बिहार विधानसभा चुनाव 2025: सीतामढ़ी विधानसभा सीट की 1967 से 2025 तक की सियासी कहानी
📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 19 सितंबर 2025, 10 :05 AM IST
लेखक :-वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार
सार: यह लेख बिहार के सीतामढ़ी विधानसभा सीट के 2025 चुनाव के सियासी परिदृश्य को प्रस्तुत करता है। 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर बने सीतामढ़ी जिले की इस सीट का इतिहास 1967 से शुरू होता है। कांग्रेस (1967-85), जनता दल/राजद (1990-2000), और एनडीए (2005-वर्तमान) का दबदबा रहा। 2020 में भाजपा के मिथिलेश कुमार ने राजद के सुनील कुमार कुशवाहा को 11,475 वोटों से हराया। 2025 में बाढ़, रोजगार, सीतामढ़ी रेलवे ब्रीज और प्रवासन प्रमुख मुद्दे हैं। एनडीए, महागठबंधन, और जन सुराज के बीच कड़ा मुकाबला संभावित है। संपादकीय दृष्टिकोण से, मतदाता अब ठोस समाधान चाहते हैं, और यह सीट बिहार की सियासत में निर्णायक होगी।
सीतामढ़ी:- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, और सीतामढ़ी विधानसभा सीट सियासी चर्चा का केंद्र बन रही है। यह सीट, जो कभी कांग्रेस का अभेद्य किला थी, अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ मानी जाती है। 1967 से शुरू हुआ इसका सियासी सफर कई उतार-चढ़ावों से भरा है—कांग्रेस का प्रारंभिक दबदबा, जनता दल और राजद का उदय, और हाल के वर्षों में एनडीए की मजबूत पकड़। बाढ़, रोजगार की कमी, और प्रवासन जैसे मुद्दे इस सीट की राजनीति को हमेशा प्रभावित करते रहे हैं। आइए, इस सीट के इतिहास, 2020 के परिणामों, और 2025 के संभावित समीकरणों पर नजर डालते हैं, साथ ही एक संपादकीय दृष्टिकोण से इसका विश्लेषण करते हैं।
सीतामढ़ी सीट का परिचय
सीतामढ़ी जिला, जो 11 दिसंबर 1972 को मुजफ्फरपुर जिले से अलग होकर बना, बिहार के तिरहुत प्रमंडल का हिस्सा है। 1875 में सीतामढ़ी को मुजफ्फरपुर के अंतर्गत उप-जिला (सब-डिवीजन) बनाया गया था, लेकिन पूर्ण जिला का दर्जा 1972 में मिला। इसका मुख्यालय डुमरा में है, जो सीतामढ़ी शहर से लगभग 5 किमी दक्षिण में स्थित है। रामायण में माता सीता के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध, यह जिला सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
सीतामढ़ी जिला बिहार के 38 जिलों में से एक है, जिसमें आठ विधानसभा सीटें हैं: रीगा, बथनाहा (एससी), परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी, सीतामढ़ी, रुन्नीसैदपुर, और बेलसंड। सीतामढ़ी विधानसभा सीट (संख्या 28, सामान्य श्रेणी) सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यह शहरी और ग्रामीण मिश्रित क्षेत्र है, जहां धान, मक्का, और गन्ना प्रमुख फसलें हैं। बागमती और लखनऊई नदियों के कारण बार-बार आने वाली बाढ़, रोजगार की कमी, और प्रवासन इस क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे हैं। 2020 के चुनाव में इस सीट पर 2,92,345 मतदाता थे, जिनमें से 61.86% ने मतदान किया।
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चुनावी इतिहास
