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    भारत में संविधान की आड़ में अवैध घुसपैठ को संरक्षण- कानून, खतरे, संवैधानिक अधिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव,

    भारत में संविधान की आड़ में अवैध घुसपैठ को संरक्षण- कानून, खतरे, संवैधानिक अधिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव,




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    📍 लेखक: वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार  
    🗓️ प्रकाशन तिथि: 6 मई 2025
    📌 स्थान: नई दिल्ली

    नई दिल्ली:- भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है – एक ऐसा देश जिसका संविधान हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और गरिमा का अधिकार देता है। यही लोकतंत्र की आत्मा है। लेकिन जब देश में अवैध तरीके से प्रवेश करने वालों की बात आती है – जो न तो भारत के नागरिक हैं और न ही उनके पास कोई वैध दस्तावेज़ – तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार उन पर भी लागू होने चाहिए?


     लेकिन जब बात उन लोगों की आती है जो बिना दस्तावेज़ों के देश में घुस आते हैं – तो सवाल यह उठता है कि क्या यही कानून उन पर भी लागू होते हैं? और क्या इस उदारता का दुरुपयोग भारत की सुरक्षा, अखंडता और संसाधनों पर बोझ नहीं बन रही? 

    भारत की भूमि पर जो कोई भी रहता है, उसे बुनियादी मानवाधिकार मिलना चाहिए – जैसे कि जीवन का अधिकार, क्रूरता से सुरक्षा, आदि। लेकिन नागरिकों को जो विशेष अधिकार मिलते हैं – जैसे कि वोट देने का अधिकार, सरकारी योजनाओं का लाभ, सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी, आरक्षण व्यवस्था – ये अधिकार भारत के "नागरिकों" के लिए सुरक्षित हैं, न कि "किसी भी व्यक्ति" के लिए।



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    फिर सवाल उठता है:


    अवैध घुसपैठ – एक असहज सच्चाई

    1. भारत में करीब 4-5 करोड़ अवैध प्रवासी रह रहे हैं (अंदाज़े)।

    2. इनमें बड़ी संख्या बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान से आने वालों की है।

    3. ये घुसपैठियों बिना वैध कागज़ों के भारत में बस जाते हैं, झुग्गी बस्तियाँ बसा लेते हैं और कुछ वर्षों में फर्जी दस्तावेज़ बनवा लेते हैं – आधार कार्ड, वोटर ID, यहां तक कि राशन कार्ड भी बनवाकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं। इससे न केवल सरकारी खजाने पर भार पड़ता है, बल्कि यह भारत के नागरिकों के अधिकारों की अनदेखी भी है। कई बार तो यह देखा गया है कि ऐसे लोग स्थानीय राजनीति में भी दखल देने लगते हैं, जिससे लोकतंत्र की संरचना प्रभावित होती है।क्या यह संसाधनों – जैसे कि पानी, बिजली, राशन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं – पर अतिरिक्त बोझ नहीं बनता?

    4. राजनेता इन्हें वोट बैंक के रूप में देखते हैं और इन पर कार्रवाई से बचते हैं।

    5. इससे लोकतंत्र का मूल उद्देश्य ही खतरे में पड़ जाता है।

    6. "पति पाकिस्तान में, बीवी भारत में" जैसे 5 लाख से ज़्यादा मामले सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का कारण हैं।
    7. रोहिंग्या मुसलमान भारत में बसा दिए गए, जबकि म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता।
    8. ये अब जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली जैसे संवेदनशील शहरों में स्थायी हो चुके हैं।
    9. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, इन्हें आतंकी संगठन 'स्लीपर सेल' के रूप में इस्तेमाल करते हैं।


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    सुरक्षा की दृष्टि से भी यह एक गंभीर चुनौती है। देश की सीमाएं जितनी खुली होंगी, खतरे उतने ही बढ़ेंगे – आतंकवाद, मानव तस्करी, नकली करेंसी और ड्रग्स की तस्करी जैसे अपराधों में भी वृद्धि की आशंका बढ़ जाती है।दिल्ली, कोलकाता, असम, जम्मू जैसे इलाकों में स्लीपर सेल सक्रिय पाए गए हैं। कश्मीर में कई घटनाओं में रोहिंग्या लिंक सामने आ चुके हैं।


    न्याय और संवेदनशीलता में संतुलन ज़रूरी है
    भारत हमेशा से शरणार्थियों और पीड़ितों को आश्रय देने वाला देश रहा है – तिब्बती, अफगानी, श्रीलंकाई तमिल, बांग्लादेशी हिंदू, रोहिंग्या आदि को भारत ने मानवीय दृष्टिकोण से देखा है। लेकिन एक राष्ट्र के रूप में, भारत को यह तय करना होगा कि:

    1. कौन शरणार्थी है और कौन अवैध घुसपैठिया?
    2. किसे संरक्षण देना है और किसे वापस भेजना है?

