धराली त्रासदी: मेले की खुशियां मातम में बदली, बादल फटने से गांव तबाह

📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 06 अगस्त 2025, 05:45 IST
रिपोर्टिंग सूत्र उर्विदत गैरोला /लेखक दीपक कुमार
धराली/उत्तरकाशी, 06 अगस्त 2025 – हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छांह... एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह'... जयशंकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य 'कामायनी' में ये पंक्तियां लिखी हैं.ये वाक्य धराली गांव पर सटीक बैठता है यभा के लोगो ने ऐसे मंजर अपनी आँखों से देखा ,उत्तरकाशी के धराली गांव में एक मेले की तैयारियों के बीच प्रकृति ने अपना प्रचंड रूप दिखाया। 5 अगस्त 2025 की दोपहर करीब डेढ़ बजे बादल फटने से गंगोत्री रैली क्षेत्र में पानी का सैलाब, कीचड़, मलबा और बड़े-बड़े पत्थरों ने गांव को तहस-नहस कर दिया। मेले का उत्सवी माहौल पलभर में मातम में बदल गया। स्थानीय निवासी संजय पंवार की कांपती आवाज में लाइव वीडियो के जरिए सामने आई यह त्रासदी न केवल धराली, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है।
आंखों देखी: तबाही का मंजर
“यहां के कई घर तो अब नदी के बीच पहुंच गए हैं,” संजय पंवार ने लाइव वीडियो में डर और दर्द से भरी आवाज में बताया। “होटल, दुकानें, गाड़ियां—सब मिट्टी में दब गए। बाजार, जो कल तक गुलजार था, आज रेगिस्तान सा बन गया है।” उनके पीछे सायरन की आवाजें, आर्मी और एसडीआरएफ के जवानों की चहल-पहल, और डर से सिसकते लोग इस त्रासदी की भयावहता को बयां कर रहे थे।
पंवार ने बताया, “हजारों लोग तबाह हो गए। 2013 की आपदा के बाद यह सबसे बड़ी त्रासदी है। डेढ़ बजे से पानी, कीचड़, मलबा, और लकड़ियां बहती नजर आईं।” गांव का मंदिर, बाजार, रिजॉर्ट, और बगीचे देखते ही देखते मलबे में बदल गए। कई मजदूर, जो स्थानीय थे, मलबे में दब गए, और उनकी पहचान तक मुश्किल हो रही है।
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प्रकृति का प्रलय: मेले से मातम तक
5 अगस्त को धराली में एक बड़ा मेला लगने वाला था। लोग उत्सव की तैयारियों में जुटे थे, लेकिन प्रकृति की काली घटा ने उनकी खुशियों पर ग्रहण लगा दिया। दोपहर में अचानक बादल फटा, और पलक झपकते ही आधा गांव बर्बाद हो गया। लोग, घर, होटल, और सपने—सब कुछ पानी और मलबे की भेंट चढ़ गया। पंवार ने कहा, “पहली बार ऐसा हुआ है। लोग खुले आसमान के नीचे आ चुके हैं। कई परिवारों की कोई खबर नहीं है।”
राहत कार्यों में चुनौतियां
आर्मी और एसडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं, लेकिन कई जगहों तक पहुंचना अब भी मुश्किल है। मलबे में दबे लोगों की पहचान करना और उन्हें बचाना एक चुनौती बना हुआ है। पंवार ने बताया, “अब सबकी उम्मीद बारिश रुकने पर टिकी है, ताकि नुकसान का सही अंदाजा लगाया जा सके।”
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एक स्थानीय की प्रार्थना: “ऐसी आफत किसी गांव पर न बरसे”
“भगवान, अब कभी किसी गांव पर ऐसी आफत न बरसाना,” पंवार ने कांपती आवाज में कहा। गांव के हर शख्स की आंखों में आंसू और दिल में खौफ है। स्थानीय लोगों ने बताया कि मंगलवार को पहाड़ों से गिरते भारी पत्थरों और मलबे की भयानक आवाजें गांववालों को डराती रहीं। हर कोई अपने परिजनों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहा था।
हमारी राय
धराली की यह त्रासदी प्रकृति की अनिश्चितता और मानव की असहायता को दर्शाती है। यह घटना हमें जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के दुष्परिणामों की ओर इशारा करती है। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बार-बार होने वाली ऐसी आपदाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारी नीतियां और तैयारियां पर्याप्त हैं? राहत और पुनर्वास कार्यों के साथ-साथ, दीर्घकालिक उपाय जैसे वनीकरण, नदियों के संरक्षण, और सतर्कता तंत्र को मजबूत करना जरूरी है। धराली के लोगों का दर्द और उनकी हिम्मत हमें यह सिखाती है कि एकजुटता और त्वरित कार्रवाई से हम इस तरह की आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
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