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    निठारी कांड का अंतिम अध्याय: सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को बरी किया, पुलिस और सीबीआई की नाकामी पर सवाल

    निठारी कांड का अंतिम अध्याय: सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को बरी किया, पुलिस और सीबीआई की नाकामी पर सवाल



    We News 24 :डिजिटल डेस्क » संवाददाता,विवेक श्रीवास्तव


    नई दिल्ली, 12 नवंबर, 2025 मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बेहद विवादास्पद निठारी कांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को आखिरी बचे मामले में बरी कर दिया। पुलिस और सीबीआई की लचर जाँच और ठोस सबूतों के अभाव में, 2006 में हुए इस सनसनीखेज हत्याकांड का रहस्य हमेशा के लिए अनसुलझा रह गया। बेरहमी से मारे गए 19 बच्चों और महिलाओं के परिवारों के लिए न्याय की आखिरी उम्मीद भी टूट गई है। नोएडा के आरुषि हत्याकांड की तरह, निठारी का सच भी कभी सामने नहीं आएगा।


    सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल कानूनी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए, बल्कि जाँच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कोली की सुधारात्मक याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि दोषसिद्धि केवल "अनुमान" पर आधारित नहीं हो सकती। पीठ ने कोली की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जब तक कि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।



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    निठारी कांड का काला अध्याय: क्या हुआ?


    निठारी कांड का खुलासा 29 दिसंबर, 2006 को हुआ था, जब नोएडा के निठारी गाँव में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे एक नाले में आठ बच्चों के कंकाल मिले थे। पंढेर के नौकर सुरेंद्र कोली को भी गिरफ्तार किया गया था। जाँच में पता चला कि 2005 और 2006 के बीच कम से कम 19 बच्चों और महिलाओं की हत्या की गई थी, साथ ही बलात्कार, अंग-भंग और मानव अंग तस्करी के आरोप भी लगे थे। गौतम बुद्ध नगर पुलिस ने शुरुआती जाँच की, लेकिन 10 दिन बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया।

    सीबीआई ने 16 मामले दर्ज किए, लेकिन एक महीने की हिरासत के बाद भी ठोस सबूत जुटाने में विफल रही। पुलिस ने कंकाल की बरामदगी में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया और न ही आरोपियों की मेडिकल जाँच कराई। पंढेर की हवेली में बाथरूम के अलावा कहीं भी खून के धब्बे नहीं मिले, न ही मांस, हड्डी या खाल के कोई टुकड़े बरामद हुए। कोली के कबूलनामे की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग फर्जी पाई गई और उस दस्तावेज़ पर उसके हस्ताक्षर भी नहीं थे। सीबीआई यह साबित करने में नाकाम रही कि आरोपी अंग तस्करी में शामिल थे।

    अदालत का सफ़र: बरी होने का सिलसिला


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    2007: सीबीआई ने अपना पहला आरोपपत्र दायर किया।

    2010-2011: सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 15 वर्षीय ज्योति के बलात्कार और हत्या के लिए कोली को मौत की सजा सुनाई, जिसे फरवरी 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा।

    2015: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

    अक्टूबर 2023: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जाँच को "गलत" बताते हुए कोली और पंढेर को 12 मामलों में बरी कर दिया।


    जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने 12 मामलों में बरी होने के फैसले को बरकरार रखा और सीबीआई की 14 अपीलों को खारिज कर दिया। जुलाई 2025 में अंतिम मामले में पंधेर को बरी कर दिया गया और रिहा कर दिया गया।


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    11 नवंबर, 2025: सुप्रीम कोर्ट ने 13वें (अंतिम) मामले में कोली को बरी कर दिया, जहाँ दोषसिद्धि केवल स्वीकारोक्ति और चाकू की बरामदगी पर आधारित थी।


    गौतम बुद्ध नगर जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कोली को बुधवार को रिहा किया जा सकता है। यह फैसला पीड़ितों के परिवारों के लिए एक गहरा झटका है।


    पीड़ित परिवारों का दर्द: "गुनहगार कौन है?"

    निठारी कांड की पीड़िता ज्योति के पिता झाबू लाल और माँ सुनीता असहाय हैं। झाबू लाल ने कहा, "हमारी बेटी होशियार थी और डॉक्टर बनना चाहती थी। यह सब एक बुरा सपना साबित हुआ। जिन लोगों को शुरू में दोषी ठहराया गया था, वे बरी हो गए हैं, तो फिर हत्यारा कौन है? व्यवस्था ने हमें धोखा दिया है।" पुलिस, सीबीआई और प्रशासन पर गुस्सा ज़ाहिर करते हुए सुनीता ने कहा, "बच्चों का गुनहगार कौन है? न्याय की उम्मीद टूट गई है।"


    पीड़ित परिवारों का बस एक ही सवाल है: गुनहगार कौन है? यह फैसला न सिर्फ़ न्याय की विफलता को दर्शाता है, बल्कि जाँच एजेंसियों की लापरवाही को भी उजागर करता है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह मामला फ़ोरेंसिक जाँच और वैज्ञानिक साक्ष्यों की कमी को उजागर करता है।


    जाँच ​​एजेंसियों के लिए सवाल: क्या सबक मिलेगा?


    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोषसिद्धि "काल्पनिक" नहीं हो सकती। पुलिस ने प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, जबकि सीबीआई अंग तस्करी के पहलू की जाँच करने में विफल रही। यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक कलंक है, जहाँ पीड़ितों को न्याय मिलने के बजाय, अपराधी आज़ाद घूमते हैं।


    निठारी कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, लेकिन 19 साल बाद भी सच्चाई दबी हुई है। उम्मीद है कि यह घटना भविष्य में जाँच प्रक्रियाओं को मज़बूत करने के लिए एक सबक साबित होगी।


    न्याय की उम्मीद कभी न मरे! 

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