भारत का आसमान क्यों बनता जा रहा है एयरलाइंस का कब्रगाह ,भारत में एयरलाइन चलाना नामुमकिन!
We News 24 : डिजिटल डेस्क »
नई दिल्ली :- कंपनी आईं, चमकीं और फिर धड़ाम से गायब हो गईं… अब भी कुछ नया सीखा क्या?
एक पुरानी कहावत है एविएशन वालों में – “अगर अपना पैसा जल्दी से जल्दी उड़ाना हो तो एयरलाइन खोल लो।” पहले हंसी-मजाक लगता था, अब लगता है ये मजाक नहीं, कड़वा सच है। दुनिया का सबसे तेज बढ़ता हवाई बाजार बोलते हैं हम अपना, लेकिन हमारे यहां नई एयरलाइन खोलना मतलब सीधे “रिटायरमेंट प्लान” बना लेना।
1991 से अब तक देख लिस्ट देख लो – ईस्ट वेस्ट, दमानिया, मोदीलुफ्त, सहारा, जेट, किंगफिशर, गो फर्स्ट… दर्जन भर से ज्यादा कंपनियां आईं, बड़े-बड़े सपने दिखाए और फिर चुपचाप इतिहास बन गईं। कोई तीन साल टिकी, कोई पांच साल, बस। जेट तो 25 साल चली थी, वो भी वो भी आखिर में कर्ज के बोझ तले दबकर मर गई।
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क्यों मर जाती हैं ये सब?
सबसे पहला कातिल – पेट्रोल (यानी ATF)। दुनिया में कहीं भी 30-35% खर्चा फ्यूल का होता है, हमारे यहां 50-55% तक चला जाता है। ऊपर से टैक्स भी सबसे ज्यादा। किराया कम रखो तो घाटा, थोड़ा बढ़ाओ तो यात्री भागकर इंडिगो पकड़ लेता है।
दूसरा कातिल – रुपया। सारा खर्चा डॉलर में – जहाज लीज, मेंटेनेंस, स्पेयर पार्ट्स, पायलट की तनख्वाह भी आधी डॉलर में। रुपया 1% गिरा नहीं कि बैलेंस शीट में 100-200 करोड़ का गड्ढा हो जाता है।
तीसरा कातिल – बैंक। शुरू में तो लोन देते हैं ढेर सारा, जैसे ही दो-चार क्वार्टर लॉस दिखा, जहाज जब्त करके ले उड़ते हैं। किंगफिशर के साथ तो ऐसा हुआ था कि एयरपोर्ट पर ही जहाज सीज कर लिए गए थे।
चौथा कातिल – मालिक का अहंकार। कोई लग्जरी दिखाना चाहता है, कोई चप्पल वाला उड़ाने का सपना देखता है। दोनों डूब गए। सिर्फ इंडिगो वाला मॉडल अभी तक जिंदा है – एक तरह का जहाज, कोई फालतू खाना नहीं, कोई फ्री बैगेज नहीं, बस उड़ाओ और पैसे कमाओ। बाकी सबने स्टाइल मारने की कोशिश की और स्टाइल में ही मर गए।
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अभी सिर्फ इंडिगो वाला फॉर्मूला चल रहा है – एक तरह का जहाज, कोई फालतू खाना नहीं, कोई फ्री बैगेज नहीं, बस उड़ाओ और पैसा कमाओ। बाकी सबने स्टाइल मारते-मारते अपना स्टाइल ही खराब कर लिया। लेकिन अभी इंडिगो का भी हालत खराब है .
अब अकासा जोश में आई है, एयर इंडिया को टाटा संभाल रहा है। शुभकामनाएं भाई! लेकिन याद रखना – हमारे यहां आसमान बहुत ऊंचा है, पर जमीन बहुत सख्त भी। थोड़ा सा भी बैलेंस बिगड़ा नहीं कि सीधा क्रैश।
बस इतना कहेंगे – जो नया आने वाला है, पहले पुरानी कंपनियों की फाइलें जरूर पढ़ ले। वहां ढेर सारी मुफ्त की सीख पड़ी है।
संपादकीय लिखा: दीपक कुमार प्रधान संपादक, वी न्यूज 24
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