बिहार SIR विवाद: 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए, सुप्रीम कोर्ट ने EC से मांगा जवाब
प्रकाशित: 06 अगस्त 2025, 14:50 IST
नई दिल्ली – बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया के तहत 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने का मामला गरमाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) से इस मामले में जवाब मांगते हुए पूछा है कि ये 65 लाख मतदाता कौन हैं और उनके नाम क्यों हटाए गए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, उज्जल भुयान, और एन.के. सिंह की पीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए आयोग को 9 अगस्त तक विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी।
ये भी पढ़े-हिरोशिमा परमाणु हमले के 80 साल: एक झटके में बदल गई दुनिया और इंसानियत
AI समरी: खबर का सार
बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि ये मतदाता कौन हैं और उनके नाम हटाने का कारण क्या है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मांग की है कि हटाए गए मतदाताओं की सूची सार्वजनिक की जाए, जिसमें यह स्पष्ट हो कि कितने लोग मृत हैं, कितने प्रवास कर गए, और कितनों के नाम बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) की सिफारिश पर हटाए गए।
मामला क्या है?
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार से शुरू होकर देशभर में SIR प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था। इसके तहत 25 जुलाई तक गणना फॉर्म जमा करने वाले मतदाताओं को ही ड्राफ्ट सूची में शामिल किया गया। आयोग के अनुसार, बिहार के 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने फॉर्म जमा किए, जिसका मतलब है कि 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए। आयोग ने बताया कि इनमें से:
- 22 लाख मतदाता मृत हैं।
- 35 लाख स्थायी रूप से पलायन कर गए या उनका पता नहीं चला।
- 7 लाख मतदाता एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत थे।
ये भी पढ़े- उत्तरकाशी: 190 साल पहले भी खीरगंगा ने मचाई थी तबाही, 206 मंदिर और कई गांव हुए थे तबाह
हालांकि, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की कोई सूची सार्वजनिक नहीं की गई। उन्होंने कहा, “केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में BLO की सिफारिशें प्रकाशित हुईं, बाकी क्षेत्रों की जानकारी गायब है।” भूषण ने यह भी आरोप लगाया कि 75% मतदाताओं ने आवश्यक दस्तावेज जमा नहीं किए, फिर भी उनके नाम BLO की सिफारिश पर जोड़े या हटाए गए।
ये भी पढ़े- धराली त्रासदी: मेले की खुशियां मातम में बदली, बादल फटने से गांव तबाह
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “चुनाव आयोग की SOP के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को हटाए गए मतदाताओं की जानकारी दी जानी चाहिए।” कोर्ट ने आयोग से पूछा कि यह जानकारी किन-किन दलों को दी गई और क्यों पूरी सूची सार्वजनिक नहीं की गई। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि हर प्रभावित मतदाता से संपर्क किया जाए और उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए।
चुनाव आयोग ने दावा किया कि उसने 99.8% मतदाताओं को कवर किया और 91.69% ने फॉर्म जमा किए, जो इस अभियान की सफलता को दर्शाता है। आयोग ने यह भी कहा कि हटाए गए मतदाताओं की सूची कुछ राजनीतिक दलों के साथ साझा की गई है।
ये भी पढ़े-दिल्ली छत्तरपुर में पानी का संकट: रामलीला चौक के निवासी परेशान, विधायक करतार सिंह पर उठ रहे सवाल
विपक्ष और NGO का रुख
विपक्षी दल और ADR ने SIR प्रक्रिया को “गैर-पारदर्शी” और “मताधिकार छीनने वाला” करार दिया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा और योगेंद्र यादव ने भी याचिकाएं दायर कीं, जिसमें दावा किया गया कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बना रही है। मनोज झा ने कहा कि पहली बार मतदाताओं से नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण मांगा जा रहा है, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
ADR ने आरोप लगाया कि कई BLOs ने फर्जी तरीके से फॉर्म भरे, यहां तक कि मृत लोगों के नाम पर भी आवेदन जमा हुए। कुछ मतदाताओं को SMS मिले कि उनका फॉर्म जमा हो गया, जबकि उन्होंने कोई फॉर्म भरा ही नहीं।
हमारी राय
बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने का मामला लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाता है। मतदाता सूची को साफ करने की प्रक्रिया जरूरी है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाना, बिना स्पष्ट जानकारी और सार्वजनिक सूची के, संदेह पैदा करता है। खासकर तब, जब बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। यह जरूरी है कि चुनाव आयोग हर हटाए गए मतदाता का विवरण—मृत्यु, पलायन, या डुप्लिकेशन—सार्वजनिक करे ताकि पारदर्शिता बनी रहे। अगर यह प्रक्रिया गलत तरीके से हुई, तो यह लाखों लोगों के मताधिकार को प्रभावित कर सकती है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी इस मामले में निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
पब्लिक की राय
सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर आक्रोश जता रहे हैं। कई यूजर्स ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” करार दिया। एक यूजर ने लिखा, “65 लाख मतदाता गायब? यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है। EC को पारदर्शिता दिखानी होगी, वरना यह सियासी साजिश मानी जाएगी।” कुछ लोगों ने इसे गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को वोटिंग से वंचित करने की रणनीति बताया। वहीं, कुछ का मानना है कि फर्जी और मृत मतदाताओं को हटाना जरूरी था, लेकिन प्रक्रिया को और खुला करना चाहिए था।
🔴 लेटेस्ट अपडेट्स के लिए जुड़े रहें We News 24 के साथ!
📡 सच्ची, निर्भीक और जनहित की पत्रकारिता — बस We News 24 पर!
कोई टिप्पणी नहीं
कोमेंट करनेके लिए धन्यवाद