भगवा आतंकवाद: 17 साल की साज़िश का अंत, लेकिन न्याय अभी अधूरा है
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🔥 जब “भगवा आतंकवाद” शब्द गढ़ा गया..
📰 By: वरिष्ट पत्रकार दीपक कुमार
उन्होंने कथित रूप से कहा था कि "हिंदू आतंकवाद देश के लिए खतरनाक रूप ले रहा है", और इसके पीछे संघ परिवार से जुड़े संगठन जिम्मेदार हैं।
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📜 अदालत ने कहा: “कोई पुख्ता सबूत नहीं”
😔 सवाल यह नहीं कि वे बरी हुए… सवाल यह है कि 17 साल बाद क्यों?
- किसने इनके जीवन के 17 साल छीन लिए?
- क्या कोई मुआवज़ा मिलेगा उन वर्षों का जो वापस नहीं आएंगे?
- क्या उस समय के अफसरों, नेताओं, और एजेंसियों पर कोई जवाबदेही तय होगी?
- क्या कांग्रेस की हिंदू-विरोधी राजनीति इसके लिए दोषी मानी जाएगी?
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🧍♂️ एक सैनिक का करियर, एक साध्वी की ज़िंदगी, एक नागरिक का सम्मान… सब कुछ लुट गया
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कर्नल श्रीकांत पुरोहित, जो भारतीय सेना में कार्यरत थे, उन पर देशद्रोह का आरोप लगा और उन्हें सालों जेल में रहना पड़ा।
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प्रज्ञा ठाकुर, एक आध्यात्मिक महिला, जेल में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुईं।
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स्वामी असीमानंद, जो सामाजिक कार्य कर रहे थे, उन पर भी झूठा आतंकवाद का ठप्पा लगाया गया।
क्या इस सबका हर्जाना सिर्फ “बरी कर दिया गया” है?
⚖️ कौन है जिम्मेदार?
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राजनीतिक षड्यंत्र: कांग्रेस नेतृत्व की हिंदू विरोधी मानसिकता।
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जांच एजेंसियों की दुर्भावना: ATS और तत्कालीन महाराष्ट्र पुलिस।
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मीडिया ट्रायल: जिसने बिना तथ्यों के इन लोगों को आतंकवादी ठहराया।
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न्याय प्रणाली की देरी: जिसने दशकों तक मुकदमा खींचा और फैसला देने में समय लिया।
🗣️ क्या मिलना चाहिए?
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सरकारी मुआवज़ा और सम्मान पुनर्स्थापन
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दोषी अफसरों और राजनेताओं पर आपराधिक कार्यवाही
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जनता से सार्वजनिक माफ़ी
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न्यायिक आयोग की स्थापना जो यह जांचे कि ऐसी झूठी केसिंग दोबारा न हो
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📢 निष्कर्ष: ये सिर्फ़ एक केस नहीं, एक मानसिकता की पोल है
🙏 सच्चा न्याय तब होगा, जब दोषियों को सज़ा और पीड़ितों को मुआवज़ा मिलेगा।
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