🚩🕉 भगवान सहस्त्रार्जुन: सात द्वीपों के सम्राट और धर्म के रक्षक, अक्षय तृतीया पर हुआ था राज्याभिषेक
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एडिट बाय दीपक कुमार कलवार 30 अप्रैल 2025
अक्षय तृतीया विशेष लेख
अक्षय तृतीया और सहस्त्रार्जुन का राज्याभिषेक
अक्षय तृतीया का पावन दिन वह शुभ तिथि है, जब भगवान सहस्त्रार्जुन का राज्याभिषेक स्वयं इन्द्रादि देवताओं के हाथों हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन से त्रेता युग का शुभारंभ भी हुआ।
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परिचय: सहस्त्रार्जुन कौन थे?
भगवान सहस्त्रार्जुन, जिन्हें कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है, हैहय वंश के महान चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्हें हिंदू शास्त्रों में एक अद्वितीय योद्धा, धर्मपालक राजा और तपस्वी के रूप में वर्णित किया गया है। उनके बारे में जानकारी प्रमुख रूप से श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, और हरिवंश पुराण जैसे ग्रंथों में मिलती है।
राज्याभिषेक और तपस्या
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अक्षय तृतीया के दिन उनका भव्य राज्याभिषेक हुआ।
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इस अवसर पर देवराज इंद्र, भगवान गणेश, और सप्त पवित्र नदियों ने सहभागिता की।
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उन्होंने भगवान दत्तात्रेय की कठोर तपस्या की, जिससे उन्हें
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योगबल से वायु के समान सूक्ष्म रूप में विचरण करने की
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अद्वितीय बल और समृद्धि की
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तथा योगेश्वर बनने की शक्ति प्राप्त हुई।
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महिमा और कार्य
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उन्होंने 10,000 स्वर्ण वेदियों पर यज्ञ किए और सारा स्वर्ण ब्राह्मणों को दान कर दिया।
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गौ माता के कल्याण हेतु विशेष तपस्या की, जिससे गायों को खुर रोग से मुक्ति मिली।
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उन्होंने बलि प्रथा समाप्त की — जो उनके अहिंसक और न्यायप्रिय स्वभाव को दर्शाता है।
पारिवारिक संघर्ष और परशुराम कथा
साढ़ू संबंध:
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भगवान सहस्त्रार्जुन की पत्नी का नाम था वेणुका (Venuka)।
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ऋषि जमदग्नि की पत्नी थीं रेणुका (Renuka)।
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दोनों सगी बहनें थीं।
रेणुका और वेणुका के पिता थे – राजा रेणु या प्रतापनारायण (कुछ कथाओं में)।
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इसलिए सहस्त्रार्जुन और जमदग्नि सगे साढ़ू कहे जाते हैं।
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घटना का क्रम:
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रेणुका प्रतिदिन नदी से बिना बर्तन के जल कुम्भ बनाकर लाती थीं।
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एक दिन उन्होंने गंधर्वराज चित्ररथ को जलक्रीड़ा करते देखा और मन विचलित हो गया।
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वह जल लाए बिना लौटीं।
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ऋषि जमदग्नि ने अपने योगबल से यह जानकर क्रोधित हो अपनी पत्नी का वध करने का आदेश अपने पुत्रों को दिया।
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पहले चार पुत्रों ने इनकार किया, उन्हें शाप दिया गया।
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परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता रेणुका का वध कर दिया।
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प्रसन्न होकर जमदग्नि ने वर मांगने को कहा।
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परशुराम ने मां और भाइयों को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा — और वह पूर्ण हुआ।
सहस्त्रार्जुन की प्रतिक्रिया:
इस घटना से क्रोधित होकर वेणुका ने विरोध जताया, जो बाद में पारिवारिक संघर्ष और युद्ध का कारण बना। यह प्रसंग महाभारत और पुराणों में भी उल्लेखित है।
🕊️ निष्कर्ष
भगवान सहस्त्रार्जुन केवल महान योद्धा ही नहीं, बल्कि धर्म, न्याय, त्याग और मानवता के प्रतीक भी थे।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि एक सच्चा शासक अपने कर्तव्यों और प्रजा के कल्याण के लिए जीता है।
अक्षय तृतीया के दिन उनका स्मरण हमें यह प्रेरणा देता है कि –
"धर्म और मानवता से बड़ा कोई कर्म नहीं।"
✍ संकलन: एडवोकेट शैलेन्द्र जायसवाल
राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा
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