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    "एक देश, दो नियम नहीं चलेंगे! सांसदों के पेशेवर धंधों पर लगे लगाम – 'एक आदमी, एक पद'"

    "एक देश, दो नियम नहीं चलेंगे! सांसदों के पेशेवर धंधों पर लगे लगाम – 'एक आदमी, एक पद'"



    "जब शिक्षक केवल पढ़ा सकता है, डॉक्टर केवल इलाज कर सकता है, तो सांसद क्यों वकालत कर सकता है?


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    लेखक: वरिष्ट पत्रकार दीपक कुमार / संपादकीय डेस्क विश्लेषण | जन-चिंतन


    क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में एक सरकारी कर्मचारी पर इतने नियम-कानून क्यों लागू होते हैं, लेकिन वही नियम हमारे सांसदों पर क्यों नहीं? आज "एक आदमी, एक पद" की मांग सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संरचना की मजबूती के लिए ज़रूरी होती जा रही है।

    जब एक सरकारी शिक्षक कोचिंग नहीं पढ़ा सकता, सरकारी डॉक्टर निजी क्लिनिक नहीं खोल सकता, और सरकारी इंजीनियर फैक्ट्री नहीं चला सकता, लेकिन एक सांसद वकालत क्यों कर सकता है? यह सवाल आज देश की जनता के मन में बार-बार उठ रहा है। आखिर क्यों हमारे देश में दोहरे मापदंड हैं? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझें और जानें कि "एक आदमी, एक पद" की मांग क्यों जरूरी है।



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    सांसदों को विशेष छूट क्यों?

    सांसद हमारे देश के निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं। सांसदों को हर महीने वेतन, भत्ते, मुफ्त यात्रा, सरकारी आवास, सुरक्षा, और जीवन भर पेंशन मिलती है। ये सब जनता के टैक्स से दिए जाते हैं। इसके बावजूद, अनेक सांसद संसद में भाग लेने के साथ-साथ प्रैक्टिसिंग लॉयर (वकील) भी होते हैं—और कई तो करोड़ों रुपये की फीस लेते हैं।  दूसरी ओर, एक सरकारी कर्मचारी—चाहे वह शिक्षक हो, डॉक्टर हो, या कोर्ट का क्लर्क—ऐसा नहीं कर सकता। उनके लिए सख्त नियम हैं, जो हितों के टकराव (conflict of interest) को रोकते हैं। तो सांसदों के लिए ऐसी छूट क्यों?

    क्या आप जानते हैं? संविधान के अनुच्छेद 102 और Representation of the People Act, 1951 सांसदों को केवल "लाभ के पद" पर रहने से रोकते हैं। लेकिन वकालत को इसमें शामिल नहीं माना जाता, क्योंकि यह एक स्वतंत्र पेशा है।लेकिन क्या यह तर्क व्यवहारिक न्याय और नैतिकता की कसौटी पर खरा उतरता है?


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    दोहरा मापदंड: जनता के साथ अन्याय

    जब एक कोर्ट का कर्मचारी वकालत नहीं कर सकता, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है, तो एक सांसद को वकालत करने की अनुमति क्यों? क्या सांसद का वकालत करना उनके संसदीय कर्तव्यों में बाधा नहीं डालता? क्या यह हितों का टकराव नहीं पैदा करता, खासकर जब वे सरकारी मामलों में वकालत करते हैं? सोचिए, अगर कोई सांसद सरकार के खिलाफ या सरकार के समर्थन में कोर्ट में केस लड़े—तो क्या यह हितों के टकराव (conflict of interest) का मामला नहीं होगा? ये सवाल हर उस नागरिक के मन में हैं, जो अपने देश में समानता और पारदर्शिता चाहता है।

    सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं—जैसे मुफ्त हवाई टिकट, रेल टिकट, और बंगला—जनता के टैक्स के पैसे से दी जाती हैं। फिर भी, उन्हें अतिरिक्त कमाई की छूट दी जाती है, जबकि एक सामान्य सरकारी कर्मचारी को ऐसा करने की अनुमति नहीं है। यह दोहरा मापदंड न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि जनता के विश्वास को भी कम करता है।


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    जब वकालत देशहित के खिलाफ हो जाए: एक सांसद और एक एजेंडा?

    इस बहस का सबसे चिंताजनक पहलू तब सामने आता है, जब कुछ सांसद अपने संसदीय पद की गरिमा छोड़कर देशविरोधी तत्वों—जैसे कि PFI, SIMI, या अलगाववादी नेताओं और आंतकवाद —की वकालत करते पाए जाते हैं

    क्या यह सिर्फ पेशेवर स्वतंत्रता है, या राष्ट्रहित के साथ गद्दारी ?

    एक ओर सांसद संविधान की शपथ लेते हैं,
    दूसरी ओर कोर्ट में उन्हीं तत्वों का बचाव करते हैं जो उस संविधान को मिटाना चाहते हैं।
    यह सिर्फ दोहरा मापदंड नहीं, लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है।

     

    जनता सवाल कर रही है:

    "क्या सांसद को आतंकवाद के आरोपी की वकालत करने की छूट होनी चाहिए?"
    "क्या ये सिर्फ पेशा है या किसी वैचारिक एजेंडे की सेवा?"

