हिरोशिमा परमाणु हमले के 80 साल: एक झटके में बदल गई दुनिया और इंसानियत
6 अगस्त 1945 को सुबह 8:15 बजे, अमेरिकी विमान एनोला गे ने हिरोशिमा पर "लिटिल बॉय" बम गिराया। यह बम जमीन से 600 मीटर ऊपर फटा
📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 05 अगस्त 2025, 20:00 IST
/ लेखक वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार एएफपी से इनपुट्स के साथ
हिरोशिमा/नागासाकी, आज से ठीक 80 साल पहले, 6 अगस्त 1945 को, मानव इतिहास का सबसे विनाशकारी अध्याय लिखा गया। अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम "लिटिल बॉय" गिराया, जिसने लगभग 1,40,000 लोगों की जान ले ली। तीन दिन बाद, 9 अगस्त को "फैट मैन" बम ने नागासाकी को तबाह कर 74,000 लोगों की जिंदगियां छीन लीं। इन हमलों ने न केवल जापान, बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। यह लेख उस त्रासदी की भयावहता, इसके दीर्घकालिक प्रभावों, और मानवता के लिए सबक को उजागर करता है।
परमाणु बम का कहर: आग का गोला और तबाही
6 अगस्त 1945 को सुबह 8:15 बजे, अमेरिकी विमान एनोला गे ने हिरोशिमा पर "लिटिल बॉय" बम गिराया। यह बम जमीन से 600 मीटर ऊपर फटा, जिसकी ताकत 15,000 टन टीएनटी के बराबर थी। रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (ICRC) के अनुसार, विस्फोट के साथ ही एक "आग का तीव्र गोला" दिखाई दिया, जिसका तापमान 7,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। तीन किलोमीटर के दायरे में सब कुछ जलकर खाक हो गया।
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नागासाकी के 18 वर्षीय प्रत्यक्षदर्शी कोइची वाडा ने बताया, "मुझे याद है, छोटे बच्चों के जले हुए शव काली चट्टानों की तरह हाइपोसेंटर (ग्राउंड जीरो) के आसपास पड़े थे।" विस्फोट की रोशनी इतनी तीव्र थी कि कई लोगों को अस्थायी या स्थायी अंधापन और मोतियाबिंद जैसी समस्याएं हुईं। आग के तूफान ने शहर की सारी ऑक्सीजन खत्म कर दी, जिससे दम घुटने से हजारों मौतें हुईं।
आंकड़े बताते हैं:
- हिरोशिमा में तत्काल मौतों में से आधे से अधिक जलने और आग से हुईं।
- शॉक वेव ने इमारतें ढहा दीं, हजारों लोग मलबे में दब गए।
- नागासाकी में भी स्थिति ऐसी ही थी, जहां लकड़ी के बने शहर का बड़ा हिस्सा तबाह हो गया।
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हिबाकुशा: रेडिएशन का दंश और सामाजिक कलंक
जो लोग इस त्रासदी से बच गए, उन्हें हिबाकुशा (परमाणु बम से प्रभावित) कहा गया। लेकिन उनकी जिंदगी रेडिएशन की बीमारियों ने नर्क बना दी। उल्टी, सिरदर्द, दस्त, रक्तस्राव, और बालों का झड़ना शुरुआती लक्षण थे, जो बाद में ल्यूकेमिया और थायरॉइड कैंसर जैसे घातक रोगों में बदल गए। जापानी-यूएस रेडिएशन इफेक्ट्स रिसर्च फाउंडेशन की स्टडी के अनुसार, 50,000 हिबाकुशा में से 100 की ल्यूकेमिया से और 850 की कैंसर से मृत्यु हुई।
हिबाकुशा को न केवल शारीरिक, बल्कि सामाजिक दंश भी झेलना पड़ा। जापान में उन्हें अलग-थलग किया गया, क्योंकि लोग डरते थे कि उनके साथ शादी करने से रेडिएशन की बीमारियां फैलेंगी। फिर भी, हिबाकुशा ने हिम्मत नहीं हारी। निहोन हिडानक्यो, एक परमाणु-विरोधी संगठन, ने 2024 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता, जो उनकी आवाज की ताकत को दर्शाता है।
विश्व युद्ध का अंत और बहस
15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ। इतिहासकारों में इस बात पर बहस है कि क्या परमाणु बमों ने युद्ध को जल्दी खत्म कर हजारों जिंदगियां बचाईं या यह अनावश्यक क्रूरता थी। लेकिन हिबाकुशा के लिए यह गणित बेमानी था। वे दशकों तक शारीरिक और मानसिक आघात से जूझते रहे।
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वैश्विक नेताओं की प्रतिक्रिया
2016: बराक ओबामा हिरोशिमा का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। उन्होंने माफी तो नहीं मांगी, लेकिन परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया की वकालत की।
2019: पोप फ्रांसिस ने हिरोशिमा और नागासाकी में हिबाकुशा से मुलाकात की और परमाणु हथियारों के उन्मूलन की मांग की।
हमारी राय
हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी मानवता के लिए एक चेतावनी है। परमाणु हथियारों की विनाशकारी शक्ति न केवल जिंदगियां छीनती है, बल्कि पीढ़ियों को प्रभावित करती है। यह घटना हमें सिखाती है कि युद्ध और हिंसा कभी समाधान नहीं हो सकते। आज, जब विश्व में परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ रही है, हमें हिबाकुशा की आवाज को सुनना होगा और वैश्विक शांति के लिए एकजुट होना होगा। परमाणु निरस्त्रीकरण और पर्यावरण संरक्षण ही भविष्य की रक्षा कर सकते हैं।
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पब्लिक की राय
सोशल मीडिया पर लोग इस त्रासदी को याद करते हुए परमाणु हथियारों के खिलाफ एकजुटता दिखा रहे हैं। एक X यूजर ने लिखा, "हिरोशिमा हमें याद दिलाता है कि इंसानियत की कीमत क्या है। परमाणु हथियारों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।" कई लोग हिबाकुशा की हिम्मत की सराहना कर रहे हैं, जबकि कुछ ने विश्व नेताओं से परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की है।
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