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    दर्द-ए- बिहार : मंदिर-ट्रेन से नहीं, उद्योगों से रुकेगा पलायन, नीतीश-मोदी जवाब दो!


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    खबर का सार : बिहार में 7% आबादी पलायन करती है, बेरोजगारी 17.6%। मोदी सरकार ने 7200 करोड़ के प्रोजेक्ट्स, ट्रेनें और 882 करोड़ का सीता मंदिर शुरू किया, लेकिन उद्योगों की कमी से विकास रुका। गुजरात में FDI अधिक, बिहार में कम। जातिवादी राजनीति और टैक्स बोझ आम आदमी को दबा रहा। संपादकीय में उद्योग लगाने की मांग। 


    दर्द-ए- बिहार : मंदिर-ट्रेन से नहीं, उद्योगों से रुकेगा पलायन, नीतीश-मोदी जवाब दो!



    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 10 अगस्त 2025, 10:15 IST

    लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार 



    पटना/नई दिल्ली :-  बिहार, जहां से बुद्ध की ज्ञान-ज्योति फूटी और गांधी की अहिंसा की लहर चली, आज पलायन की पीड़ा में डूबा हुआ है। राज्य की 7% से अधिक आबादी रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन करती है, जो उत्तर प्रदेश के बाद देश में दूसरी सबसे अधिक है। 2023 में बिहार का बेरोजगारी दर 17.6% था, जो राष्ट्रीय औसत 8.7% का दोगुना है। ग्रामीण परिवारों में से आधे से अधिक रेमिटेंस पर निर्भर हैं। ऐसे में सवाल उठता है: क्या केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मंदिरों का निर्माण और नई ट्रेनों का परिचालन बिहार के विकास की कुंजी है, या राज्य में उद्योग लगाकर पलायन रोकना जरूरी? नीतीश कुमार और लालू प्रसाद जैसे नेता जातिवादी राजनीति में उलझे रहते हैं, जबकि बिहारी मजदूर अन्य राज्यों में अपमान सहते हैं। मोदी सरकार की तीसरी पारी में टैक्स का बोझ भी आम आदमी को दबा रहा है—क्या यह विकास का मॉडल है?



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    पलायन: बिहार का सबसे बड़ा घाव

    बिहार की अर्थव्यवस्था को 'रेमिटेंस इकोनॉमी' कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, काम के लिए पलायन करने वाले मजदूरों में बिहार का हिस्सा सबसे ऊंचा है। 2025 तक, सालाना औसतन 5.5 लाख लोग स्थायी रूप से पलायन कर रहे हैं। पुरुष मजदूरों का 85% हिस्सा है, जो मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र में काम करते हैं। ग्रामीण बिहार से 80% मजदूर शहरी क्षेत्रों में जाते हैं, लेकिन वापसी का चक्र 2-3 महीने का होता है। बेरोजगारी और कम मजदूरी के कारण यह पलायन मजबूरी है। अन्य राज्यों में बिहारी मजदूरों को 'बिहारी' कहकर अपमानित किया जाता है, गालियां दी जाती हैं। क्या मोदी सरकार और नीतीश-लालू जैसे नेता इस दर्द को समझते हैं? केंद्र द्वारा 2025 में सीतामढ़ी-दिल्ली अमृत भारत एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें शुरू करना अच्छा है, लेकिन यह पलायन को आसान बनाता है, न कि रोकता।


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    उद्योगों की कमी: गुजरात बनाम बिहार


    बिहार का प्रति व्यक्ति आय 2025 में मात्र 82,000 रुपये (लगभग $1,002) है, जो राष्ट्रीय औसत का एक-तिहाई से कम है। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से सेवा-आधारित है, जहां कृषि और उद्योग का योगदान कम है। वहीं, गुजरात FDI में तीसरा स्थान रखता है—2024-25 में 5,566 मिलियन डॉलर का निवेश आया। गुजरात में पेट्रोकेमिकल्स, फार्मा, और भारी उद्योग फल-फूल रहे हैं। बिहार में क्यों नहीं? केंद्र सरकार ने 2025 में अडानी पावर को 3 अरब डॉलर की 2400 MW कोयला आधारित पावर प्लांट की मंजूरी दी, लेकिन कुल निवेश कम है। मोदी सरकार ने बिहार में 7200 करोड़ के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया—रेल, सड़क, ग्रामीण विकास—लेकिन उद्योगों पर फोकस नहीं। गुजरात में 780+ उद्योग शुरू हुए, जो 70,000 नौकरियां पैदा कर रहे हैं। बिहार में उद्यमियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं, जिससे निवेश दूर भागता है। अगर बिहार में फैक्टरियां लगें, तो पलायन रुकेगा और स्थानीय रोजगार बढ़ेगा।


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    मंदिर और ट्रेन: विकास का दिखावा या वास्तविकता?


