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    महामंडलेश्वर का पद क्यों रहता है विवादों में ? आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास


    महामंडलेश्वर का पद क्यों रहता है विवादों में ? आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम






    We News 24 Hindi / दीपक कुमार 


    नई दिल्ली:- यह समाचार महामंडलेश्वर पद से जुड़े विवादों और इस पद की गरिमा को लेकर उठे सवालों को उजागर करता है। ममता कुलकर्णी, सचिन दत्ता, स्वामी नित्यानंद और राधे माँ जैसे उदाहरणों से स्पष्ट है कि महामंडलेश्वर पदवी को लेकर कई बार विवाद उठते रहे हैं। यह पदवी धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ त्याग और वैराग्य का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन कुछ मामलों में इसकी गंभीरता और पवित्रता पर सवाल उठे हैं।


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    महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में कड़ी जांच और नियमों का पालन अनिवार्य होता है, लेकिन कई बार इन नियमों की अनदेखी करके या पैसे और प्रभाव के दम पर यह पदवी दिए जाने के आरोप लगते रहे हैं। इससे अखाड़ों और धार्मिक संस्थानों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।


    इस तरह के विवादों से बचने के लिए यह जरूरी है कि महामंडलेश्वर पदवी देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों का सख्ती से पालन किया जाए। साथ ही, जो लोग इस पद को धारण करते हैं, उन्हें अपने जीवन में त्याग और वैराग्य का उच्च मानक स्थापित करना चाहिए।


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    धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों को समाज में विश्वास बनाए रखने के लिए ऐसे विवादों से बचना होगा और पदवियों की गरिमा को बनाए रखना होगा। इसके लिए जरूरी है कि अखाड़े और संबंधित संस्थान अपने नियमों को और सख्त बनाएं और किसी भी तरह की अनियमितता पर कड़ी कार्रवाई करें।



    ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनते ही वह विवादों के घेरे में आ गईं। बाबा रामदेव और बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री ने ममता कुलकर्णी का विरोध किया था। ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने के सात दिन के भीतर ही उनसे उनका पद छीन लिया गया। महामंडलेश्वर का पद छीने जाने की यह पहली घटना नहीं है। महामंडलेश्वर का पद पहले भी विवादों में रहा है।


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    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास

    प्रयागराज में अखाड़ा परिषद ने बिल्डर बीयर बार के मालिक सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाकर विवाद खड़ा कर दिया था। आरोप लगे थे कि सचिन दत्ता को पैसे के बल पर महामंडलेश्वर का पद दिया गया। विवाद बढ़ने पर निरंजनी अखाड़े के सचिव नरेंद्र गिरि ने कहा कि मामले की जांच कराई जाएगी और अगर सचिन व्यापारिक गतिविधियों में संलिप्त पाए गए तो उनकी महामंडलेश्वर की उपाधि वापस ले ली जाएगी। जांच में पाया गया कि सचिन दत्ता  का कारोबार  खरीद-फरोख्त का था, इसलिए उन्हें महामंडलेश्वर बनाने का फैसला वापस ले लिया गया। निरंजनी अखाड़े के प्रमुख स्वामी नरेंद्र गिरि ने कहा कि संन्यासी बनने के बाद व्यक्ति घर पर नहीं रह सकता। चार साधुओं की कमेटी ने जांच में पाया कि सचिन दत्ता ने नियमों का उल्लंघन किया है, इसलिए उन्हें महामंडलेश्वर बनाने की पर्ची निरस्त कर दी गई। अब सचिन दत्ता महामंडलेश्वर नहीं हैं, लेकिन वह संन्यासी के तौर पर कुंभ मेले में हिस्सा ले सकते हैं।सचिन दत्ता को  31 जुलाई को महामंडलेश्वर बनया गया था .


    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास



    इसमें दूसरा नाम स्वामी नित्यानंद का है। नित्यानंद सेक्स स्कैंडल मामले में आरोपी दक्षिण भारत के स्वामी नित्यानंद को महानिर्वाणी अखाड़े ने महामंडलेश्वर बनाया था। नित्यानंद को यह उपाधि दिए जाने के साथ ही बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। दरअसल अखाड़ों में महामंडलेश्वर की उपाधि काफी बड़ी और पवित्र मानी जाती है। इस पद पर नियुक्त होने के लिए सातों अखाड़ों के प्रतिनिधि की सहमति जरूरी होती है। इसके अलावा निर्वाणी अखाड़े के सभी मंडलेश्वर भी अपनी स्वीकृति देते हैं, जिसके बाद निर्वाणी अखाड़े के पीठाधीश्वर किसी भी संत को महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान करते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह था कि जिस व्यक्ति के खिलाफ कोर्ट में सेक्स स्कैंडल का मामला चल रहा हो, उसका सेक्स स्कैंडल महामंडलेश्वर बनना कितना सही था।


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    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास


