🛑 डोंबिवली क्लिनिक विवाद को 'मराठी बनाम हिंदी भाषी' में बदल रही राज ठाकरे की पार्टी!
✍️ We News 24 | रिपोर्ट रघु जाधव |
मुंबई (डोम्बिवली):- हर घटना के दो पहलू होते हैं — कुछ वैसा ही हुआ महाराष्ट्र के डोम्बिवली इलाके के एक क्लिनिक में, जहाँ एक बीमार बच्चे को दिखाने आए झा परिवार (मूलतः बिहार निवासी) के बेटे और क्लिनिक की मराठी महिला रिसेप्शनिस्ट के बीच विवाद मारपीट में बदल गया। डोम्बिवली क्लिनिक में हुई हिंसक घटना ने सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर गंभीर बहस छेड़ दी है। झा परिवार, जो मूल रूप से बिहार के हैं, अपने बीमार बच्चे को इलाज के लिए क्लिनिक लेकर आए थे। डॉक्टर के देर से आने और मरीजों को देखने के बजाय मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से मिलने के कारण तनाव पैदा हो गया 1।
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घटना के दो पक्ष
पहला पक्ष: रिसेप्शनिस्ट के साथ हिंसा
झा परिवार के 25 वर्षीय युवक ने मराठी रिसेप्शनिस्ट के साथ हिंसक व्यवहार किया, जिसमें उसे पटक-पटक कर मारते हुए देखा गया । मारपीट इतनी गंभीर थी कि रिसेप्शनिस्ट को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और डॉक्टरों ने उसके पैरालिसिस होने की आशंका जताई । इस घटना के बाद मनसे कार्यकर्ताओं ने आरोपी युवक को पकड़कर पुलिस के हवाले किया ।
दूसरा पक्ष: रिसेप्शनिस्ट का अपमानजनक व्यवहार
पुलिस द्वारा जांच किए गए पूरे सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि रिसेप्शनिस्ट ने पहले झा परिवार की बहू को थप्पड़ मारा था । रिसेप्शनिस्ट ने परिवार के साथ गाली-गलौज भी की थी, जिसके बाद युवक ने हिंसक प्रतिक्रिया दी । डॉक्टर ने प्रारंभ में केवल वही सीसीटीवी फुटेज मीडिया को दिया जो रिसेप्शनिस्ट के पक्ष में था, जिससे घटना का एकतरफा चित्रण हुआ ।
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मामले की संवेदनशीलता
यह घटना केवल हिंसा तक सीमित नहीं रही, बल्कि मराठी बनाम हिंदी भाषी का राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन गई। मराठी मीडिया ने प्रारंभ में घटना को एकतरफा ढंग से प्रस्तुत किया, जबकि पूरा सच कुछ और ही था 1।
अनुत्तरित प्रश्न
डॉक्टर की जिम्मेदारी: क्या डॉक्टर का मरीजों को देखने के बजाय मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से मिलना नैतिक रूप से उचित था? क्या उनकी इस लापरवाही पर कोई कार्रवाई होगी?
न्यायिक प्रक्रिया: पुलिस ने अभी तक केवल झा परिवार के युवक को ही गिरफ्तार किया है, जबकि रिसेप्शनिस्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिसने पहले हाथ उठाया था 1।
मीडिया की भूमिका: क्या मीडिया ने घटना को सही ढंग से प्रस्तुत किया या क्षेत्रीयता के एजेंडे को बढ़ावा दिया?
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यह घटना हमें सिखाती है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। किसी भी हिंसा, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध, की कोई भी परिस्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, घटना को आधा-अधूरा बताकर या क्षेत्रीयता के चश्मे से देखकर न्याय नहीं किया जा सकता। पुलिस और न्यायालय को इस मामले में दोनों पक्षों की पूरी तरह से जांच कर निष्पक्ष निर्णय लेना चाहिए ।
"कोर्ट में सबूतों के आधार पर ही फैसला होता है। सीसीटीवी फुटेज, गवाहों के बयान और अन्य सबूतों की जांच के बाद ही कोर्ट तय करेगा कि कौन दोषी है और किसे क्या सजा मिलनी चाहिए।"
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