'जात-पात की विदाई, हम सब हिंदू भाई-भाई': 'श्री बागेश्वर बालाजी-बांके बिहारी मिलन ब्रज हिंदू एकता विशाल पदयात्रा, नेपाल से भी श्रद्धालु, हिंदू राष्ट्र का संकल्प
We News 24 :डिजिटल डेस्क » रिपोएर्टर ,वरिष्ठ पत्रकार ,दीपक कुमार
नई दिल्ली | अपडेटेड: 7 नवंबर 2025, दोपहर 1:16 बजे (IST)
दक्षिण दिल्ली के छतरपुर मंदिर क्षेत्र से आज एक ऐसी लहर उठी, जो जातिवाद की दीवारें तोड़ने और हिंदू एकता का परचम लहराने का संकल्प ले रही है। बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने 'श्री बागेश्वर बालाजी-श्री बांके बिहारी मिलन ब्रज हिंदू एकता विशाल यात्रा' का शुभारंभ किया। नारे गूंजे—'जात-पात की करो विदाई, हम सब हिंदू भाई-भाई'—और हजारों श्रद्धालुओं ने यात्रा में कदम मिलाया। यह 150 किलोमीटर की पदयात्रा 7 से 16 नवंबर तक चलेगी, जो 16 नवंबर को वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर पर समाप्त होगी। प्रतिदिन 15-16 किमी की दूरी तय की जाएगी, रास्ते में जिरखौर, फरीदाबाद, होडल, मित्रोल, पिथरा, सीकरी, कोसी जैसे पड़ाव होंगे।
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यह धीरेंद्र शास्त्री की दूसरी बड़ी यात्रा है। पहली यात्रा मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम से निकली थी, जो सनातन एकता का संदेश लेकर देश भर घूमी। नेपाल से भी सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए, जहां 'नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने' की मांग तेज हो रही है। एक नेपाली भक्त, रामेश्वर शर्मा, भावुक होकर कहते हैं, "हमारा देश भी हिंदू राष्ट्र था, फिर से बने। यह यात्रा हमारी आवाज है।" यात्रा में पुरुष-महिलाएं, युवा-बुजुर्ग—सभी ने भाग लिया, जो हिंदू समाज की एकजुटता का जीवंत प्रमाण था।
उद्देश्य: हिंदू एकता, गौमाता को राष्ट्रमाता का दर्जा, यमुना सफाई और हिंदू राष्ट्र
यात्रा का मुख्य मकसद विघटित हिंदू समाज को एकजुट करना और भारत को 'हिंदू राष्ट्र' बनाने का संकल्प लेना है। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, "जाति-पात की दीवारें तोड़ो, हम सब भाई हैं। गौमाता को राष्ट्रमाता का सम्मान दिलाओ, यमुना को स्वच्छ बनाओ, श्रीकृष्ण जन्मभूमि की प्रतिष्ठा करो। यह यात्रा सनातन संस्कृति का पुनरुत्थान है।" ब्रज क्षेत्र में मांस-मदिरा की दुकानें बंद करने, धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रगीत गाने और अखंड भारत का विचार फैलाने जैसे संकल्प भी शामिल हैं।
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मथुरा-वृंदावन में अक्षत महोत्सव की तैयारी चल रही, जहां यात्रा के समापन पर विशेष पूजा होगी। यात्रा में RSS, VHP जैसे संगठनों के सदस्य भी शामिल हैं, जो इसे 'सांस्कृतिक जागृति' का माध्यम बता रहे।
यात्रा का मार्ग: 10 दिनों में 150 किमी, दिल्ली से वृंदावन तक
दिन 1 (7 नवंबर): छतरपुर (दक्षिण दिल्ली) से शुरू, कात्यायनी माता मंदिर तक।
पड़ाव: फरीदाबाद, होडल, मित्रोल, पिथरा, सीकरी, कोसी, जिरखौर।
समापन (16 नवंबर): वृंदावन बांके बिहारी मंदिर—विशाल सभा।
भागीदारी: 50,000+ श्रद्धालु अनुमानित, नेपाल से विशेष टुकड़ी।
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नेपाल भारत का संदेश: 'हिंदू राष्ट्र वापस लाओ'
नेपाल से आए श्रद्धालुओं ने यात्रा में जोरदार स्वागत किया। नेपाल को 2007 में धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया, लेकिन हिंदू राष्ट्र बहाल करने की मांग तेज। एक नेपाली कार्यकर्ता ने कहा, "धीरेंद्र जी की यात्रा हमारी प्रेरणा। नेपाल फिर हिंदू राष्ट्र बने।" यात्रा में नेपाल के संतों की भागीदारी ने इसे अंतरराष्ट्रीय रंग दिया।
विवाद और उम्मीदें: एकता का संदेश या राजनीतिक?
यात्रा को सनातन जागृति का प्रतीक बताया जा रहा, लेकिन कुछ आलोचक इसे 'राजनीतिक' करार दे रहे। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, "यह धर्म की, न कि राजनीति की यात्रा। हिंदू एक हो, बाकी सब स्वाभाविक।" यात्रा में महिलाओं की बड़ी भागीदारी ने एकता का संदेश मजबूत किया। क्या यह जाति की दीवारें तोड़ेगी? 16 नवंबर को वृंदावन सभा जवाब देगी।
श्रद्धालुओं, क्या आप यात्रा में शामिल होंगे? अपनी राय साझा करें!
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