    तीसरा नाम पंजाब के गुरदासपुर में जन्मी सुखविंदर कौर उर्फ ​​राधे मां का है। वह खुद को स्वयंभू संत कहती हैं। भगवान से साक्षात्कार का दावा करने वाली राधे मां को करीब डेढ़ दशक पहले महामंडलेश्वर बनाया गया था। इसके बाद वह एक टीवी शो में चली गईं। उन दिनों उनकी कई तस्वीरें सामने आईं, जिन पर खूब विवाद हुआ। जब मामला गरमाया तो जूना अखाड़े ने सफाई दी और राधे मां को दी गई महामंडलेश्वर की उपाधि वापस ले ली गई। उसके बाद से राधे मां कहां चली गईं, किसी को पता नहीं।

    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास


    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम

    महामंडलेश्वर का पद हिंदू धर्म के अखाड़ा परंपरा में एक बहुत ही ऊंचा और सम्मानित पद होता है। यह पदवी धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और गंभीर होती है, जिसमें व्यक्ति को कई स्तरों की जांच और परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। आइए, इस प्रक्रिया को विस्तार से समझते हैं:


    आइए जानें महामंडलेश्वर बनने के नियम ,विवादित महामंडलेश्वर का इतिहास


    1. पांच स्तरीय जांच और परीक्षा

    • महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति को पांच स्तरीय जांच से गुजरना पड़ता है। इसमें उसके ज्ञान, वैराग्य, चरित्र और आध्यात्मिक योग्यता की परख की जाती है। महामंडलेश्वर बनने के लिए सभी अखाड़ों के वरिष्ठ संतों और मंडलेश्वरों की सहमति जरूरी होती है। इस प्रक्रिया में अखाड़े के वरिष्ठ संत और मंडलेश्वर व्यक्ति की योग्यता का मूल्यांकन करते हैं।


    2. ज्ञान और वैराग्य की परीक्षा

    • महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति को धार्मिक ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का गहरा ज्ञान होना चाहिए।

    • वैराग्य (दुनियावी मोह-माया से दूर रहने की भावना) की परीक्षा भी इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। व्यक्ति को त्याग और तपस्या का जीवन जीना होता है।


    3. अखाड़े के नियमों का पालन

    • महामंडलेश्वर बनने के बाद व्यक्ति को अखाड़े के सख्त नियमों का पालन करना होता है। इसमें सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर रहना, सादगीपूर्ण जीवन जीना और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करना शामिल है।

    • नियमों की अनदेखी करने पर व्यक्ति को अखाड़े से निलंबित कर दिया जाता है।

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    4. पदयात्रा और समारोह

    • महामंडलेश्वर बनने के बाद व्यक्ति की पदयात्रा निकाली जाती है। इसमें छत्र, चंवर और चांदी के सिंहासन का उपयोग किया जाता है। यह समारोह बहुत भव्य और प्रभावशाली होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु और संत शामिल होते हैं।


    5. समाजिक और धार्मिक जिम्मेदारी

    • महामंडलेश्वर का पद केवल एक उपाधि नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। महामंडलेश्वर को समाज की सेवा, धर्म का प्रचार-प्रसार और लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है।

    • उन्हें अखाड़े और संत समाज के हितों की रक्षा करनी होती है।


    6. नियमों का उल्लंघन और निलंबन

    • यदि कोई महामंडलेश्वर अखाड़े के नियमों का उल्लंघन करता है या उसके चरित्र पर कोई दाग लगता है, तो उसे अखाड़े से निलंबित कर दिया जाता है। इसके साथ ही उसकी पदवी भी छीन ली जाती है।

    कुंभ में शामिल अखाड़े

    कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे. आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं.

    बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते है लेकिन नाशिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नाशिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं. यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन् 1772 से चली आ रही है.


    1. निर्मोही अनी अखाड़ा (नाशिक)

    2. निर्वाणी अनी अखाड़ा (नाशिक)

    3. दिगंबर अनी अखाड़ा (नाशिक)

    4. जूना अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    5. आवाहन अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    6. पंचअग्नि अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    7. तपोनिधी निरंजनी अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    8. तपोनिधी आनंद अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    9. पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी (त्र्यंबकेश्वर)

    10. आठल अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)

    11. बडा उदासिन अखाड़ा निर्वाण (त्र्यंबकेश्वर)

    12. नया उदासीन अखाड़ा निर्वाण (त्र्यंबकेश्वर)

    13. निर्मल अखाड़ा (त्र्यंबकेश्वर)


    निष्कर्ष:

    महामंडलेश्वर बनना एक बहुत ही गंभीर और जिम्मेदारी भरा कदम है। यह पदवी केवल उन्हीं को दी जाती है जो ज्ञान, वैराग्य और त्याग के उच्च मानकों पर खरे उतरते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में इस पदवी को लेकर विवाद उठे हैं, जिससे इसकी गरिमा को ठेस पहुंची है। इसलिए, अखाड़ों और संबंधित संस्थानों को इस पदवी की प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना चाहिए।



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