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    एथेनॉल का जहर: किसानों की चीखें दबाकर बिजनेस की दावत? गडकरी परिवार की कमाई और सरकार की आंखें बंद –राठीखेड़ा से दिल्ली तक का काला सच

    एथेनॉल का जहर: किसानों की चीखें दबाकर बिजनेस की दावत? गडकरी परिवार की कमाई और सरकार की आंखें बंद –राठीखेड़ा से दिल्ली तक का काला सच


    वी न्यूज 24 | संपादकीय

    We News 24 : डिजिटल डेस्क » हनुमानगढ़/नई दिल्ली, 11 दिसंबर 2025

    संपादकीय: दीपक कुमार, वरिष्ठ संपादक, वी न्यूज 24

    भाई साहब, कल राठीखेड़ा के खेतों में जो आग लगी, वो सिर्फ किसानों का गुस्सा नहीं था – वो तो पूरे सिस्टम की सड़न का धुआं था। हनुमानगढ़ के इस छोटे से गांव में ड्यून एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड का प्लांट बन रहा है, बिना पर्यावरण मंजूरी के, बिना किसानों की राय के। बुधवार को दीवारें तोड़ीं, 14 गाड़ियां फूंकीं, पुलिस से भिड़े – 50 से ज्यादा घायल। आज गुरुवार को फिर गुरुद्वारे में जुटे हैं भाई लोग, ट्रैक्टर खड़े कर सड़कें जाम। लेकिन ये सिर्फ लोकल फसाद नहीं, भईये – ये मोदी सरकार की 'एथेनॉल क्रांति' का असली चेहरा है। ऊपर से चमक-दमक वाली पॉलिसी, नीचे से किसानों का खून-पसीना। और बीच में? बड़े बिजनेस घरानों की जेबें भरी जा रही हैं। नितिन गडकरी साहब, जो खुद इस पॉलिसी के सबसे बड़े चीयरलीडर हैं, उनके बेटे की कंपनी एथेनॉल का बड़ा सप्लायर बनी हुई है। कमाई? एक साल में 3000 फीसदी का उछाल! ये संयोग है या सेटिंग? आइए, इस काले खेल को खोलते हैं – सरकार के दावे, पब्लिक का नुकसान, पर्यावरण की तबाही और बिजनेस की दावत। सब कुछ, बिना लाग-लपेट के।



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    सबसे पहले तो समझ लो, भाई, ये एथेनॉल वाली होड़ आखिर है क्या? 2014 से मोदी सरकार ने 'नेशनल पॉलिसी ऑन बायोफ्यूल्स' चला रखी है। गडकरी जी, जो सड़कें-ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री संभालते हैं, हर मीटिंग में चिल्लाते हैं – '20 पर्सेंट ब्लेंडिंग तक पहुंचो, पेट्रोल इंपोर्ट कम करो!'। 2025 तक 20% टारगेट था, जो पूरा हो गया। नतीजा? सरकार कहती है, 41,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बची। किसानों को गन्ना-मक्का बेचकर 40,000 करोड़ का पेमेंट। पर्यावरण को फायदा – गाड़ियों से 65% कम ग्रीनहाउस गैस। सुनने में तो ठीक लगता है ना? 'आत्मनिर्भर भारत' का मंत्र, क्लाइमेट चेंज से जंग। लेकिन जमीन पर उतरते ही सारी पोल खुल जाती है। राठीखेड़ा जैसे सैकड़ों गांवों में प्रोटेस्ट क्यों? क्योंकि ये फायदे ऊपर के लोगों के हैं, नीचे वाले तो डूब रहे हैं।



    चलो, सबसे पहले बात करते हैं पर्यावरण की. भईये, एथेनॉल प्लांट तो पानी का भूत है। एक लीटर एथेनॉल बनाने के लिए 10-15 लीटर पानी चाहिए। राजस्थान जैसे सूखे इलाके में, जहां भूजल पहले ही 300 मीटर नीचे चला गया है, ये प्लांट तो कुओं का कत्लेआम करेगा। राठीखेड़ा में किसान चिल्ला रहे हैं – 'हमारी फसलें सूख जाएंगी, नहरें काली हो जाएंगी!'। और सही कह रहे। प्लांट से निकलने वाला 'स्पेंट वॉश' – वो गंदा पानी – अम्लीय और जहरीला। अगर जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ZLD) न हो, तो नदियां-झीलें बर्बाद। पंजाब-हरियाणा में पहले ही हुआ – नदियां काली, मछलियां मरीं, कैंसर के केस बढ़े। हवा में? चिमनियों से फॉर्मेल्डिहाइड, बेंजीन जैसे जहर उड़ते हैं। NITI Aayog की अपनी स्टडी कहती है, लोकल लेवल पर 50% तक प्रदूषण बढ़ सकता है। लेकिन सरकार? बस दावा करती है 'ग्रीन फ्यूल'। ग्रीन कहां, भाई? ये तो हरा-भरा इलाका बंजर बना देगा। FAO की रिपोर्ट भी चेताती है – बायोफ्यूल से फूड सिक्योरिटी खतरे में। चावल-मक्का फ्यूल के लिए यूज हो तो रोटी महंगी। राठीखेड़ा में तो EC ही नहीं मिली, फिर निर्माण क्यों? ये नाकामी है या जानबूझकर?


