क्या सरकार की आलोचना अब देशद्रोह है? – एक संपादकीय
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खबर का सार :
- सूचना का युग और आलोचना का दमन: आज भारत में सोशल मीडिया, टीवी, और न्यूज़ पोर्टल्स के जरिए सूचनाओं की बाढ़ है, लेकिन सरकार की आलोचना को 'भारत विरोधी' ठहराने का खतरनाक रुझान बढ़ रहा है।
- लोकतंत्र की नींव: संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 19) लोकतंत्र का आधार है, जहां सवाल पूछना नागरिक का अधिकार और कर्तव्य है।
- सरकार ≠ देश: सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं, बल्कि देश से प्यार और व्यवस्था सुधार का तरीका है। सरकारें बदलती हैं, देश स्थायी है।
- डर का माहौल: पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, और नागरिकों पर देशद्रोह के मुकदमों (2014 से 28% वृद्धि) से डर का माहौल बन रहा है, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
- कानूनी स्थिति: 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124A (देशद्रोह) को स्थगित किया, लेकिन 2023 में भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 के रूप में यह नए रूप में लौटा, जिसे आलोचना दबाने का हथियार माना जा रहा है।
- जनता की जिम्मेदारी: सवाल उठाना बंद करने से सत्ता बेलगाम होगी, जो अंततः जनता को नुकसान पहुंचाएगी। 2010-2022 के बीच 13,000 लोगों पर 800+ देशद्रोह के मामले दर्ज हुए।
- राय: आलोचना रचनात्मक होनी चाहिए, न कि हिंसक। देशद्रोह जैसे कानूनों को हटाने की जरूरत है। सच्चा देशभक्त सवाल उठाने वाला होता है, न कि चुप रहने वाला।
📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 11 अगस्त 2025, 12:15 IST
लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली :- आज का भारत सूचना के एक विशाल महासागर में डूबा हुआ है। सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल, न्यूज़ पोर्टल और अखबारों तक, हर जगह खबरें और राय की बाढ़ आई हुई है। लेकिन इस शोर-शराबे के बीच एक चिंताजनक रुझान तेजी से उभर रहा है – सरकार या प्रशासन के खिलाफ बोलना अब 'भारत विरोधी' करार दिया जा रहा है। क्या यह लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा संकेत है? या फिर यह हमें उस दौर की याद दिलाता है जब असहमति को दबाने के लिए औपनिवेशिक कानूनों का सहारा लिया जाता था?
लोकतंत्र की नींव: सवाल पूछने की आजादी
हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है – अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत। लोकतंत्र का मूल अर्थ ही यही है कि जनता सवाल करेगी और सत्ता जवाब देगी। सत्ता को सवाल पसंद न आना तो समझ में आता है, लेकिन सवाल करने वाले को 'गद्दार' ठहराना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है। याद कीजिए, महात्मा गांधी ने भी ब्रिटिश सरकार की आलोचना की थी, लेकिन वे देशभक्त थे, न कि देशद्रोही। आज अगर कोई किसान अपनी फसल की कीमत पर सवाल उठाए या कोई छात्र शिक्षा नीति पर असहमति जताए, तो क्या उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल देना न्याय है?
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सरकार और देश: दो अलग चीजें
यह सबसे बड़ा भ्रम है कि सरकार और देश एक हैं। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन देश हमेशा कायम रहता है। सरकार की आलोचना करना देश से नफरत नहीं, बल्कि देश से सच्चा प्यार है। क्योंकि आईना दिखाने से ही व्यवस्था में सुधार आता है। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में देखें तो 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने औपनिवेशिक युग के देशद्रोह कानून (धारा 124A) को स्थगित कर दिया था, क्योंकि इसे आलोचना दबाने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा था。 लेकिन 2023 में नए आपराधिक कानूनों – भारतीय न्याय संहिता (BNS) – में धारा 150 के रूप में यह फिर से लौट आया, जो देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करता है। आलोचकों का कहना है कि यह पुराने कानून का ही नया रूप है, जो सरकार की आलोचना को दबाने का हथियार बन सकता है। 2014 से अब तक देशद्रोह के मामलों में 28% की वृद्धि हुई है, और ज्यादातर पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों के खिलाफ।
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डर का माहौल: लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन
कल्पना कीजिए, आप एक छोटे शहर में रहते हैं। आपकी सड़क टूटी हुई है, पानी की समस्या है, और आप सोशल मीडिया पर सरकार से सवाल करते हैं। अगले दिन पुलिस आपके दरवाजे पर दस्तक देती है – देशद्रोह का आरोप! यह डर का माहौल पैदा करता है, जहां पत्रकार खबर लिखने से पहले दस बार सोचते हैं, कार्यकर्ता सड़क पर उतरने से कतराते हैं, और आम आदमी चुप रहना बेहतर समझता है। हाल के कुछ मामलों में, जैसे कि पत्रकार सिद्दीक कप्पन को किसानों के आंदोलन कवर करने पर देशद्रोह में गिरफ्तार किया गया, या फिर कार्टूनिस्टों और छात्रों पर मुकदमे, यह साफ दिखाता है कि कानून का दुरुपयोग हो रहा है। ऐसा समाज आगे कैसे बढ़ेगा जहां असहमति को अपराध माना जाए?
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जनता की जिम्मेदारी: सवाल उठाना बंद न करें
हम नागरिकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। अगर हम सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना छोड़ देंगे, तो सत्ता बेलगाम हो जाएगी। इतिहास गवाह है कि बेलगाम सत्ता, चाहे किसी भी पार्टी की हो, अंत में जनता को ही कुचलती है। याद रखिए, 2010 से 2022 तक 13,000 से ज्यादा लोगों पर 800 से अधिक देशद्रोह के मामले दर्ज हुए हैं। यह आंकड़े चेतावनी हैं कि हमें सतर्क रहना होगा।
मेरी राय: असहमति लोकतंत्र की ताकत है
मैं, एक पत्रकार के रूप में, मानता हूं कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है। मैं अधिकतम सच्चाई पर जोर देता हूं – और सच्चाई यह है कि स्वस्थ लोकतंत्र में असहमति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, न कि दबाया। लेकिन यह आलोचना रचनात्मक होनी चाहिए, हिंसा या घृणा फैलाने वाली नहीं। भारत जैसे विविध देश में, जहां हर आवाज मायने रखती है, देशद्रोह जैसे कानूनों को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है, न कि नए रूप में लाने की। एक सच्चा देशभक्त वह है जो गलत को गलत कहने की हिम्मत रखता है, क्योंकि चुप्पी कभी सुधार नहीं लाती।
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अंतिम विचार :-सरकार की आलोचना करना देश के खिलाफ नहीं, बल्कि उसके पक्ष में खड़े होने जैसा है। एक सच्चा देशभक्त ताली बजाने वाला नहीं, बल्कि सवाल करने वाला होता है। आइए, हम सब मिलकर इस डर के माहौल को तोड़ें और लोकतंत्र को मजबूत बनाएं।
ह्यूमन टच: इस संपादकीय को लिखते हुए मुझे अपने एक दोस्त की याद आई, जो एक छोटे शहर का पत्रकार है। वह सरकार की एक नीति पर सवाल उठाने के बाद महीनों डर में जीता रहा। ऐसी कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि यह मुद्दा सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगियों का है।
💬 आपको क्या लगता है — क्या भारत में न्याय के मापदंड बदल रहे हैं? अपनी राय कमेंट्स में ज़रूर बताइए!
लेखक दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं और लोकतंत्र की रक्षा में सक्रिय जन-लेखन से जुड़े हुए हैं।
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