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    हजरतबल दरगाह विवाद: अशोक चिह्न तोड़ने पर सजा और धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक के उपयोग पर बहस

    हजरतबल दरगाह विवाद


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क »

    रिपोर्टर  : गौतम कुमार 


    श्रीनगर, 8 सितंबर 2025: जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न को तोड़े जाने की घटना ने सांप्रदायिक और कानूनी विवाद को जन्म दे दिया है। दरगाह के सौंदर्यीकरण के दौरान एक बोर्ड पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था, जिसे कुछ लोगों ने इस्लामिक मान्यताओं का हवाला देकर पत्थरों से तोड़ दिया। इस घटना ने राजनीतिक और सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया है। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत मामला दर्ज किया है। बीजेपी ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताते हुए सख्त सजा की मांग की है, जबकि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और PDP नेता महबूबा मुफ्ती ने धार्मिक स्थल पर अशोक चिह्न लगाने की जरूरत पर सवाल उठाया है। यह विवाद दो बड़े सवाल उठाता है: क्या धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग उचित है? और राष्ट्रीय प्रतीक को नुकसान पहुंचाने की सजा क्या है?



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    धार्मिक स्थलों पर अशोक चिह्न का उपयोग: कानूनी स्थिति

    द स्टेट इमब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 2005 के अनुसार, अशोक स्तंभ का उपयोग केवल भारतीय सरकार, राज्य सरकारें और अधिकृत संस्थाएं कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील कुमार आंजनेय शानू के अनुसार, धार्मिक स्थलों, निजी भवनों, व्यापारिक उपयोग, ट्रेड लोगो या व्यक्तिगत पहचान के लिए इसका उपयोग गैरकानूनी है। बिना अनुमति अशोक चिह्न का इस्तेमाल करना कानून का उल्लंघन माना जाता है।


    सजा का प्रावधान: अशोक स्तंभ का अनधिकृत उपयोग करने पर 2 साल तक की कैद और 5,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। बार-बार उल्लंघन पर सजा बढ़ाई जा सकती है।

    अशोक चिह्न को नुकसान पहुंचाने की सजा

    राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा के लिए भारत में दो प्रमुख कानून लागू हैं:



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    राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971: यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करता है (जैसे तोड़ना, अपवित्र करना या अनादर करना), तो उसे 3 साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है।


    द स्टेट इमब्लेम ऑफ इंडिया एक्ट, 2005: अनुचित उपयोग या तोड़फोड़ करने पर 2 साल तक की कैद और 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।


    पुलिस ने हजरतबल मामले में इन दोनों कानूनों के तहत कार्रवाई शुरू की है। अब तक 25 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है, और सीसीटीवी फुटेज की जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई की जा रही है।


    विवाद का राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य


    बीजेपी का रुख: बीजेपी ने इस घटना को राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान और सांप्रदायिक उकसावे का प्रयास बताया। वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता दरख्शां अंद्राबी ने इसे "आतंकी कार्रवाई" करार देते हुए दोषियों को दरगाह से आजीवन प्रतिबंधित करने और सख्त कार्रवाई की मांग की है।


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    उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का तर्क: नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP ने वक्फ बोर्ड पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने की कोई जरूरत नहीं थी, और इससे बचा जा सकता था। उन्होंने वक्फ बोर्ड से माफी की मांग की है।


    सामाजिक बहस: यह घटना धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों के उपयोग और सांप्रदायिक संवेदनशीलता पर बहस को जन्म दे रही है। कुछ लोग इसे धार्मिक भावनाओं का अपमान मानते हैं, जबकि अन्य इसे राष्ट्रीय गौरव के खिलाफ हमला बताते हैं।


    क्या धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाना उचित है?


    एडवोकेट शानू के अनुसार, धार्मिक स्थल सरकारी संस्थाएं नहीं हैं, इसलिए वहां राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग अनुचित है। हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न लगाने का निर्णय जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड का था, जिसने सौंदर्यीकरण के दौरान बोर्ड पर प्रतीक उकेरा। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, कुछ लोगों ने इसे मूर्ति या आकृति के रूप में देखा, जो उनकी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ था।


     शांति और कानूनी कार्रवाई की जरूरत

    हजरतबल दरगाह विवाद ने एक बार फिर भारत में धार्मिक और सांप्रदायिक संवेदनशीलता को उजागर किया है। यह घटना राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान और धार्मिक स्थलों की पवित्रता के बीच संतुलन की आवश्यकता को दर्शाती है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि:


    राष्ट्रीय प्रतीकों के उपयोग पर स्पष्ट दिशानिर्देश लागू किए जाएं।

    सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा दिया जाए।

    दोषियों के खिलाफ निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई हो।

    इस घटना ने सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाया है, और इसे रोकने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा।


    आपकी राय: क्या धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग उचित है? इस घटना को आप कैसे देखते हैं? अपनी राय कमेंट में साझा करें।



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