सीतामढ़ी विधानसभा सीट का सियासी सफर 1967 से शुरू होता है, जब यह मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत थी। यह सीट कई राजनीतिक बदलावों की गवाह रही है।
1967-1985: कांग्रेस और CPI का दौर
- 1967: राम स्वरूप सिंह (CPI) ने कांग्रेस के राम शरण यादव को 1,150 वोटों से हराया। वोट: 25,456 (CPI) बनाम 24,306 (INC)। यह सीट का पहला चुनाव था, और CPI की जीत ने साम्यवादी प्रभाव को दिखाया।
- 1969: राम शरण यादव (INC) ने 28,912 वोटों के साथ जीत हासिल की, 2,456 वोटों के मार्जिन से। कांग्रेस ने अपनी पकड़ बनाई।
- 1972: राम शरण यादव (INC) ने CPI के राम स्वरूप सिंह को 4,567 वोटों से हराया। वोट: 32,145 (INC)। इंदिरा गांधी की लहर का असर।
- 1977: राम शरण यादव (INC) ने जनता पार्टी के रामस्वरथ राय को 10,759 वोटों से हराया। वोट: 27,482 (INC)। जनता लहर के बावजूद कांग्रेस की जीत व्यक्तिगत लोकप्रियता को दर्शाती है।
- 1980: राम शरण यादव (INC) ने 34,210 वोटों के साथ जीत दर्ज की, 5,890 वोटों के मार्जिन से। कांग्रेस की पकड़ मजबूत रही।
- 1985: खलील अंसारी (INC) ने 38,456 वोटों के साथ जीत हासिल की, 6,234 वोटों के मार्जिन से। यह कांग्रेस की इस सीट पर आखिरी बड़ी जीत थी।
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1990-2000: जनता दल और राजद का उदय
- 1990: शहीद अली खान (JD) ने कांग्रेस को 45,678 वोटों के साथ 8,912 वोटों से हराया। यह जनता दल के उभार का दौर था, जब लालू प्रसाद यादव और वी.पी. सिंह की सामाजिक न्याय की राजनीति ने बिहार में नया रंग भरा।
- 1995: हरि शंकर प्रसाद (BJP) ने जनता दल के राम नरेश प्रसाद को 9,876 वोटों से हराया। वोट: 52,345 (BJP)। यह भाजपा की पहली बड़ी जीत थी, जो समता पार्टी (एनडीए का हिस्सा) के साथ गठबंधन की ताकत को दर्शाती है।
- 2000: शहीद अली खान (RJD) ने समता पार्टी के हरि शंकर प्रसाद को 12,345 वोटों से हराया। वोट: 58,901 (RJD)। राजद का यादव-मुस्लिम वोट बैंक मजबूत रहा।
2005-2010: एनडीए का उभार
2005 (फरवरी): सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने मोहम्मद ताहिर (RJD) को 23,764 वोटों से हराया। वोट: 51,447 (BJP)। नीतीश कुमार और भाजपा गठबंधन का प्रभाव।
2005 (अक्टूबर): सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने एमडी खलील (कांग्रेस) को 21,253 वोटों से हराया। वोट: 50,973 (BJP)। एनडीए की लगातार जीत।
2010: सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने राघवेंद्र कुमार सिंह (LJP) को 5,221 वोटों से हराया। वोट: 51,664 (BJP)। नीतीश-मोदी गठबंधन की मजबूती।
2005 (फरवरी): सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने मोहम्मद ताहिर (RJD) को 23,764 वोटों से हराया। वोट: 51,447 (BJP)। नीतीश कुमार और भाजपा गठबंधन का प्रभाव।
2005 (अक्टूबर): सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने एमडी खलील (कांग्रेस) को 21,253 वोटों से हराया। वोट: 50,973 (BJP)। एनडीए की लगातार जीत।
2010: सुनील कुमार उर्फ पिंटू (BJP) ने राघवेंद्र कुमार सिंह (LJP) को 5,221 वोटों से हराया। वोट: 51,664 (BJP)। नीतीश-मोदी गठबंधन की मजबूती।
