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    जब न्याय तक पहुंच भी वंश से तय हो — क्या यही है लोकतंत्र का सपना?”

    जब न्याय तक पहुंच भी वंश से तय हो — क्या यही है लोकतंत्र का सपना?”


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    ✍️ लेखक: दीपक कुमार, स्वतंत्र पत्रकार, We News 24


    भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर संस्था से पारदर्शिता और जवाबदेही की अपेक्षा की जाती है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या हमारी न्यायपालिका — विशेष रूप से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय — इन अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे उतरते हैं?

    राजनीति में परिवारवाद की आलोचना होती रही है, लेकिन क्या न्यायपालिका में भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति दिखाई नहीं देती? कई रिपोर्ट्स और जानकारियों में यह सामने आया है कि देश की न्यायपालिका में अनेक परिवारों की पीढ़ियां वर्षों से पदों पर आसीन रही हैं। यह प्रश्न अब जरूरी हो गया है: क्या यह केवल संयोग है, या फिर एक ऐसी प्रणाली, जिसे समय के साथ पारदर्शी और समावेशी बनाने की आवश्यकता है?


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    वर्तमान में उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियां कोलेजियम प्रणाली के माध्यम से होती हैं — एक ऐसी प्रक्रिया जो बंद दरवाज़ों के भीतर होती है, और जिसमें आम जनता को यह जानने का अधिकार नहीं होता कि किसी न्यायाधीश का चयन कैसे और किस आधार पर किया गया।

    इससे यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है:

    • क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि न्याय देने वाला व्यक्ति किन मानकों पर चुना गया?

    • क्या एक आम वकील के बेटे या बेटी को भी वही अवसर मिलते हैं, जो किसी प्रभावशाली पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति को मिलते हैं?

    • और सबसे अहम — क्या इस व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता नहीं है?






    यह लेख किसी व्यक्ति विशेष या संस्था के खिलाफ नहीं है। यह उस प्रणाली की चर्चा करता है जिसे अधिक पारदर्शी, जनसुलभ, और समान अवसर प्रदान करने वाला बनाया जा सकता है।

    हमारा संविधान समानता और न्याय की बात करता है। अगर न्याय तक पहुंच भी सामाजिक, पारिवारिक या पेशेवर पृष्ठभूमि से तय होने लगे, तो यह उस संविधान की आत्मा के विपरीत है।

    अब समय है कि हम, देश के नागरिक, लोकतंत्र के इस स्तंभ से सवाल पूछें —

    • क्या कोलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं?

    • क्या नियुक्तियों में निष्पक्षता लाने के लिए किसी स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है?

    • क्या न्यायिक नियुक्तियों को भी सार्वजनिक चयन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है?

    न्याय केवल फैसलों तक सीमित नहीं होना चाहिए — न्याय नियुक्तियों में भी होना चाहिए।

    📣 यह सिर्फ एक लेख नहीं, एक लोकतांत्रिक संवाद का निमंत्रण है।

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