पहलगाम आतंकी हमला: अब वक्त है सीमाओं को अभेद्य बनाने का | मोदी-शाह लें ठोस कदम, ताकि फिर न हो पुलवामा उरी जैसा दर्द
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✍️ दीपक कुमार, संपादक — We News 24
नई दिल्ली:- 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला सिर्फ एक हमला नहीं था — यह भारत के आत्मसम्मान पर सीधा वार था। पाकिस्तान की सरपरस्ती में पनप रहे आतंकी संगठन टीआरएफ ने निर्दोष भारतीय पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना न सिर्फ दिल दहला देने वाली थी, बल्कि इसने देशभर में आक्रोश की लहर भी पैदा की।
इस हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तुरंत उच्चस्तरीय बैठक की। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने यह स्वीकार किया कि कहीं न कहीं यह हमला सुरक्षा चूक का परिणाम था — और यह स्वीकारोक्ति अपने आप में गंभीर है।
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पलटवार से पाकिस्तान में मचा हड़कंप
भारत ने देर नहीं की। 06-07 मई की रात को भारतीय सेना ने सीमापार आतंकी ठिकानों को टारगेट करते हुए सटीक जवाब दिया। यह कार्रवाई सिर्फ आतंकियों पर थी, लेकिन पाकिस्तान ने जवाब में आम नागरिकों को निशाना बनाया — और यही उसकी कायरता को उजागर करता है।
पाकिस्तानी सेना और सरकार, भारत की जवाबी कार्रवाई से तिलमिला उठी है। यही वजह है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलीबारी की घटनाएं बढ़ गई हैं और हालात युद्ध जैसे बन चुके हैं।
सवाल उठता है — सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे?
क्या धारा 370 हटने के बाद हम यह मान बैठे थे कि अब कोई आतंकी हमला नहीं होगा? गृह मंत्रालय के फैसले के तहत सीआईएसएफ और सेना के जवानों को पहलगाम से हटाया गया — और यह फैसला, कथित तौर पर उमर अब्दुल्ला के अनुरोध पर हुआ था। क्या देश की सुरक्षा, सियासी तर्कों के आगे झुकी?
अब जबकि हमला हो चुका है, देश यही पूछ रहा है — क्या पहलगाम में हमारी सुरक्षा कमजोर थी? क्या केंद्र सरकार असावधान हो गई थी?
अमित शाह के दावे हुए चकनाचूर
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बार-बार यह दावा किया था कि "मोदी सरकार में पुलवामा और उरी के बाद कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ।" मगर पहलगाम ने इन दावों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा — "यह हमला शाह की रणनीतिक विफलता का संकेत है।" यह हमला उस भरोसे को भी झकझोरता है, जो आम नागरिक देश की सुरक्षा व्यवस्था पर करते हैं।
युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं, पर सुरक्षा से समझौता भी नहीं
बीते वर्षों में हमने देखा है कि युद्ध ने किसी देश को स्थायी समाधान नहीं दिया। चाहे वह इज़राइल-हमास हो या रूस-यूक्रेन, युद्ध से सिर्फ जान-माल की हानि होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम चुप रहें। हमें अपनी सीमाओं को इतना मज़बूत करना होगा कि कोई दुश्मन नजर उठाकर भी न देख सके।
अब वक्त है — मोदी-शाह मजबूत निर्णय लें
भारत के 140 करोड़ नागरिक तभी चैन की नींद सो सकते हैं जब हमारी सीमाएं अभेद्य हों। यह हमला सिर्फ पर्यटकों पर नहीं था, यह हमला भारत के गौरव, आत्मसम्मान और हर नागरिक की सुरक्षा भावना पर था।
मोदी सरकार को चाहिए कि अब सीमाओं पर चौकसी और आक्रामक रुख को प्राथमिकता दे, ताकि फिर कोई आतंकी घटना न हो — न उरी, न पुलवामा, न पहलगाम।
निष्कर्ष:
भारत की ताकत उसकी जनता और सेना में है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उस भरोसे को टूटने न दे। पहलगाम का बदला सिर्फ जवाबी हमले से नहीं, बल्कि स्थायी सुरक्षात्मक रणनीति से लिया जाना चाहिए। अब वक्त है 'सुरक्षा में कोई समझौता नहीं' की नीति को ज़मीन पर उतारने का।
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