    एक आम नागरिक रमेश तिवारी लिखते हैं:

    "अगर कोई सांसद संसद में देशभक्ति का भाषण देता है, और कोर्ट में देशद्रोहियों की पैरवी करता है—तो वो सिर्फ सांसद नहीं, एक एजेंडा वाहक है।"



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    राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम पेशेवर आज़ादी

    जब "हितों का टकराव" राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ हो, तब यह बहस सिर्फ नैतिक नहीं रह जाती—यह संविधान, न्यायपालिका और देश की अखंडता से सीधा जुड़ जाती है।
    ऐसे में सवाल उठता है:

    क्या 'वकालत एक स्वतंत्र पेशा है' का तर्क तब भी चलेगा, जब वह पेशा देश के खिलाफ खड़ा हो?


    समाधान और जवाबदेही

    "एक आदमी, एक पद" का सिद्धांत अब केवल नैतिकता का मुद्दा नहीं है—यह राष्ट्र की सुरक्षा और लोकतंत्र की शुचिता से जुड़ चुका है।
    इसके तहत यह भी ज़रूरी है कि:

    सांसद किस-किस केस में वकालत करते हैं, उसकी सार्वजनिक जानकारी हो।

    राष्ट्रद्रोह, आतंकवाद या संविधान विरोधी मामलों की वकालत करने पर प्रतिबंध लगे।
    यदि कोई सांसद इस तरह के मामलों से जुड़ा हो, तो उसकी संसदीय सदस्यता पर पुनर्विचार हो।


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    अब सवाल आपका है: क्या ऐसे सांसद लोकतंत्र के रक्षक हैं या उसके गुप्त हमलावर?

    देश को जागरूक होना होगा।
    "एक आदमी, एक पद" अब केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, राष्ट्र निर्माण की बुनियाद है।


    क्या कहती है जनता?

    सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर गुस्सा और बहस छिड़ी हुई है। लोग पूछ रहे हैं: "जब एक सांसद को इतनी सुविधाएं मिलती हैं, तो उन्हें वकालत की जरूरत क्यों?" कई लोग इसे विशेषाधिकार का दुरुपयोग मानते हैं। एक आम नागरिक, रमेश कुमार, ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा: "जब मैं अपने सरकारी शिक्षक भाई को कोचिंग चलाने से रोकता देखता हूँ, तो सांसदों का वकालत करना मुझे गलत लगता है। यह एक देश, दो कानून की मिसाल है।"

    आपकी राय क्या है? क्या सांसदों को वकालत या अन्य पेशेवर कार्य करने की अनुमति होनी चाहिए? अपनी राय हमारे साथ साझा करें!

    समाधान: एक आदमी, एक पद

    इस दोहरे मापदंड को खत्म करने के लिए "एक आदमी, एक पद" का सिद्धांत लागू करना जरूरी है। इसके तहत:

    • सांसदों को केवल संसदीय कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए और वकालत जैसे अतिरिक्त पेशेवर कार्यों से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
    • उनकी आय और पेशेवर गतिविधियों की पारदर्शी निगरानी होनी चाहिए।
    • हितों के टकराव को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए, जैसे कि सरकारी कर्मचारियों के लिए हैं।

    ऐसे सुधारों के लिए संसद को कानून बनाना होगा। लेकिन यह तभी संभव है जब जनता इस मुद्दे पर एकजुट होकर दबाव बनाए।


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    जनता की ताकत: जागरूकता और बदलाव

    यह मुद्दा केवल सांसदों और वकालत तक सीमित नहीं है। यह हमारे देश में समानता, पारदर्शिता, और जवाबदेही की बात करता है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश एक निष्पक्ष और समावेशी समाज बने, तो हमें ऐसे दोहरे मापदंडों को चुनौती देनी होगी।


    आप क्या कर सकते हैं?

    • इस ब्लॉग को अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें।
    • सोशल मीडिया पर #OnePersonOnePost हैशटैग के साथ अपनी राय व्यक्त करें।
    • अपने क्षेत्र के सांसद को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर सवाल उठाएं।
    • जनहित याचिका (PIL) या सामूहिक याचिका के माध्यम से इस मुद्दे को कोर्ट में ले जाएं।


    निष्कर्ष: समानता के लिए संघर्ष ज़रूरी है

    "एक आदमी, एक पद" कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, यह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का अभियान है। जब तक हम इस दोहरे मापदंड को चुनौती नहीं देंगे, तब तक लोकतंत्र में समानता एक सपना बनी रहेगी।

    आपकी आवाज़ बदलाव ला सकती है। अब सवाल उठाइए—क्योंकि लोकतंत्र में खामोशी सबसे बड़ा अपराध है।

    आज ही जागरूकता फैलाएं!

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