बांग्लादेश की राह पर नेपाल, "जेन-जेड का विद्रोह, पीएम ओली इस्तीफा दो!
फटाफट पढ़े-: नेपाल में सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स) पर प्रतिबंध के बाद जेन-जेड युवाओं ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ काठमांडू में हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए। 8 सितंबर 2025 को शुरू हुए इन प्रदर्शनों में 21 लोगों की मौत हो चुकी है। काठमांडू, बुटवल और भैरहवा में कर्फ्यू लागू है। प्रदर्शनकारी संसद में घुसने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे पुलिस ने आंसू गैस और रबर गोलियों से रोका। यह आंदोलन बांग्लादेश (2024) के तख्तापलट की याद दिला रहा है। ओली पर चीन जैसी सेंसरशिप लागू करने और भ्रष्टाचार नजरअंदाज करने का आरोप है। विशेषज्ञ इसे श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे आंदोलनों से जोड़ रहे हैं। सरकार को संवाद और नीतिगत सुधार की जरूरत है।
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रिपोर्टर : बिक्रम बस्नेत
काठमांडू, 9 सितंबर 2025: नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोमवार (8 सितंबर 2025) को शुरू हुए हिंसक प्रदर्शनों ने देश को हिलाकर रख दिया है। युवा प्रदर्शनकारी, खासकर जेन-जेड, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स) पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। काठमांडू, बुटवल और भैरहवा में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में 21 लोगों की मौत हो चुकी है, और कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। यह आंदोलन बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना के खिलाफ हुए तख्तापलट की याद दिला रहा है। प्रदर्शनकारी संसद तक पहुंच गए, जिसके बाद पुलिस ने आंसू गैस, रबर की गोलियां और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया। विशेषज्ञ इसे नेपाल में चीन जैसी सेंसरशिप लागू करने की कोशिश और ओली की चीन-नजदीकी नीतियों से जोड़ रहे हैं।
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काठमांडू में क्यों भड़का आंदोलन?
नेपाल में सोशल मीडिया पर अचानक लगाए गए प्रतिबंध ने जन-आक्रोश को हवा दी। 26 साल से कम उम्र के युवा, जो जेन-जेड के तौर पर जाने जाते हैं, सरकार के इस फैसले और भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरे। काठमांडू पोस्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने सख्ती बरती। काठमांडू जिला कार्यालय के प्रवक्ता मुक्तिराम रिजाल ने बताया कि स्थिति नियंत्रित करने के लिए रात 10 बजे तक कर्फ्यू लागू किया गया। पुलिस को लाठियां, रबर गोलियां और पानी की बौछारों का इस्तेमाल करना पड़ा।
प्रदर्शनकारी पीएम ओली पर भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया बैन को वे चीन की तर्ज पर सेंसरशिप की शुरुआत मानते हैं। कुछ प्रदर्शनकारी इसे "बांग्लादेशी मॉडल" तख्तापलट की कोशिश बता रहे हैं, जहां शेख हसीना को 2024 में सत्ता छोड़नी पड़ी थी।
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चीन का कनेक्शन क्या है?
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की चीन के साथ नजदीकी लंबे समय से चर्चा में रही है। उनकी सरकार ने हाल ही में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया, जिसे कई लोग चीन की सेंसरशिप नीतियों की नकल मानते हैं। ओली की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए, जिसने जनता का गुस्सा और बढ़ा दिया। भारत के जियो-पॉलिटिकल विशेषज्ञ सुशांत शरीन ने इसे श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे आंदोलनों से जोड़ा। उन्होंने कहा, "नेपाल में गुस्से का यह विस्फोट एक चिंगारी से शुरू हुआ। हमने इसे श्रीलंका, बांग्लादेश, और अब नेपाल में देखा। इंडोनेशिया और म्यांमार में भी ऐसे आंदोलन तेज हो रहे हैं।"
बांग्लादेश से तुलना क्यों?
बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ जेन-जेड और छात्रों का आंदोलन हिंसक हो गया था, जिसमें प्रदर्शनकारी पीएम आवास में घुस गए और ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंचाया गया। नेपाल में भी युवा संसद भवन तक पहुंच गए, जिसने बांग्लादेशी तख्तापलट की याद ताजा कर दी। दोनों देशों में युवाओं का गुस्सा, सोशल मीडिया की भूमिका और सरकार विरोधी भावनाएं समान दिख रही हैं।
नेपाल सरकार और पुलिस का रुख
काठमांडू पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू लागू किया और सख्ती बरती। प्रवक्ता मुक्तिराम रिजाल ने कहा कि हिंसा को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि, 21 लोगों की मौत ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। नेपाल सरकार ने अभी तक सोशल मीडिया बैन पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, जिससे प्रदर्शन और तेज हो गए हैं।
सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
नेपाल में यह आंदोलन न केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ है, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकार की तानाशाही नीतियों के खिलाफ भी है। जेन-जेड युवा, जो तकनीक के साथ बड़े हुए हैं, सोशल मीडिया को अपनी अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम मानते हैं। इस प्रतिबंध को वे अपनी आवाज दबाने की कोशिश मान रहे हैं। भारत और अन्य पड़ोसी देश इस स्थिति पर नजर रखे हुए हैं, क्योंकि नेपाल में अस्थिरता क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
शांति और लोकतंत्र की जरूरत
नेपाल में चल रहा यह आंदोलन एक चेतावनी है कि युवा शक्ति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि:
सोशल मीडिया प्रतिबंध पर स्पष्ट नीति बनाए।
भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाए।
प्रदर्शनकारियों के साथ संवाद शुरू करे ताकि हिंसा रोकी जा सके।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाए।
अगर स्थिति अनियंत्रित रही, तो नेपाल में बांग्लादेश जैसे हालात बन सकते हैं, जिसके क्षेत्रीय और वैश्विक परिणाम होंगे।
आपकी राय: नेपाल में पीएम ओली के खिलाफ आंदोलन को आप कैसे देखते हैं? क्या यह बांग्लादेश की तरह तख्तापलट की ओर बढ़ रहा है? अपनी राय कमेंट में साझा करें।
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