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    ## आरक्षण: रेलगाड़ी का डिब्बा और अंदर बैठे लोग ,सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी

    ## आरक्षण: रेलगाड़ी का डिब्बा और अंदर बैठे लोग ,सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी


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    📍 रिपोर्ट : विवेक श्रीवास्तव 
    🗓️ प्रकाशन तिथि: 6 मई 2025
    📌 स्थान: नई दिल्ली


    **नई दिल्ली:** आरक्षण, जो कभी सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान का माध्यम माना जाता था, आज एक ऐसे रेलगाड़ी के डिब्बे जैसा बन गया है जिसमें एक बार चढ़ने वाले दूसरे को जगह नहीं देना चाहते। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत की यह टिप्पणी आरक्षण के वर्तमान स्वरूप पर एक गहरी चिंता व्यक्त करती है।


    **ओबीसी आरक्षण और महाराष्ट्र का मामला:**


    यह टिप्पणी महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आई है। महाराष्ट्र में 2016-2017 के बाद से स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के कारण अटके हुए हैं। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के 27% ओबीसी आरक्षण के अध्यादेश को रद्द कर दिया था।



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    **मानवीय पहलू:**


    यह सिर्फ कानून और राजनीति का मामला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों के जीवन से जुड़ा है। एक तरफ वे लोग हैं जो आरक्षण के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ना चाहते हैं। दूसरी तरफ वे लोग हैं जो योग्यता को महत्व देते हैं और आरक्षण को अवसर की समानता में बाधा मानते हैं।


    **उदाहरण:**


    * **सविता की कहानी:** सविता एक गरीब परिवार से आती है। उसने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया। लेकिन आरक्षण के कारण उसे मौका नहीं मिला, जबकि उसके कम अंक वाले उम्मीदवार को नौकरी मिल गई। सविता का सपना अधूरा रह गया।

    * **राजेश की कहानी:** राजेश एक छोटे शहर का रहने वाला है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और अपना व्यवसाय शुरू करना चाहता है। लेकिन उसे बैंक से लोन नहीं मिल रहा है क्योंकि उसके पास आरक्षण का लाभ नहीं है। राजेश को लगता है कि आरक्षण उसके सपनों को तोड़ रहा है।



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    **आगे का रास्ता:**


    आरक्षण एक संवेदनशील मुद्दा है और इसका समाधान आसान नहीं है। हमें इस पर खुलकर और ईमानदारी से चर्चा करनी चाहिए। हमें ऐसे रास्ते खोजने होंगे जो सामाजिक न्याय और योग्यता के बीच संतुलन बना सकें। शायद यह समय है कि हम आरक्षण के वर्तमान स्वरूप पर पुनर्विचार करें और इसे सभी के लिए न्यायसंगत बनाएं।


    **निष्कर्ष:**


    जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आरक्षण अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षण एक ऐसा उपकरण बने जो सभी को समान अवसर प्रदान करे, न कि कुछ लोगों के लिए विशेष अधिकार। यह समय है कि हम इस मुद्दे पर मानवीय दृष्टिकोण से विचार करें और एक ऐसा समाधान खोजें जो सभी के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करे।

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