समाज और कानून से ऋचा ठाकुर की पुकार: क्या भारत में बेटियों को मिलेगा इंसाफ?
✍️ दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार, We News 24
दिल्ली, 28 जुलाई 2025 – दिल्ली के महरौली विधानसभा में एक संवेदनशील केस पर चर्चा गरम है – एक महिला ने एक शक्तिशाली विधायक पर यौन उत्पीड़न और धोखे का आरोप लगाया है। लेकिन सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ एक संगठित मोर्चा खड़ा किया गया है, जिसका नेतृत्व कर रहे हैं एक कथित समर्थक – सुरेश मस्ताना ।जब महिला की शिकायत को बदनाम करने का अभियान चलाया जाता है"
एक साधारण महिला, ऋचा ठाकुर, की आवाज़ पिछले पांच साल से दिल्ली की गलियों और सोशल मीडिया पर गूंज रही है। वह न्याय की मांग कर रही है, लेकिन सिस्टम की चुप्पी और ताकतवर लोगों का रसूख उनकी पुकार को दबाने में लगा है। ऋचा ने मेहरौली के पूर्व विधायक और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता पर दुष्कर्म, शारीरिक हिंसा, मानसिक प्रताड़ना, और ब्लैकमेलिंग जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। लेकिन इसके जवाब में, विधायक ने ऋचा पर ही ब्लैकमेलिंग का केस दर्ज कर उन्हें जेल भिजवा दिया। क्या यही है वह भारत, जहाँ “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा गूंजता है?
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ऋचा की आपबीती: “मेरी इज़्ज़त लूटी गई, मेरी आवाज़ दबाई गई”
ऋचा ठाकुर की कहानी दिल दहलाने वाली है। उनकी बातें, जो सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो और पोस्ट के ज़रिए सामने आई हैं, समाज और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं:
- “बेटी बनाकर भरोसा तोड़ा”: ऋचा का कहना है कि आरोपी विधायक ने उन्हें “बेटी” कहकर भावनात्मक रूप से जोड़ा, फिर जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
- “मुझे बेहोश करके अपहरण किया गया”: ऋचा का दावा है कि उन्हें बेहोश करके एक घर में ले जाया गया, जहाँ उनके साथ बार-बार दुष्कर्म हुआ।
- “चार बार जबरन अबॉर्शन करवाया”: उन्होंने बताया कि विधायक ने उन्हें शादी का झांसा देकर मंदिर में नकली रीति-रिवाज कराए और उनकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया।
- “पुलिस ने मेरी नहीं सुनी”: 2020 में शिकायत दर्ज करने के बावजूद, राजनीतिक दबाव के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टे, ऋचा को ही पुलिस ने हिरासत में लिया।
ऋचा ने एक ऑडियो क्लिप में अपनी व्यथा बयान की:
“उसने ने मुझे बेटी बनाकर मेरी इज़्ज़त छीन ली। मैंने फांसी लगाने की कोशिश की, लेकिन एक ऑटो ड्राइवर ने मुझे बचा लिया। मैं बार-बार मदद मांगती रही, लेकिन सब चुप रहे।”
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विधायक के समर्थकों का पक्ष: झूठे आरोप या सच का पर्दा?
विधायक के समर्थक, जैसे सुरेश मस्ताना, दावा करते हैं कि ऋचा ठाकुर की कहानी झूठी है। उनके अनुसार:
- ऋचा ने बिना तलाक लिए दो शादियाँ कीं और अपनी छह साल की बेटी को छोड़ दिया।
- विधायक पर शादी का दबाव बनाया गया, और जब वह नहीं माने, तो रेप का झूठा आरोप लगाया गया।
- दोनों के बीच सहमति से रिश्ता था, और विधायक ने ऋचा को काम में भी मदद की थी।
- 2020 में भी ऋचा ने रेप की धमकी दी थी, जिसे मेहरौली के कई लोगों ने सुलझाने की कोशिश की।
समर्थकों का कहना है कि विधायक “ईमानदार” और “अच्छे इंसान” हैं, और यह मामला राजनीतिक साजिश का हिस्सा है। लेकिन सवाल यह है: अगर रिश्ता सहमति से था, तो विधायक ने ऋचा पर ब्लैकमेलिंग का केस क्यों दर्ज करवाया? क्या यह उनकी अपनी छवि बचाने की कोशिश है?
क्या ये भाषा किसी सभ्य लोकतंत्र में महिला के चरित्र का विश्लेषण है या चरित्र हनन का अभियान?
