🛑सम्पादकीय: क्या सीतामढ़ी सिर्फ वादों का शहर है? बाईपास अधूरा, ब्रीज अधूरा, शहर का भगवान मालिक
✍️ विशेष सम्पादकीय |वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार | We News 24
"सीतामढ़ी सिर्फ रामायण का गौरव नहीं, बल्कि उपेक्षा का प्रतीक बनता जा रहा है" — कब जागेगा सिस्टम?
रामायण काल की पुण्यभूमि, माता सीता की जन्मस्थली — सीतामढ़ी।जिस ज़मीन से स्वयं सीता माता धरती से प्रकट हुईं,आज वही ज़मीन राजनीतिक धोखे, प्रशासनिक लापरवाही, और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार है।सीतामढ़ी, जो भारत-नेपाल सीमा से सटा हुआ जिला है,देश के धार्मिक और सांस्कृतिक नक्शे पर तो गौरवशाली है, पर ज़मीनी हालात देखें तो यह ज़िला बरबादी और बदहाली की मिसाल बन चुका है। “हम तो बाईपास की आस में बैठे थे, पर अब घर का रास्ता भी जलजमाव में डूब गया है…”
यह दर्द है सीतामढ़ी के उस आम नागरिक का, जो हर चुनाव में नेताओं की चिकनी-चुपड़ी बातों पर भरोसा करता है — लेकिन हर बार वही गड्ढा, वही कीचड़, वही अंधेरा और वही झूठ।ये भी पढ़े-🛢️ "तेल का खेल" : अगर भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद किया तो क्या होगा? जानिए पूरी सच्चाई
🚨 सीतामढ़ी: विकास की गाड़ी यहाँ हमेशा लेट है
🏗️ अधूरा ओवरब्रिज — प्रतीक्षा में जनता
रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण वर्षों से अधूरा पड़ा है।
दिसंबर 2021 में भाजपा विधायक मिथिलेश कुमार ने कहा था:
"यह मेरी प्राथमिकता है, वरना अगली बार चुनाव नहीं लड़ूंगा।"
आज 2025 है, ओवरब्रिज अभी भी अधूरा है।
🚧 जर्जर बायपास रोड — मौत को न्योता
बायपास रोड जो इस शहर की लाइफलाइन कहा जाता है,
वह सालों से गड्ढों में तब्दील है।
न कोई मरम्मत, न कोई नियोजन —
कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
🧱 नगर परिषद बना, पर सिस्टम वही पुराना
सीतामढ़ी को नगर पालिका से नगर परिषद का दर्जा तो मिला,
लेकिन सड़कों पर कचरे का अंबार,
नालियां टूटी और बजबजाती,
जल-जमाव की पुरानी त्रासदी अब भी बरकरार है।
शहर के 80% वार्डों में जलजमाव, गंदगी, और नालियों का ओवरफ्लो आम है।
कूड़े के ढेरों पर खेलने को मजबूर बच्चे, बीमारियों से घिरे बुजुर्ग।
निगम की हर योजना में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और ठेकेदारों की मनमानी।
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💸 भ्रष्टाचार की गंगा — जनता का पैसा "अपनों" पर कुर्बान
सूत्रों के अनुसार:
1800 आवास योजना में से करीब 1600 मकान सिर्फ एक समुदाय (मुस्लिम) को आवंटित किए गए।
यह आँकड़ा साम्प्रदायिक पक्षपात और राजनीतिक तुष्टिकरण की ओर इशारा करता है।
क्या यह सब मेयर की कृपा से हुआ?
क्या सरकारी योजनाएं अब जाति-धर्म देखकर बंटती हैं?
🔫 अपराध का गढ़ बनता जा रहा है सीतामढ़ी
दिनदहाड़े हत्याएं, लूट, और गुंडागर्दी आम हो गई है।
पुलिस प्रशासन का हाल यह है कि अपराधियों का मनोबल सातवें आसमान पर है।
व्यापारी वर्ग और आम नागरिक अब कहने लगे हैं:
"यहां भगवान ही मालिक है..."
🛕 पुनौरा मंदिर को मिला 143 करोड़ — लेकिन शहर को क्या?
बिहार सरकार ने पुनौरा मंदिर को अयोध्या की तर्ज पर विकसित करने के लिए ₹143 करोड़ मंजूर किए हैं।
यह धार्मिक दृष्टिकोण से सराहनीय है,
लेकिन सवाल उठता है:
👉 क्या सीतामढ़ी शहर खुद इस विकास से अछूता रहेगा?
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📢 जनता कब तक ठगी जाएगी?
आज सीतामढ़ी का हर नागरिक धोखा खाया हुआ महसूस कर रहा है।
नेता सिर्फ चुनावों में आकर "सीतामढ़ी को चमका दूंगा" जैसी बातें करते हैं —
पर हकीकत में अंधेरे और गड्ढों में छोड़ जाते हैं।
🗳️ इस बार वोट सोच-समझकर दें
2025 विधानसभा चुनाव नजदीक हैं —
अब समय आ गया है कि जनता नेताओं के वादों की नहीं, उनके ट्रैक रिकॉर्ड की समीक्षा करे।
🌱 सीतामढ़ी को सिर्फ धार्मिक पहचान नहीं,
एक आधुनिक, सुरक्षित और सशक्त शहर बनाने के लिए
जनता को जागरूक होना पड़ेगा।
✅ निष्कर्ष:
सीतामढ़ी के लोगों को अब सिर्फ उम्मीद नहीं,
हक़ और अधिकार के लिए संगठित होना होगा।
नेता बदलेंगे या नहीं, यह चुनाव तय करेगा।
लेकिन जनता अगर नहीं बदली, तो सीतामढ़ी की बदहाली फिर नहीं बदलेगी।
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