    समाधान क्या हो सकता है?

    1. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू किया जाए।

    2. सीमाओं की निगरानी और नियंत्रण को तकनीकी रूप से मज़बूत किया जाए।

    3. अवैध घुसपैठियों की पहचान कर कानूनी कार्रवाई और प्रत्यावर्तन की नीति अपनाई जाए।

    4. स्थानीय प्रशासन, पुलिस और खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही तय हो।

    5. भारत की उदारता का दुरुपयोग रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं।


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    1. अवैध प्रवासी – कौन, कैसे और क्यों? भारत में लाखों की संख्या में ऐसे लोग रह रहे हैं जिनके पास न तो भारतीय नागरिकता है, न ही वैध वीज़ा या दस्तावेज़। ये अधिकतर बांग्लादेश, म्यांमार (रोहिंग्या), पाकिस्तान जैसे देशों से आए हैं।

    1. कुछ धार्मिक उत्पीड़न का हवाला देते हैं,
    2. कुछ रोज़गार की तलाश में आते हैं,
    3. और कुछ वैचारिक/राजनीतिक मंशा से देश में दाखिल होते हैं।

    2. रोहिंग्या मुसलमान – क्या उन पर भारतीय कानून लागू होते हैं? संविधान का अनुच्छेद 21 "जीवन का अधिकार" सभी व्यक्तियों को देता है – लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अवैध रूप से देश में घुसकर कोई नागरिकता, शिक्षा का अधिकार या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाए।


    3. कानून क्या कहता है?

    1. Foreigners Act, 1946 के अनुसार, अवैध रूप से भारत में घुसने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है और देश से निकाला जा सकता है।
    2. Citizenship Act, 1955 के तहत ऐसा व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं बन सकता।


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    4. वास्तविक खतरे – सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव

    1. दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद, कोलकाता जैसे शहरों में बड़ी संख्या में अवैध बस्तियाँ बन चुकी हैं।
    2. ये लोग फर्जी दस्तावेज़ बनवाकर वोटर लिस्ट में शामिल हो जाते हैं।
    3. कई आतंकी संगठन इन्हें 'स्लीपर सेल' के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
    4. हाल ही में सामने आया मामला: "पति पाकिस्तान में, बीवी भारत में" – ऐसे करीब 5 लाख मामलों की बात सामने आई है।

    5. जनसंख्या विस्फोट और सांस्कृतिक खतरे

    1. एक तरफ भारत जनसंख्या नियंत्रण की बात कर रहा है, वहीं अवैध प्रवासियों के 5-6 बच्चे सामान्य हैं।
    2. इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं पर दबाव बढ़ रहा है।


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    6. क्या भारत धर्मशाला बन चुका है? सवाल उठता है – कोई भी बिना दस्तावेज़ भारत में घुस जाए, बस जाए, और यहां के कानूनों का लाभ भी उठाए – क्या यह किसी संप्रभु राष्ट्र के लिए उचित है? क्या इससे देश की अखंडता और राष्ट्रीय पहचान सुरक्षित रह पाएगी?

    7. समाधान क्या है?

    1. राष्ट्रीय स्तर पर NRC लागू हो।
    2. सभी राज्यों में अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें डिटेन्शन सेंटर में भेजा जाए।
    3. फर्जी दस्तावेज़ बनाने वाले सरकारी कर्मियों पर कार्रवाई हो।
    4. राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठें।


    निष्कर्ष: 

    वी न्यूज़ 24 (We News 24) का मानना ​​है किभारत की सहनशीलता उसकी ताकत है, लेकिन यह कमजोरी नहीं बननी चाहिए। अगर भारत को सुरक्षित, अखंड और आत्मनिर्भर रखना है, तो हमें इन मुद्दों पर गंभीर और स्पष्ट नीति बनानी होगी। भारत को "धर्मशाला" बनने से रोकना ही होगा। लोकतंत्र और मानवाधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर कोई संदेह नहीं। लेकिन जब देश की अखंडता, सुरक्षा और नागरिकों के अधिकार दांव पर लगने लगें – तो कड़े निर्णय भी उतने ही ज़रूरी हो जाते हैं जितनी उदारता। भारत को यह संतुलन बहुत सोच-समझकर बनाना होगा – ताकि न मानवता कुचली जाए, और न ही राष्ट्र की संप्रभुता।


     

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