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    भारत ने रूस से तेल आयात जारी रखा: ट्रंप के 25% टैरिफ के बावजूद रणनीतिक फैसला

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    We News 24 »रिपोर्टिंग सूत्र  / काजल कुमारी 

    नई दिल्ली, 02 अगस्त 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे के उलट, भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखने का फैसला किया है। ट्रंप ने हाल ही में दावा किया था कि भारत ने रूस से तेल आयात बंद कर दिया है, लेकिन सूत्रों ने पुष्टि की है कि भारत रूसी आपूर्तिकर्ताओं से तेल खरीदना जारी रखेगा। यह निर्णय कीमत, कच्चे तेल की गुणवत्ता, लॉजिस्टिक्स और आर्थिक कारणों पर आधारित है।

    ट्रंप का टैरिफ और दावा

    30 जुलाई 2025 को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जो पहले 1 अगस्त से लागू होने वाला था, लेकिन बाद में इसे 7 अगस्त तक स्थगित कर दिया गया। ट्रंप प्रशासन ने भारत के रूस से तेल खरीदने को रूस-यूक्रेन युद्ध में मॉस्को की आर्थिक मदद के रूप में देखा, जिसके कारण यह टैरिफ लगाया गया। ट्रंप ने शनिवार को दावा किया, "मेरी समझ है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। यह एक अच्छा कदम है। अब देखना होगा कि आगे क्या होता है।"



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    हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस दावे पर सतर्क प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हम तेल की उपलब्धता और वैश्विक स्थिति के आधार पर फैसले लेते हैं। मुझे इसकी जानकारी नहीं है।" यह बयान भारत की स्वतंत्र और रणनीतिक ऊर्जा नीति को दर्शाता है।


    रूस: दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक

    रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक देश है, जो प्रतिदिन 9.5 मिलियन बैरल तेल उत्पादन करता है, जो वैश्विक मांग का लगभग 10% है। यह देश 4.5 मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चा तेल और 2.3 मिलियन बैरल प्रति दिन परिष्कृत उत्पादों का निर्यात करता है। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी तेल के बाजार से हटने की आशंका ने तेल की कीमतों को 137 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा दिया था। इस दौरान भारत ने रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदकर वैश्विक तेल बाजार को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85% आयात करता है, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है। रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जो 2025 के पहले छह महीनों में भारत की कुल तेल आपूर्ति का 35% प्रदान करता है।



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    भारत की रणनीति और वैश्विक संदर्भ

    सूत्रों ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि रूसी तेल पर कभी पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा। इसके बजाय, G7/यूरोपीय संघ ने रूसी तेल के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू की थी, ताकि रूस का राजस्व सीमित रहे और वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति बनी रहे। भारत ने इस मूल्य सीमा का पालन करते हुए रूसी तेल खरीदा, जो पूरी तरह से वैध और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है।

    सूत्रों ने यह भी बताया कि यदि भारत ने रियायती रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो ओपेक की उत्पादन कटौती के कारण तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो सकती थीं, जिससे वैश्विक महंगाई बढ़ती। इसके विपरीत, भारत की रणनीति ने तेल बाजार को तरल और कीमतों को स्थिर रखने में मदद की।


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    यूरोपीय संघ और अन्य देशों की स्थिति

    सूत्रों ने बताया कि जब भारत रूस से तेल खरीद रहा था, उसी दौरान यूरोपीय संघ रूस की तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का सबसे बड़ा आयातक था, जो रूस के कुल एलएनजी निर्यात का 51% था। इसके बाद चीन (21%) और जापान (18%) का स्थान रहा। इसी तरह, रूस की पाइपलाइन गैस का 37% यूरोपीय संघ30% चीन, और 27% तुर्की ने खरीदा। भारत ने ईरान या वेनेजुएला जैसे प्रतिबंधित देशों से तेल नहीं खरीदा, बल्कि रूसी तेल की खरीद को G7 की मूल्य सीमा के तहत रखा।

    भारत का रुख और भविष्य

    भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए रूस से तेल खरीदने का निर्णय लिया है। यह निर्णय न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। ट्रंप के 25% टैरिफ और अतिरिक्त "पेनल्टी" की धमकी के बावजूद, भारत ने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए अपनी नीति स्पष्ट की है। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है, और भारत ने इसे "निष्पक्ष और पारस्परिक रूप से लाभकारी" बनाने की प्रतिबद्धता जताई है।



    अंतिम बात 

    भारत का रूस से तेल खरीदना न केवल उसकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि वैश्विक तेल बाजार की स्थिरता में भी योगदान देता है। ट्रंप के टैरिफ और दावों के बावजूद, भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश और ऊर्जा नीति को बनाए रखा है। यह कदम भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक हितों को दर्शाता है, जो वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को और मजबूत करता है।


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