    2025 में मोदी सरकार ने बिहार में कई ट्रेनें शुरू कीं—सहरसा-लोकमान्य तिलक अमृत भारत एक्सप्रेस, जयनगर-पटना नामो भारत रैपिड रेल। अमित शाह ने 882 करोड़ की मां जानकी मंदिर की नींव रखी, जो मिथिलांचल में चुनावी लाभ के लिए लगता है। केंद्र ने 7200 करोड़ के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया, जिसमें रेल और सड़क शामिल हैं। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? नीतीश सरकार ने बिहार इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 में 9.2% विकास दर का दावा किया, लेकिन बेरोजगारी और पलायन जारी है। मंदिर और ट्रेनें सांस्कृतिक गौरव बढ़ा सकती हैं, लेकिन रोजगार नहीं। केंद्र ने बिहार के लिए फंड्स बढ़ाए—NDA के तहत कई गुना—लेकिन उद्योगों की कमी से विकास असंतुलित है।


    जातिवादी राजनीति: विकास का दुश्मन


    बिहार चुनाव 2025 में जाति फिर ट्रंप कार्ड बनेगी। नीतीश का जाति सर्वेक्षण मास्टरस्ट्रोक था, जो EBC, मुस्लिम, और यादव वोटों को लक्षित करता है। BJP सीता मंदिर से हिंदू वोट लुभा रही है। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसे युवा नेता जाति से परे मुद्दे उठा रहे हैं—पलायन, बेरोजगारी—लेकिन मुख्यधारा की राजनीति जातिवाद में उलझी है। मुस्लिम या हिंदू समुदाय को लुभाने की होड़ में विकास पिछड़ जाता है। क्या नेताओं को फर्क पड़ता है कि बिहारी मजदूर अपमान सहते हैं? नहीं, क्योंकि जाति वोट बैंक देती है।


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    टैक्स का बोझ: मध्यम वर्ग की कमर टूटी


    मोदी सरकार की तीसरी पारी में बजट 2025 ने मध्यम वर्ग को राहत दी—12 लाख तक आय पर कोई टैक्स नहीं, स्लैब में बदलाव। लेकिन अप्रत्यक्ष टैक्स (GST, पेट्रोल-डीजल) का बोझ बढ़ा है। कॉर्पोरेट टैक्स विदेशी कंपनियों के लिए 40% से 35% घटा, लेकिन आम आदमी की आय स्थिर है, जबकि टैक्स अनगिनत। GDP ग्रोथ 5.4% पर दो साल के निचले स्तर पर है। टैक्स राहत विकास को बढ़ावा देने के लिए है, लेकिन बिहार जैसे राज्यों में यह पर्याप्त नहीं, जहां बेरोजगारी ऊंची है।किन बिहार जैसे राज्यों में बेरोजगारी और कम आय के बीच टैक्स का बोझ असहनीय है। बिहारवासियों को रोजगार चाहिए, न कि टैक्स की मार।


    निष्कर्ष: उद्योग लगाओ, पलायन रोको


    बिहार का विकास मंदिरों और ट्रेनों से नहीं, बल्कि उद्योगों से होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को गुजरात मॉडल अपनाना चाहिए—उद्यमियों की सुरक्षा, FDI आकर्षित करना। जातिवादी राजनीति छोड़कर रोजगार पर फोकस करें। अन्यथा, बिहारी मजदूरों का अपमान और पलायन जारी रहेगा। मोदी सरकार की तीसरी पारी में वादों को हकीकत बनाएं—बिहार को 'क्राइम कैपिटल' से 'इंडस्ट्री हब' बनाएं।


    हमारी राय: मोदी सरकार और बिहार नेताओं की प्राथमिकताएं गलत हैं—ट्रेनें पलायन आसान बनाती हैं, मंदिर चुनावी लाभ देते हैं, लेकिन उद्योग ही विकास लाएंगे। जातिवाद छोड़कर रोजगार पर फोकस करें, वरना बिहार पिछड़ता रहेगा। टैक्स राहत अच्छी, लेकिन अप्रत्यक्ष बोझ कम करें। बिहारवासियों का अपमान रुकना चाहिए—उद्योग लगाओ, आत्मनिर्भर बनाओ।मंदिर और ट्रेनें बिहार की सांस्कृतिक पहचान को चमकाती हैं, लेकिन पलायन और बेरोजगारी का दर्द मिटाने के लिए उद्योग जरूरी हैं। नीतीश कुमार की 'सुशासन' छवि धुंधली हो रही है, और मोदी सरकार की तीसरी पारी में बिहार को प्राथमिकता चाहिए। जातिवादी सियासत छोड़कर नेताओं को बिहारी मजदूरों के अपमान को समझना होगा। गुजरात में उद्योग लग सकते हैं, तो बिहार में क्यों नहीं? केंद्र और राज्य सरकार मिलकर बिहार को 'क्राइम कैपिटल' से 'इंडस्ट्री हब' बनाएं, ताकि बिहारवासी सिर उठाकर जी सकें।

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    लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं और लोकतंत्र की रक्षा में सक्रिय जन-लेखन से जुड़े हुए हैं।



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    1 टिप्पणी:

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