बुलंदशहर स्याना हिंसा और कोतवाल हत्याकांड: पांच दोषियों को उम्रकैद, 33 को सात साल की सजा
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📰 By: राजकुमार चौहान
बुलंदशहर, 01 अगस्त 2025: -लगभग साढ़े छह साल बाद, बुलंदशहर के स्याना हिंसा और तत्कालीन कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार हत्याकांड में अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। एडीजे-12 गोपाल जी की अदालत ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या के पांच दोषियों को आजीवन कारावास और हिंसा के 33 अन्य दोषियों को सात-सात वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। दोषियों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है।
क्या था मामला?
3 दिसंबर 2018 को स्याना कोतवाली क्षेत्र के महाव गांव में गोवंशी के अवशेष मिलने की घटना ने हिंसा का रूप ले लिया था। बुलंदशहर में आयोजित एक धार्मिक सभा (इज्तमा) के दौरान गोवंशी मांस ले जाने की अफवाह फैल गई। इसके बाद नया बांस, हरवानपुर, चिंगरावठी और महाव गांवों के ग्रामीणों सहित कुछ हिंदू संगठनों के लोगों ने बुलंदशहर-स्याना मार्ग पर जाम लगा दिया और हिंसा व आगजनी की। इस दौरान स्याना कोतवाली के प्रभारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की उनकी ही सरकारी पिस्टल से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
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कोतवाल हत्याकांड के दोषी
अदालत ने हत्या के मामले में पांच लोगों को दोषी ठहराया। इनमें शामिल हैं:
- प्रशांत नट, पुत्र सुरेंद्र, निवासी चिंगरावठी, थाना स्याना
- डेविड, पुत्र महीपाल, निवासी चिंगरावठी, थाना स्याना
- लोकेंद्र, पुत्र वीर सिंह, निवासी चिंगरावठी, थाना स्याना
- जोनी, पुत्र सुशील कुमार, निवासी चिंगरावठी, थाना स्याना
- राहुल, पुत्र भीमसेन, निवासी हरवानपुर, थाना स्याना
इन सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
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हिंसा के 33 दोषियों को सात साल की सजा
हिंसा और आगजनी के मामले में 33 अन्य दोषियों को सात-सात वर्ष के कारावास की सजा दी गई है। इनमें बीजेपी बीबीनगर मंडल अध्यक्ष सचिन अहलावत और जिला पंचायत सदस्य योगेश राज भी शामिल हैं।
पुलिस ने दाखिल किया था 44 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र
पुलिस ने इस मामले में 44 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। इनमें से पांच की मृत्यु हो चुकी है, और एक बाल अपचारी को पहले ही रिहा किया जा चुका है। बुधवार को अदालत ने सभी दोषियों को जेल भेजने का आदेश दिया।
मानवीय दृष्टिकोण
यह घटना न केवल बुलंदशहर, बल्कि पूरे देश के लिए एक दुखद अध्याय थी। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या ने कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए थे। साढ़े छह साल बाद आए इस फैसले से पीड़ित परिवार को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, लेकिन यह घटना सामाजिक सौहार्द और शांति के महत्व को रेखांकित करती है।
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