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    अब पब्लिक का नुकसान, खासकर किसानों का। भाई, जो लोग खेत जोतते हैं, वही सबसे ज्यादा जलते हैं। सरकार कहती है, 'किसानों को अच्छा दाम मिलेगा'। हां, मिलता है – लेकिन सिर्फ बड़े किसानों को, जो गन्ना उगाते हैं। छोटे-मझोले? उनके लिए पानी की किल्लत, फसलें सूखना। टिब्बी इलाके में इंटरनेट बंद, स्कूल छुट्टी, 700 पुलिस वाले – ये डेमोक्रेसी है? कल अभिमन्यु पूनिया जैसे विधायक को लाठी मारी गई। कांग्रेस चिल्ला रही है, लेकिन BJP वाले चुप। और व्यापक नुकसान? ग्रामीण जॉब्स बढ़ने का दावा, लेकिन रियलिटी में डिस्टिलरी वर्कर्स सांस की बीमारी से जूझते। तेलंगाना, आंध्र, छत्तीसगढ़ – हर तरफ प्रोटेस्ट। 2024-25 में ही दर्जनों प्लांट्स पर गांव वाले सड़क पर। पब्लिक हियरिंग? नाम की रस्म। बिना राय लिए अप्रूवल। ये तो लोकतंत्र की हत्या है। किसान कहते हैं, 'हम मर जाएंगे, लेकिन फैक्ट्री नहीं बनेगी'। सही है – क्योंकि ये उनकी जिंदगी का सवाल है, न कि दिल्ली के अफसरों का KPI।

    फिर बिजनेस को फायदा – यहीं असली खेल है। एथेनॉल पॉलिसी से अदानी, रिलायंस जैसे दिग्गज कमा रहे। सब्सिडी, लॉन्ग कॉन्ट्रैक्ट्स – सब कुछ। लेकिन सबसे बड़ा सवाल: नितिन गडकरी के बेटे का क्या रोल? निकhil गडकरी की CIAN Agro Industries – ये तो एथेनॉल का बड़ा सप्लायर है। 2024 में रेवेन्यू 17 करोड़ था, 2025 में 510 करोड़ हो गया। प्रॉफिट? 30 गुना उछाल! कांग्रेस चिल्ला रही है – 'कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट!'। गडकरी जी खुद कहते हैं, 'मेरा फैसला पॉलिसी के लिए है, परिवार अलग'। लेकिन भईये, बेटे की कंपनी 0.5% से कम सप्लाई करती है, तो 3000% ग्रोथ कैसे? कांग्रेस ने लोकपाल जांच की मांग की है। ये 'क्रोनी कैपिटलिज्म' लगता है – दोस्तों को फायदा, बाकियों को नुकसान। राठीखेड़ा का ड्यून प्लांट? छोटा सा उदाहरण, लेकिन पूरे सिस्टम का आईना। बिना EC के निर्माण, किसानों का दमन – ये बिजनेस को हाईवे साफ करने जैसा है।


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    और सरकार की नाकामी? भाई, ये तो साफ दिख रही। Pradhan Mantri JI-VAN योजना 2024 में अपडेट हुई, वेस्ट-बेस्ड एथेनॉल पर फोकस – अच्छा कदम। लेकिन लागू? जीरो। स्ट्रिक्ट रूल्स का दावा, लेकिन राठीखेड़ा में तो उल्लंघन ही हो रहा। ट्रांसपेरेंसी कहां? पब्लिक हियरिंग अनिवार्य करो, EC सख्ती से चेक करो, लोकल वॉटर टेबल का सर्वे करो। लेकिन नहीं – बस टारगेट पूरा करो, प्रोटेस्ट दबाओ। गडकरी जी की लॉबिंग, कांग्रेस का आरोप – ये तो राजनीतिक फसाद है, लेकिन जड़ में सिस्टम की खामियां। अगर ये 'डबल इंजन' है, तो किसानों के लिए ब्रेक फेल क्यों हो गया?


    अंत में, भाई साहब, राठीखेड़ा की ये चिंगारी पूरे देश में फैल सकती है। सरकार को चाहिए – तुरंत EC रद्द करो, किसानों से बात करो, ट्रांसपेरेंट पॉलिसी बनाओ। वरना, एथेनॉल की 'क्रांति' तो हो जाएगी, लेकिन किसानों की क्रांति भी आ खड़ी होगी। वी न्यूज 24 हमेशा आपके साथ – सच्चाई की जंग लड़ते। आप क्या सोचते हैं? कमेंट्स में बताओ।

    वी न्यूज 24 की टीम दिल्ली-हनुमानगढ़ से लगातार रिपोर्टिंग कर रही। अपडेट्स के लिए बने रहिए।

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