IPC की धारा 375 स्पष्ट करती है कि सहमति तभी वैध मानी जाती है जब वह बिना दबाव, भ्रम या धोखे के दी गई हो। यदि किसी रिश्ते में महिला को सामाजिक, राजनीतिक या भावनात्मक दबाव में रखा गया हो, तो वह सहमति नहीं, शोषण है।
एक लोकतांत्रिक समाज में अगर कोई महिला अपने ऊपर हुए शोषण की बात करती है, तो उसे बदनाम करने के बजाय उसकी बात को संवेदनशीलता से सुनना हमारी ज़िम्मेदारी है।
महिलाओं के लिए न्याय मांगना अगर "राजनीति" है, तो फिर सच में राजनीति बहुत गंदी चीज़ बन चुकी है।
ध्यान दें: महिला पर बार-बार यह आरोप लगाया गया कि वह रेप केस को "हथियार" बना रही है — यह वक्तव्य ही धारा 228A IPC (पीड़िता की पहचान उजागर करना), और मानहानि के कानूनों के दायरे में आ सकता है।
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सवाल समाज और कानून से
ऋचा ठाकुर की कहानी सिर्फ़ एक महिला की नहीं, बल्कि हर उस बेटी की है जो सिस्टम के सामने अपनी आवाज़ उठाने की हिम्मत करती है। एनसीआरबी के आँकड़े बताते हैं कि भारत में 96% दुष्कर्म मामलों में आरोपी पीड़िता का परिचित होता है। फिर भी, इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म), 344 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 506 (आपराधिक धमकी), और 420 (धोखाधड़ी) जैसी गंभीर धाराएँ बनती हैं, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।
- क्या पुलिस की निष्क्रियता सत्ता के दबाव का नतीजा है?
- क्या “बेटी बचाओ” का नारा सिर्फ़ दिखावा है?
- जब एक महिला को इंसाफ के लिए सड़कों पर चीखना पड़ता है, तो आम औरत कहाँ जाए?
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ऋचा की माँग: इंसाफ का हक
ऋचा ठाकुर अपनी जान को खतरा बताती हैं। वह रोज़ फेसबुक लाइव पर अपनी व्यथा सुनाती हैं, लेकिन उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। उनकी माँगें साफ हैं:
- तुरंत FIR दर्ज हो।
- आरोपी विधायक की गिरफ्तारी हो।
- केस को महिला आयोग और हाईकोर्ट के संज्ञान में लाया जाए।
- पुलिस की निष्क्रियता की जाँच हो।
समाज का चेहरा: चुप्पी या हिम्मत?
ऋचा ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा:
“मेरे जिस्म पर बर्बरता आसान थी, क्योंकि मैं किसी और की बेटी थी। मेरे पापा ने मुझे ‘बेटा’ कहा, लेकिन तुमने मेरी इज़्ज़त कुचल दी। क्या तुम अपनी बहन या बेटी के साथ ऐसा कर सकते हो?”
यह सिर्फ़ ऋचा की लड़ाई नहीं, बल्कि हर उस महिला की लड़ाई है जो ताकतवर लोगों के खिलाफ न्याय माँग रही है। विधायक के समर्थकों का दावा हो या उनकी ओर से ब्लैकमेलिंग का केस, सवाल वही है: क्या किसी महिला को उसकी आवाज़ उठाने की सजा जेल है?
निष्कर्ष: बेटी बचाओ, या बेटी को चुप कराओ?
जब एक महिला अपनी इज़्ज़त और जान की रक्षा के लिए सिस्टम से गुहार लगाती है, और जवाब में उसे ही जेल भेज दिया जाता है, तो यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाता है। मेहरौली की जनता ने जिस विधायक को चुना, क्या वह वाकई “पाक साफ” है? या फिर सत्ता और रसूख ने एक और बेटी की आवाज़ को दबाने की कोशिश की है?
ऋचा ठाकुर की यह पुकार हर भारतीय से सवाल करती है: अगर इस देश में बेटियाँ सुरक्षित नहीं, तो कौन सुरक्षित है?
“मेरी चुप्पी नहीं, मेरा सवाल तुझे नंगा करेगा।” – ऋचा ठाकुर
हमारी अपील: इस मामले को शेयर करें, आवाज़ उठाएँ, और ऋचा ठाकुर के लिए इंसाफ की माँग करें। क्योंकि जब तक एक भी बेटी की पुकार अनसुनी रहेगी, “बेटी बचाओ” सिर्फ़ एक खोखला नारा रहेगा।
इस मामले पर भी विचार करें, इन पीड़ितों का भी साक्षात्कार लें I SC 177/2017 in tis Hazari Court
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