नेपाल की जीवित देवी 'कुमारी': पवित्रता का प्रतीक, धरती पर पैर रखने की मनाही!
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लेखक :इंद्र कमल मानंधर
काठमांडू, 8 सितंबर 2025: नेपाल की राजधानी काठमांडू में इन दिनों इंद्र यात्रा उत्सव की धूम है, जो आठ दिनों तक चलता है। रविवार को बसंतपुर दरबार चौक पर जीवित देवी कुमारी, गणेश और भैरव की रथयात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
कुमारी, नेपाल की नेवार संस्कृति का अभिन्न हिस्सा, हिंदू और बौद्ध समुदायों में शक्ति और पवित्रता की प्रतीक मानी जाती हैं। तीन साल की उम्र में चुनी गई वर्तमान रॉयल कुमारी तृष्णा शाक्य को 27 सितंबर 2017 से यह दर्जा प्राप्त है। उनके चयन के लिए 32 कड़े शारीरिक मानकों का पालन किया जाता है, और उन्हें कई सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है, जैसे धरती पर पैर न रखना और गुप्त जीवन जीना। यह लेख नेपाल की कुमारी प्रथा, इसके सांस्कृतिक महत्व और इससे जुड़े नियमों पर प्रकाश डालता है।
इंद्र यात्रा: नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर
इंद्र यात्रा नेपाल के काठमांडू घाटी के नेवार समुदाय का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जो सितंबर में मनाया जाता है। यह उत्सव भगवान इंद्र की मानव रूप में पृथ्वी पर जड़ी-बूटी की खोज की याद में शुरू हुआ। यह शरद ऋतु के उत्सवों और मॉनसून के अंत का प्रतीक है, जिसका धान की खेती से गहरा नाता है। आठ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में कुमारी, गणेश और भैरव की रथयात्रा मुख्य आकर्षण होती है। कुमारी को रथ पर बिठाकर काठमांडू की सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है, जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है।
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कुमारी: जीवित देवी की प्रथा
नेपाल में कुमारी को तलेजू भवानी और दुर्गा का जीवित अवतार माना जाता है। हिंदू और बौद्ध समुदाय उन्हें देश की शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं। कुमारी का चयन नेवार बौद्ध परिवार की 3 से 7 साल की लड़कियों में से किया जाता है, जो 32 शारीरिक मानकों (जैसे हिरण जैसी जांघें, शेर जैसी छाती, गाय जैसी पलकें) पर खरी उतरती हों। चनिरा बज्राचार्य, एक पूर्व कुमारी, ने 2015 में NPR को बताया कि चयन प्रक्रिया में कई राउंड और कठिन परीक्षाएं शामिल होती हैं, जैसे अनाज के प्रति प्रतिक्रिया और शारीरिक जांच।
वर्तमान रॉयल कुमारी तृष्णा शाक्य को 3 साल की उम्र में चुना गया था। वह साल में केवल 13 बार अपने घर से बाहर निकलती हैं, खासकर त्योहारों के दौरान। सामान्य दिनों में उनकी पूजा कुमारी घर की दूसरी मंजिल पर सोने के सिंहासन पर होती है, जहां श्रद्धालु बसंतपुर दरबार चौक की सोने की खिड़की से दर्शन करते हैं। कुमारी का जीवन गुप्त और एकांतपूर्ण होता है, और उनकी पूजा को अत्यंत गोपनीय रखा जाता है।
कुमारी के सख्त नियम
कुमारी को कई कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है:
धरती पर पैर न रखना: कुमारी को धरती छूने की अनुमति नहीं, क्योंकि इसे देवता माना जाता है। उन्हें पालकी में ले जाया जाता है।
गंभीर व्यवहार: उन्हें शांत और गंभीर रहना होता है, न्यूनतम शारीरिक हलचल के साथ।
बलि से दूरी: उन्हें किसी भी बलि को देखने की अनुमति नहीं।
रक्तस्राव पर रोक: मासिक धर्म शुरू होने पर कुमारी का दर्जा समाप्त हो जाता है, क्योंकि रक्तस्राव को पवित्रता के लिए हानिकारक माना जाता है।
भविष्यवाणी और मान्यताएं
कुमारी की हर हलचल को भविष्यवाणी के रूप में देखा जाता है:
रोना या जोर से हंसना: गंभीर बीमारी या मृत्यु।
भोजन उठाना: आर्थिक नुकसान।
ताली बजाना: राजा के लिए खतरा।
कांपना: जेल की सजा।
आंखें मलना: तत्काल मृत्यु।
पहले माना जाता था कि पूर्व कुमारी से शादी करने वाले पुरुष की कम उम्र में मृत्यु हो जाती है, लेकिन अब यह मिथक टूट चुका है। 2008 में नेपाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कुमारी को शिक्षा का अधिकार मिला है, और अब वे परीक्षाएं दे सकती हैं।
निष्कर्ष: सांस्कृतिक धरोहर या सामाजिक चुनौती?
कुमारी प्रथा नेपाल की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसके सख्त नियम और गुप्त जीवन ने कई सवाल भी उठाए हैं। कुमारी का चयन और उनका जीवन पवित्रता का प्रतीक तो है, लेकिन यह एक बच्ची के सामान्य बचपन को भी प्रभावित करता है। फिर भी, यह प्रथा नेवार समुदाय की आस्था और नेपाल की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखती है।
आपकी राय: नेपाल की कुमारी प्रथा के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या यह सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती है या यह आधुनिक समय में चुनौतियां पेश करती है? अपनी राय कमेंट में साझा करें।
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