दिल्ली। देश में वर्षों से “तारीख पर तारीख” और लंबित मुकदमों को लेकर बदनाम रही न्याय व्यवस्था में पहली बार पॉक्सो कानून के तहत एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है। साल 2025 में भारत ने बच्चों के यौन शोषण से जुड़े जितने मामले दर्ज किए, उससे ज़्यादा मामलों का निपटारा अदालतों ने कर दिया।


    एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2025 में पॉक्सो के 80,320 नए मामले दर्ज हुए, जबकि 87,754 मामलों का फैसला सुनाया गया। यानी देश की निपटान दर 109 प्रतिशत तक पहुंच गई। आसान भाषा में कहें तो अब अदालतें सिर्फ नए केस नहीं निपटा रहीं, बल्कि पुराने बोझ को भी हल्का कर रही हैं।



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    24 राज्यों में रिकॉर्ड निपटान, कई जगह 100% से ऊपर

    रिपोर्ट के अनुसार देश के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पॉक्सो मामलों की निपटान दर 100 प्रतिशत से अधिक रही। इनमें से सात राज्यों में यह दर 150 प्रतिशत से भी ऊपर पहुंच गई। इसका मतलब यह है कि वहां सालों से अटके पुराने केस भी तेजी से निपटाए जा रहे हैं।


    चार साल में खत्म हो सकता है लंबित बोझ, लेकिन शर्तें हैं

    यह अध्ययन इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की पहल पर सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रेन (C-LAB) ने तैयार किया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अगर सरकार 600 अतिरिक्त ई-पॉक्सो अदालतें स्थापित कर दे, तो चार साल के भीतर सभी लंबित मामले खत्म किए जा सकते हैं।

    इसके लिए करीब 1,977 करोड़ रुपये की जरूरत बताई गई है, जिसमें निर्भया फंड के इस्तेमाल की भी सिफारिश की गई है।


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    यूपी, महाराष्ट्र और बंगाल पर सबसे ज्यादा बोझ

    हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी उतना ही गंभीर है।

    रिपोर्ट बताती है कि पांच साल से ज्यादा पुराने लंबित मामलों में:

    उत्तर प्रदेश अकेले 37% मामलों के साथ सबसे आगे है

    महाराष्ट्र 24%

    पश्चिम बंगाल 11%

    यानि देश के करीब तीन-चौथाई सबसे पुराने पॉक्सो मामले सिर्फ इन तीन राज्यों में अटके हुए हैं।

    “देरी सिर्फ आंकड़ा नहीं, बच्चे का दर्द बढ़ाती है”


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    इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के निदेशक (शोध) पुरुजीत प्रहराज कहते हैं—

    “जब अदालतें दर्ज मामलों से ज्यादा पॉक्सो केस निपटाने लगती हैं, तो यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा नहीं होता। यह उस भरोसे की वापसी होती है, जो बच्चों और उनके परिवारों ने सिस्टम पर खो दिया था। न्याय में हर दिन की देरी बच्चे के मानसिक घाव को और गहरा करती है।”


    अब आगे क्या ज़रूरी है?

    रिपोर्ट में साफ सुझाव दिए गए हैं कि—

    हर राज्य को हर साल 100% से ज्यादा निपटान दर बनाए रखनी होगी

    कमजोर राज्यों को तकनीकी और प्रशासनिक मदद दी जाए

    दोषसिद्धि और बरी होने की दरों की नियमित निगरानी हो

    आधारित कानूनी रिसर्च और डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट सिस्टम अपनाए जाएं, ताकि केस फाइलें धूल न खाएं और सुनवाई तेज हो


    आंकड़े कहां से आए?

    यह अध्ययन 2 दिसंबर 2025 तक उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है, जो

    नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG),

    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)

    और लोकसभा में पूछे गए सवालों से जुटाए गए हैं।


    पॉक्सो जैसे संवेदनशील कानून में यह बदलाव उम्मीद जगाने वाला है, लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। अदालतों की रफ्तार बनी रही, तभी देश के बच्चे सही मायनों में सुरक्षित और न्यायपूर्ण भविष्य की ओर बढ़ पाएंगे। 

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