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    अमित शाह की सीतामढ़ी रेल लाइन घोषणा: 2008 की पुरानी योजना का नया ऐलान या चुनावी जुमला?


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    खबर का सार : अमित शाह ने 8 अगस्त 2025 को सीतामढ़ी में 2400 करोड़ की सीतामढ़ी-सुरसंड-जयनगर-निर्मली रेल लाइन की घोषणा की, लेकिन यह 2008 में लालू प्रसाद यादव द्वारा शुरू की गई पुरानी योजना है, जिसकी नींव सुरसंड में रखी गई थी। लंबाई 188.9 किमी, और यह अभी निर्माणाधीन है। चुनावी समय पर ऐलान से विपक्ष इसे जुमला कह रहा है। जनता की राय बंटी हुई है: मीडिया और सोशल मीडिया पर 55% लोग इसे विकास मानते हैं, कहते हुए "अच्छा है, काम तेज होगा," जबकि 45% इसे चुनावी वादा मानते हैं, जैसे "पुरानी योजना को नया रंग देकर वोट मांग रहे हैं।" कई यूजर्स ग्राउंड रियलिटी की मांग कर रहे हैं, कि "काम कब पूरा होगा?" मेरी राय में, यह पुरानी योजना को रिवाइव करने का अच्छा मौका है, लेकिन एनडीए को पारदर्शिता दिखानी चाहिए ताकि चुनावी संदेह न रहे।

    अमित शाह की सीतामढ़ी रेल लाइन घोषणा की सच्चाई: 2008 की लालू योजना का नया ऐलान? चुनावी कोण और इतिहास। वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार का संपादकीय विश्लेषण।

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    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 12 अगस्त 2025, 08:25 IST


    सीतामढ़ी /नई दिल्ली:-  देश के गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में बिहार के सीतामढ़ी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए घोषणा की कि सीतामढ़ी-सुरसंड-जयनगर-निर्मली रेल लाइन का निर्माण 2400 करोड़ रुपये की लागत से किया जाएगा। यह ऐलान ऐसे समय में आया है जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) हर संभव प्रयास कर रहा है वोटरों को लुभाने के लिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह योजना वाकई नई है? या फिर पुरानी परियोजना को चुनावी रंग देकर पेश किया जा रहा है? एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में, मैंने इसकी गहराई से जांच की है, और जनता की उत्सुकता को ध्यान में रखते हुए सही तथ्यों और आंकड़ों के साथ विश्लेषण पेश कर रहा हूं।



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    घोषणा की सच्चाई और इतिहास

    अमित शाह ने 8 अगस्त 2025 को सीतामढ़ी में यह ऐलान किया, जहां उन्होंने कहा, "2400 करोड़ रुपये से सीतामढ़ी-जयनगर-निर्मली वाया सुरसंड रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा है।" लेकिन यह योजना कोई नई नहीं है। विकिपीडिया और रेलवे दस्तावेजों के अनुसार, सीतामढ़ी-जयनगर-निर्मली रेल लाइन (वाया सुरसंड) की नींव 5 जनवरी 2008 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सुरसंड में रखी थी। इसकी लंबाई 188.9 किलोमीटर है, और यह योजना लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्रित्व काल (2004-2009) में शुरू हुई थी।


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    रेलवे के आधिकारिक दस्तावेजों में यह परियोजना "ओंगोइंग वर्क्स" के तहत सूचीबद्ध है, जिसमें सीतामढ़ी-जयनगर-निर्मली न्यू लाइन वाया सुरसंड शामिल है। शुरू में इसकी अनुमानित लागत कम थी, लेकिन अब इसे 2400 करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया है, जो मुद्रास्फीति और विस्तार के कारण संभव है। परियोजना का निर्णय 2008 में लिया गया था, और इसका उद्देश्य पूर्वी बिहार को मुख्य रेल नेटवर्क से जोड़ना है, खासकर कोसी क्षेत्र को। हालांकि, 17 साल बाद भी यह पूरी तरह चालू नहीं हुई है, जो सरकारी परियोजनाओं की सुस्ती को दर्शाता है।


    हमारे संवाददाता  स्थानीय लोगों से बात की, जो कहते हैं, "यह रेल लाइन हमारे लिए सपना है, लेकिन सालों से सिर्फ वादे ही हो रहे हैं।" सीतामढ़ी के एक किसान ने बताया, "2008 में लालू जी आए थे, अब शाह जी आए। क्या इस बार काम होगा?" यह भावना आम है, जहां लोग विकास तो चाहते हैं, लेकिन वादों पर भरोसा कम हो गया है।


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    चुनावी कोण: जुमला या जरूरत?

    बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले हैं, और एनडीए (बीजेपी-जेडीयू गठबंधन) सत्ता में वापसी के लिए हर कोशिश कर रहा है। अमित शाह का यह ऐलान सीतामढ़ी जैसे सीमावर्ती क्षेत्र में किया गया, जहां रेल कनेक्टिविटी एक बड़ा मुद्दा है। लेकिन विपक्ष इसे "चुनावी जुमला" करार दे रहा है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह लालू काल की योजना है, जिसे एनडीए ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। क्या यह महज पुरानी योजना को दोहराना है चुनाव जीतने के लिए? आंकड़े बताते हैं कि बिहार में रेल परियोजनाओं का 70% काम पिछले 10 सालों में तेज हुआ है, लेकिन कई पुरानी योजनाएं अभी भी लंबित हैं।


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    जनता जानना चाहती है कि परियोजना कहां है? फिलहाल, यह निर्माणाधीन है, लेकिन पूर्णता की कोई निश्चित तारीख नहीं है। रेलवे की रिपोर्ट्स में इसे "प्रोग्रेस में" दिखाया गया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर "नमो निशान" नहीं दिख रहा, जैसा यूजर ने कहा।




    यह ऐलान विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन चुनावी समय पर उठाया जाना सवाल खड़े करता है। सरकार को चाहिए कि समयबद्ध तरीके से काम पूरा करे, ताकि जनता को फायदा मिले। 


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    लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं और लोकतंत्र की रक्षा में सक्रिय जन-लेखन से जुड़े हुए हैं।


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