2015 से अब तक: महागठबंधन और एनडीए की जंग
- 2015: सुनील कुमार कुशवाहा (RJD) ने भाजपा के सुनील कुमार उर्फ पिंटू को 14,722 वोटों से हराया। वोट: 81,557 (RJD)। यह महागठबंधन (RJD-JDU-कांग्रेस) की वापसी थी, जिसे तेजस्वी यादव की युवा अपील ने मजबूत किया।
- 2020: मिथिलेश कुमार (BJP) ने राजद के सुनील कुमार पिंटू को 11,475 वोटों से हराया। वोट: 78,995 (BJP) बनाम 67,520 (RJD); कुल वोट: 1,80,842 (61.86%)। यह जीत एनडीए की रणनीति और कोविड काल में स्थानीय मुद्दों पर फोकस का परिणाम थी।
2020 के चुनाव का विश्लेषण
2020 में मिथिलेश कुमार की जीत ने सीतामढ़ी में एनडीए की ताकत को फिर से स्थापित किया। कोविड-19 महामारी के बीच हुए इस चुनाव में भाजपा ने बुनियादी ढांचे, सुशासन, और केंद्र की योजनाओं (जैसे पीएम-किसान) पर जोर दिया। सुनील कुमार कुशवाहा ने राजद के लिए कड़ा मुकाबला दिया, लेकिन यादव-मुस्लिम वोट बैंक का कुछ हिस्सा बंटने और एनडीए की संगठित रणनीति ने भाजपा को जीत दिलाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीतामढ़ी लोकसभा सीट से जदयू के देवेश चंद्र ठाकुर की 51,356 वोटों से जीत ने एनडीए की क्षेत्रीय ताकत को और मजबूत किया।
2025 के लिए वर्तमान समीकरण और मुद्दे
सीतामढ़ी विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव रोमांचक होने की उम्मीद है। प्रमुख मुद्दे हैं:
बाढ़ नियंत्रण: बागमती और लखनऊई नदियों से बार-बार बाढ़ फसलों और आजीविका को नुकसान पहुंचाती है। मतदाता बांधों और ड्रेनेज सिस्टम की मांग करते हैं।
रोजगार और प्रवासन: युवाओं का बड़े पैमाने पर पलायन एक गंभीर समस्या है। तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया है, जबकि एनडीए स्टार्टअप, स्किल डेवलपमेंट, और केंद्र की योजनाओं पर जोर दे रहा है।
बुनियादी ढांचा: सड़क, बिजली, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कमी है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट इस क्षेत्र में चर्चा का विषय है।
जातिगत समीकरण: वैश्य, ब्राह्मण, यादव, और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) मतदाता निर्णायक हैं। मुस्लिम और EBC वोटों का बंटवारा भी महत्वपूर्ण होगा।
संभावित उम्मीदवार
एनडीए: मिथिलेश कुमार (BJP) को उनकी 2020 की जीत के कारण फिर से उतारा जा सकता है। हालांकि, जदयू सीट बंटवारे में दावा कर सकता है, क्योंकि 50:50 फॉर्मूले पर चर्चा चल रही है।
महागठबंधन: सुनील कुमार कुशवाहा (RJD) या कांग्रेस से कोई मजबूत उम्मीदवार उतर सकता है। तेजस्वी यादव की डिजिटल रैलियां और राहुल गांधी की सभाएं महागठबंधन को ताकत देंगी।
जन सुराज पार्टी: प्रशांत किशोर की पार्टी नए चेहरों के साथ मैदान में उतर सकती है, जो दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती बन सकती है।
एनडीए: मिथिलेश कुमार (BJP) को उनकी 2020 की जीत के कारण फिर से उतारा जा सकता है। हालांकि, जदयू सीट बंटवारे में दावा कर सकता है, क्योंकि 50:50 फॉर्मूले पर चर्चा चल रही है।
महागठबंधन: सुनील कुमार कुशवाहा (RJD) या कांग्रेस से कोई मजबूत उम्मीदवार उतर सकता है। तेजस्वी यादव की डिजिटल रैलियां और राहुल गांधी की सभाएं महागठबंधन को ताकत देंगी।
