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    अरावली की पहाड़ियों पर खतरे की घंटी: 100 मीटर नियम से 90% हिस्सा खुला, पर्यावरणवादी बोले- ये तो मौत का फरमान है!

    अरावली की पहाड़ियों पर खतरे की घंटी: 100 मीटर नियम से 90% हिस्सा खुला, पर्यावरणवादी बोले- ये तो मौत का फरमान है!


    We News 24 : डिजिटल डेस्क » संवाददाता कविता चौधरी

    नई दिल्ली :- भाई साहब, दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले तो जानते ही होंगे कि अरावली की पहाड़ियां कितनी जरूरी हैं – सांस लेने के लिए साफ हवा, पानी की कमी न हो इसके लिए भूजल, और थार के रेगिस्तान को रोकने का दीवार जैसा काम। लेकिन अब केंद्र सरकार का नया फरमान आ गया है, जो इन पहाड़ियों को खनन माफियाओं के हवाले कर देगा। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को मंजूरी दे दी कि सिर्फ 100 मीटर से ऊंची जगहों को ही अरावली माना जाएगा। मतलब, 90% निचली पहाड़ियां अब खनन और बिल्डिंग के लिए खुलीं। पर्यावरण वाले चिल्ला रहे हैं कि ये दिल्ली की हवा-पानी पर सीधी मार है, लेकिन सरकार कह रही है कि ये वैज्ञानिक तरीका है।

    अधिसूचना की असली कहानी: क्या-क्या बदला यार?

    पर्यावरण मंत्रालय ने जून 2024 में एक कमिटी बनाई थी, जो अरावली की एक जैसी डेफिनिशन लेकर आई। कोर्ट ने ठप्पा लगा दिया। मुख्य पॉइंट्स देखो:



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    डेफिनिशन: राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर के 34 जिलों में कोई भी हिल या पहाड़ी जो लोकल ग्राउंड से 100 मीटर ऊंची हो, उसी को अरावली कहेंगे। ढलान और आसपास का एरिया भी शामिल।

    खनन पर ब्रेक: नए माइनिंग लीज पर फिलहाल रोक, जब तक FSI (फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया) मैपिंग नहीं कर ले और सस्टेनेबल माइनिंग प्लान नहीं बन जाए।

    असर: FSI की रिपोर्ट कहती है कि राजस्थान के 15 जिलों में 12,000 से ज्यादा हिल्स (20 मीटर से ऊंची) हैं, लेकिन सिर्फ 1,000 ही 100 मीटर की लाइन क्रॉस करती हैं। यानी 90% एरिया अब प्रोटेक्टेड नहीं रहेगा।


    ये 1992 की पुरानी नोटिफिकेशन और 2009 के कोर्ट ऑर्डर को पानी पिला रहा है, जहां पूरी अरावली में सख्त बैन था। अब खनन वाले खुश, लेकिन लोकल लोग कह रहे हैं – “साहब, पहले ही अवैध माइनिंग से पहाड़ खोखले हो चुके, अब क्या बचेगा?”



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    पॉलिटिक्स में तूफान: सोनिया गांधी ने मोदी सरकार को घेरा

    कांग्रेस की बड़ी नेता सोनिया गांधी ने कल 'द हिंदू' में आर्टिकल लिखकर सरकार पर हमला बोला। बोलीं, “ये अरावली का डेथ वारंट है। 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियों पर नियम हटा दिए, जो माइनिंग माफिया को इन्विटेशन है। 90% रेंज तबाह हो जाएगी।” उन्होंने दिल्ली के स्मॉग और पानी की किल्लत को जोड़ा, कहा कि ये आने वाली नस्लों के साथ धोखा है।

    कांग्रेस के जयराम रमेश ने ट्वीट किया – “ये पर्यावरण और लोगों की सेहत पर खतरा है।” विपक्ष संसद में हंगामा करने की तैयारी में है। बीजेपी वाले कह रहे हैं कि ये जरूरी बदलाव है, लेकिन लोकल एनजीओ वाले चीख रहे हैं कि ये लॉबी का खेल है।

    पर्यावरण पर क्या मार पड़ेगी? चिंता वाली बातें

    अरावली दुनिया की सबसे पुरानी माउंटेन चेन है, गुजरात से दिल्ली तक 692 किमी लंबी। थार डेजर्ट को रोकती है, जैसे दीवार। इसके फायदे:



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    हवा साफ रखती है: एनसीआर में डस्ट स्टॉर्म रोकती है। 90% एरिया खुला तो पॉल्यूशन 20-30% बढ़ेगा।

    पानी का सोर्स: ग्राउंडवॉटर रिचार्ज करती है। माइनिंग से ड्रायनेस बढ़ेगी।

    जंगल-जानवर: लो हाइट वाली हिल्स में स्क्रब फॉरेस्ट, ग्रासलैंड और वाइल्डलाइफ। हरियाणा का 3.6% फॉरेस्ट एरिया और घटेगा।


    डाउन टू अर्थ मैगजीन कहती है कि इससे डेजर्टिफिकेशन तेज होगा, एनसीआर में स्मॉग 12 महीने रहेगा। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की 2021 की कंजर्वेशन जोन भी प्रभावित। विशेषज्ञ बोले – “ये माइनिंग लॉबी का प्रेशर लगता है, सस्टेनेबल कहकर धोखा दे रहे हैं।”



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    आगे का रोडमैप: कोर्ट क्या कहता है?

    कोर्ट ने ICFRE को सस्टेनेबल माइनिंग प्लान बनाने को कहा – सेंसिटिव एरिया में फुल बैन, अवैध माइनिंग रोक और रेस्टोरेशन। अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट को बूस्ट मिलेगा, लेकिन एक्सपर्ट्स बोले – 100 मीटर रूल के बिना ये बेकार। “पीपल फॉर अरावलीज” जैसे ग्रुप कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल करने वाले हैं। अगर ये लागू हुआ तो अरावली का नामोनिशान मिट जाएगा, भाई!



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