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    उत्तरकाशी: 190 साल पहले भी खीरगंगा ने मचाई थी तबाही, 206 मंदिर और कई गांव हुए थे तबाह

     
    उत्तरकाशी: 190 साल पहले भी खीरगंगा ने मचाई थी तबाही, 206 मंदिर और कई गांव हुए थे तबाह


    2004, 2012, 2013, 2018, और 2021 में भी खीरगंगा ने अपने तांडव से स्थानीय लोगों को चेतावनी दी


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 06 अगस्त 2025, 07:55 IST

    रिपोर्टिंग सूत्र उर्विदत गैरोला /लेखक दीपक कुमार


    उत्तरकाशी,  – उत्तरकाशी के धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को खीरगंगा नदी ने एक बार फिर अपना रौद्र रूप दिखाया। मंगलवार दोपहर करीब डेढ़ बजे बादल फटने से आए सैलाब ने पलक झपकते ही गांव को मलबे के ढेर में बदल दिया। घर, होटल, दुकानें, और बाजार सब कुछ पानी और मलबे की भेंट चढ़ गया। प्रशासन ने अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि की है, लेकिन जैसे-जैसे राहत और बचाव कार्य आगे बढ़ रहे हैं, मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। यह त्रासदी 190 साल पहले 1835 में खीरगंगा की तबाही की याद दिलाती है, जब नदी ने 206 मंदिरों और कई गांवों को नष्ट कर दिया था।



    ऐतिहासिक आपदाओं की पुनरावृत्ति

    धराली में खीरगंगा नदी का यह विध्वंस कोई नई घटना नहीं है। जानकार बताते हैं कि 1835 में भी इस नदी ने ऐसा ही प्रलय मचाया था, जिसमें कई गांव और मंदिर तबाह हो गए थे। इसके बाद 2004, 2012, 2013, 2018, और 2021 में भी खीरगंगा ने अपने तांडव से स्थानीय लोगों को चेतावनी दी, लेकिन इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया गया। इस बार की त्रासदी ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या हम प्रकृति की चेतावनियों को अनदेखा कर रहे हैं?



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    भूकंपीय जोन पांच: उत्तरकाशी की भौगोलिक संवेदनशीलता

    उत्तरकाशी हिमालय के अति-संवेदनशील भूकंपीय जोन पांच में आता है, जहां मेन सेंट्रल थ्रस्ट और मेन बाउंड्री थ्रस्ट जैसी भौगोलिक दरारें मौजूद हैं। यह क्षेत्र भूकंप, हिमस्खलन, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है। अतीत में भी इस क्षेत्र ने कई त्रासदियों का सामना किया है:


    1. 1991: 6.4 तीव्रता का भूकंप, जिसमें 653 लोगों की मौत और 6,000 से अधिक घायल हुए।
    2. 2013: बाढ़ से उत्तरकाशी, हर्षिल, और धराली में 11 लोगों की मौत और 13 गंभीर रूप से घायल।
    3. 2022: द्रौपदी का डांडा हिमस्खलन में 29 पर्वतारोहियों की मौत।


    गंगोत्री हाईवे और राहत कार्यों में चुनौतियां

    इस आपदा ने गंगोत्री नेशनल हाईवे को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। हाईवे का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त होने से राहत और बचाव कार्यों में बाधा आ रही है। सड़कें धंसने और मलबे से बंद होने के कारण डीएम और एसपी को भी घटनास्थल तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कीचड़, गाद, और अंधेरा राहत कार्यों में सबसे बड़ी बाधाएं बने हुए हैं। सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, और आईटीबीपी की टीमें युद्धस्तर पर काम कर रही हैं, लेकिन खराब मौसम और टूटी सड़कों ने चुनौतियां बढ़ा दी हैं। भारतीय वायुसेना के दो MI-17 और एक चिनूक हेलीकॉप्टर भी रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल किए गए हैं।



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    स्थानीय निवासी की आपबीती: डर और दर्द का मंजर

    स्थानीय निवासी संजय पंवार ने लाइव वीडियो में अपनी कांपती आवाज में बताया, “यहां के कई घर नदी के बीच पहुंच गए हैं। होटल, गाड़ियां, सब मिट्टी में दब गए। बाजार, जो कल तक गुलजार था, आज रेगिस्तान बन गया है।” उन्होंने कहा, “मलबे में कई लोग दबे हो सकते हैं, शायद मजदूर। उनकी पहचान करना भी मुश्किल है।” पंवार की प्रार्थना थी, “भगवान, ऐसी आफत किसी गांव पर न बरसे।” यह दर्द और खौफ हर ग्रामीण की आंखों में दिख रहा है।

    सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया

    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आंध्र प्रदेश का दौरा बीच में छोड़कर देहरादून लौटने का फैसला लिया और राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने 20 करोड़ रुपये की राहत राशि मंजूर की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी हर संभव मदद का भरोसा दिया है। जिला प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर (01374-222126, 222722, 9456556431) जारी किए हैं।


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    हमारी राय

    धराली की यह त्रासदी प्रकृति की चेतावनी है कि हमें अपनी विकास नीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। खीरगंगा नदी के किनारे अनियोजित निर्माण और पर्यटन के लिए अंधाधुंध विकास ने इस आपदा की तीव्रता को बढ़ाया है। जलवायु परिवर्तन और हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करना अब आत्मघाती साबित हो रहा है। हमें तत्काल नदी किनारों पर अतिक्रमण रोकने, अलार्म सिस्टम स्थापित करने, और पर्यावरण-अनुकूल विकास नीतियों को अपनाने की जरूरत है। यह आपदा हमें एकजुटता और त्वरित कार्रवाई की प्रेरणा देती है, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।

    पब्लिक की राय

    सोशल मीडिया और स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि ध;EA1धराली की इस त्रासदी ने लोगों को गहरे सदमे में डाल दिया है। कई लोग सरकार की तैयारियों पर सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है कि भूकंपीय जोन पांच जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आपदा प्रबंधन को और मजबूत करना चाहिए। कुछ स्थानीय लोग अनियोजित निर्माण और जंगलों की कटाई को इस त्रासदी का प्रमुख कारण मानते हैं। एक यूजर ने X पर लिखा, “धराली का दर्द देखकर दिल टूट गया। प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है, वरना ऐसी आपदाएं बार-बार आएंगी।”



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