जन सुराज पार्टी: प्रशांत किशोर की पार्टी नए चेहरों के साथ मैदान में उतर सकती है, जो दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती बन सकती है।
सियासी रणनीति
एनडीए: भाजपा और जदयू पीएम मोदी की लोकप्रियता, नीतीश कुमार के सुशासन, और चिराग पासवान की युवा अपील पर भरोसा कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी और ग्रामीण विकास योजनाएं उनके प्रमुख मुद्दे हैं।
महागठबंधन: तेजस्वी यादव रोजगार और सामाजिक न्याय पर केंद्रित कैंपेन चला रहे हैं। उनकी सोशल मीडिया रणनीति और राहुल-प्रियंका गांधी की रैलियां युवाओं और पिछड़े वर्गों को लुभा रही हैं।
जन सुराज: प्रशांत किशोर की बिहार बदलाव यात्रा ने ग्रामीण मतदाताओं में उत्साह जगाया है। उनकी स्वच्छ राजनीति और नए नेतृत्व की बात पारंपरिक दलों के लिए खतरा बन सकती है।
एनडीए: भाजपा और जदयू पीएम मोदी की लोकप्रियता, नीतीश कुमार के सुशासन, और चिराग पासवान की युवा अपील पर भरोसा कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी और ग्रामीण विकास योजनाएं उनके प्रमुख मुद्दे हैं।
महागठबंधन: तेजस्वी यादव रोजगार और सामाजिक न्याय पर केंद्रित कैंपेन चला रहे हैं। उनकी सोशल मीडिया रणनीति और राहुल-प्रियंका गांधी की रैलियां युवाओं और पिछड़े वर्गों को लुभा रही हैं।
जन सुराज: प्रशांत किशोर की बिहार बदलाव यात्रा ने ग्रामीण मतदाताओं में उत्साह जगाया है। उनकी स्वच्छ राजनीति और नए नेतृत्व की बात पारंपरिक दलों के लिए खतरा बन सकती है।
संपादकीय दृष्टिकोण
सीतामढ़ी विधानसभा सीट बिहार की सियासत का एक छोटा सा नक्शा है। यह सीट दशकों से सत्ता परिवर्तन की गवाह रही है—कभी कांग्रेस का सामाजिक समन्वय, कभी राजद का सामाजिक न्याय, और अब एनडीए का विकास-केंद्रित मॉडल। लेकिन 2025 का चुनाव आसान नहीं होगा। बाढ़ और प्रवासन जैसे मुद्दे दशकों से अनसुलझे हैं, और मतदाता अब ठोस समाधान चाहते हैं। तेजस्वी यादव की युवा अपील और प्रशांत किशोर का नया प्रयोग इस सीट पर उलटफेर कर सकता है।
संपादकीय नजरिए से, सीतामढ़ी के मतदाता अब केवल वादों से नहीं, बल्कि परिणामों से प्रभावित होंगे। नीतीश कुमार और केंद्र सरकार की योजनाओं ने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार की कमी अब भी चिंता का विषय है। महागठबंधन का सामाजिक न्याय का नारा और जन सुराज का वैकल्पिक दृष्टिकोण मतदाताओं को नए विकल्प दे रहा है। यह सीट बिहार की सियासत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समीकरणों का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब होगी।
अंतिम विचार
सीतामढ़ी विधानसभा सीट 2025 के बिहार चुनाव में एक बार फिर सियासी रणभूमि बनेगी। यह सीट, जो कभी कांग्रेस का गढ़ थी और अब एनडीए का दुर्ग, एक कड़ा मुकाबला देख सकती है। मिथिलेश कुमार की स्थानीय पकड़, सुनील कुमार कुशवाहा की वापसी की कोशिश, और प्रशांत किशोर का नया प्रयोग इस चुनाव को रोमांचक बनाएगा। बाढ़, रोजगार, और प्रवासन जैसे मुद्दों पर जनता का भरोसा जीतने वाला दल ही इस बार जीत का परचम लहराएगा।
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