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    भगवा आतंकवाद: 17 साल की साज़िश का अंत, लेकिन न्याय अभी अधूरा है

    भगवा आतंकवाद: 17 साल की साज़िश का अंत, लेकिन न्याय अभी अधूरा है

    We News 24

    🔥 जब “भगवा आतंकवाद” शब्द गढ़ा गया..

    📰 By: वरिष्ट पत्रकार  दीपक कुमार



    नई दिल्ली :- वर्ष 2008। मुंबई हमलों के कुछ ही महीने पहले, एक शब्द भारतीय राजनीति और मीडिया में गूंजने लगा — "भगवा आतंकवाद"
    इस शब्द का शुरुआती प्रयोग राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने के लिए किया गया था। माना जाता है कि सबसे पहले एनसीपी नेता शरद पवार ने इसकी चर्चा की, और बाद में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में इसे औपचारिक रूप से उपयोग किया।

    उन्होंने कथित रूप से कहा था कि "हिंदू आतंकवाद देश के लिए खतरनाक रूप ले रहा है", और इसके पीछे संघ परिवार से जुड़े संगठन जिम्मेदार हैं।



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    🧨 मालेगांव ब्लास्ट और निर्दोषों की फंसाने की पटकथा

    29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोगों की जान गई और 100 से अधिक घायल हुए।
    जांच की दिशा जल्द ही बदल दी गई। ATS (Anti-Terrorism Squad) ने कुछ मुस्लिम युवकों को छोड़कर हिंदू साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, सेना के मेजर रमेश उपाध्याय, और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित जैसे अधिकारियों पर आरोप लगाया।

    इन पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत मुकदमा चला, और उन्हें सालों तक जेल में रहना पड़ा।
    लेकिन 17 साल बाद, सबूतों के अभाव में सभी आरोपी कोर्ट द्वारा बरी कर दिए गए।



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    📜 अदालत ने कहा: “कोई पुख्ता सबूत नहीं”

    जून 2025 में मुंबई NIA कोर्ट ने यह स्पष्ट कहा कि अभियोजन पक्ष इन लोगों के खिलाफ "किसी भी प्रकार का विश्वसनीय और प्रत्यक्ष साक्ष्य" नहीं दे सका।
    न्यायालय ने प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित, स्वामी असीमानंद, और अन्य को सभी गंभीर धाराओं से मुक्त कर दिया।


    😔 सवाल यह नहीं कि वे बरी हुए… सवाल यह है कि 17 साल बाद क्यों?

    • किसने इनके जीवन के 17 साल छीन लिए?
    • क्या कोई मुआवज़ा मिलेगा उन वर्षों का जो वापस नहीं आएंगे?
    • क्या उस समय के अफसरों, नेताओं, और एजेंसियों पर कोई जवाबदेही तय होगी?
    • क्या कांग्रेस की हिंदू-विरोधी राजनीति इसके लिए दोषी मानी जाएगी?



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    🧍‍♂️ एक सैनिक का करियर, एक साध्वी की ज़िंदगी, एक नागरिक का सम्मान… सब कुछ लुट गया

    • कर्नल श्रीकांत पुरोहित, जो भारतीय सेना में कार्यरत थे, उन पर देशद्रोह का आरोप लगा और उन्हें सालों जेल में रहना पड़ा।

    • प्रज्ञा ठाकुर, एक आध्यात्मिक महिला, जेल में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुईं।

    • स्वामी असीमानंद, जो सामाजिक कार्य कर रहे थे, उन पर भी झूठा आतंकवाद का ठप्पा लगाया गया।

    क्या इस सबका हर्जाना सिर्फ “बरी कर दिया गया” है?


    ⚖️ कौन है जिम्मेदार?

    1. राजनीतिक षड्यंत्र: कांग्रेस नेतृत्व की हिंदू विरोधी मानसिकता।

    2. जांच एजेंसियों की दुर्भावना: ATS और तत्कालीन महाराष्ट्र पुलिस।

    3. मीडिया ट्रायल: जिसने बिना तथ्यों के इन लोगों को आतंकवादी ठहराया।

    4. न्याय प्रणाली की देरी: जिसने दशकों तक मुकदमा खींचा और फैसला देने में समय लिया।


    🗣️ क्या मिलना चाहिए?

    • सरकारी मुआवज़ा और सम्मान पुनर्स्थापन

    • दोषी अफसरों और राजनेताओं पर आपराधिक कार्यवाही

    • जनता से सार्वजनिक माफ़ी

    • न्यायिक आयोग की स्थापना जो यह जांचे कि ऐसी झूठी केसिंग दोबारा न हो


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    📢 निष्कर्ष: ये सिर्फ़ एक केस नहीं, एक मानसिकता की पोल है

    मालेगांव ब्लास्ट केस की वास्तविकता भारत की न्याय प्रणाली, उसकी राजनीतिक विफलताओं, और जातिगत-सांप्रदायिक एजेंडों को उजागर करती है।
    यह केवल एक केस नहीं, बल्कि हिंदुओं को बदनाम करने की सुनियोजित साज़िश का हिस्सा था — जिसका शिकार वे लोग बने जो अब शायद फिर कभी पहले जैसे न हो पाएं।


    🙏 सच्चा न्याय तब होगा, जब दोषियों को सज़ा और पीड़ितों को मुआवज़ा मिलेगा।


     

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