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    गवाह का बड़ा खुलासा: मालेगांव ब्लास्ट केस में योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत को फंसाने की थी साज़िश!

    गवाह का बड़ा खुलासा: मालेगांव ब्लास्ट केस में योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत को फंसाने की थी साज़िश!


    📝 We News 24

    » रिपोर्टिंग सूत्र / विवेक श्रीवास्तव

    मुंबई, 02 अगस्त 2025: 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एक गवाह ने विशेष एनआईए अदालत में दावा किया कि महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) ने उसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य प्रमुख व्यक्तियों का नाम लेने के लिए मजबूर किया था। विशेष जज ए.के. लाहोटी ने गुरुवार (31 जुलाई 2025) को सभी सात आरोपियों, जिसमें पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित शामिल हैं, को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अदालत ने गवाह के बयान को अनैच्छिक और अविश्वसनीय करार देते हुए खारिज कर दिया।


    गवाह पर दबाव का सनसनीखेज आरोप

    शुक्रवार को उपलब्ध 1,000 पन्नों के विस्तृत फैसले में खुलासा हुआ कि गवाह मिलिंद जोशीराव से अक्टूबर 2008 में महाराष्ट्र एटीएस ने दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के कामकाज और रायगढ़ किले पर हुई कथित बैठक के बारे में पूछताछ की थी। इस बैठक में आरोपियों ने कथित तौर पर एक अलग हिंदू राष्ट्र बनाने की शपथ ली थी।

    मिलिंद ने अदालत में बताया कि एटीएस ने उनसे योगी आदित्यनाथ, स्वामी असीमानंद, इंद्रेश कुमार, प्रोफेसर देवधर, प्रज्ञा सिंह ठाकुर और काकाजी का नाम अपने बयान में शामिल करने का दबाव डाला। गवाह के अनुसार, एटीएस अधिकारियों ने कहा कि यदि वह इन नामों को शामिल करता है, तो उसे रिहा कर दिया जाएगा। जब मिलिंद ने इससे इनकार किया, तो तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर श्रीराव और असिस्टेंट कमिश्नर परमबीर सिंह ने उसे यातना का डर दिखाया और धमकियां दीं। गवाह ने यह भी दावा किया कि उसका बयान एटीएस अधिकारियों द्वारा लिखा गया था, न कि उसकी अपनी इच्छा से।



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    अदालत का फैसला: बयान अनैच्छिक और अविश्वसनीय

    विशेष जज ए.के. लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि गवाह का बयान अनैच्छिक था और इसकी सत्यता और स्वीकार्यता पर सवाल उठते हैं। अदालत ने स्पष्ट किया, "जब कोई बयान दबाव में या अनिच्छा से दिया जाता है, और उसमें तथ्यों की वास्तविक जानकारी नहीं होती, तो वह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।" इसके आधार पर, अदालत ने गवाह के बयान को खारिज कर दिया।

    अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करने में विफल रहा। परिणामस्वरूप, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय रहीरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धर द्विवेदी को बरी कर दिया गया।


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    मालेगांव ब्लास्ट केस: पृष्ठभूमि

    29 सितंबर 2008 को, महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर रखे गए बम में विस्फोट हुआ, जिसमें 6 लोग मारे गए और 101 घायल हुए। यह विस्फोट रमजान के पवित्र महीने और नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था। महाराष्ट्र एटीएस ने दावा किया था कि यह हमला अभिनव भारत संगठन द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय में दहशत फैलाना था। जांच में यूएपीए और मकोका जैसे कड़े कानूनों को लागू किया गया था।

    2011 में, जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया, जिसने बाद में प्रज्ञा ठाकुर सहित कई आरोपियों के खिलाफ आरोप हटा दिए। हालांकि, अदालत ने प्रारंभिक साक्ष्यों के आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। 17 साल तक चले इस मुकदमे में 323 गवाहों की जांच की गई, जिसमें 39 गवाह मुकर गए और 282 ने अभियोजन का समर्थन किया


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    जांच पर उठे सवाल

    इस मामले ने महाराष्ट्र एटीएस की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। गवाह मिलिंद जोशीराव ने दावा किया कि उसे 28 अक्टूबर से 7 नवंबर 2008 तक अवैध हिरासत में रखा गया और यातना दी गई। इसके अलावा, एक पूर्व एटीएस अधिकारी महबूब मुजावर ने भी दावा किया कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था, ताकि 'भगवा आतंकवाद' का नैरेटिव बनाया जा सके।

    अदालत ने न केवल गवाह के बयान को खारिज किया, बल्कि यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य में कई असंगतियां थीं। उदाहरण के लिए, यह साबित नहीं हुआ कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी या उनके कब्जे में थी। साथ ही, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर आरडीएक्स लाने और संग्रह करने के आरोप भी सिद्ध नहीं हुए।

    पीड़ितों का दर्द और प्रतिक्रियाएं

    मालेगांव ब्लास्ट के पीड़ितों के वकील शाहिद नदीम ने कहा कि इस मुकदमे में न केवल आरोपियों, बल्कि पीड़ितों की भी परीक्षा हुई। कई घायल पीड़ितों को अपनी चोटें दिखाने के लिए 300 किलोमीटर दूर मुंबई की अदालत में जाना पड़ा। पीड़ितों के परिवारों ने फैसले पर निराशा व्यक्त की, लेकिन कुछ नेताओं ने इसे 'सत्य की जीत' करार दिया।

    उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह कांग्रेस द्वारा बनाए गए 'भगवा आतंकवाद' के झूठे नैरेटिव को उजागर करता है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी कहा कि "सत्य कभी पराजित नहीं होता।"

    अंतिम बात 

    मालेगांव ब्लास्ट केस ने न केवल जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था में साक्ष्यों की प्रामाणिकता और निष्पक्षता के महत्व को भी रेखांकित किया। 17 साल बाद आए इस फैसले ने कई सवालों को जन्म दिया है, खासकर गवाहों पर दबाव और जांच में कथित राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में। यह मामला भविष्य में निष्पक्ष जांच और न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देता है।

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