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    सरकारी स्कूल की शर्मनाक लापरवाही: 84 बच्चों को परोसा कुत्ते का जूठा खाना, 78 को लगे एंटी-रेबीज टीके

    सरकारी स्कूल की शर्मनाक लापरवाही: 84 बच्चों को परोसा कुत्ते का जूठा खाना, 78 को लगे एंटी-रेबीज टीके
    Image Source : PTI मिड डे मील (फाइल फोटो)



    छात्रों ने पहले ही शिक्षकों को कुत्ते के जूठे खाने के बारे में बताया था। इसके बावजूद उन्हें वही खाना परोसा गया। बाद में बवाल हुआ तो बच्चों को एंटी-रेबीज इंजेक्शन लगवाए गए।


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » रिपोर्टिंग सूत्र / स्थानीय संवाददाता Edited By: गौतम कुमार  प्रकाशित: 04 अगस्त 2025, 06:30 IST


    छत्तीसगढ़ :- के बलौदाबाजार जिले के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को कुत्ते का जूठा खाना परोसने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस लापरवाही के कारण 78 बच्चों को एहतियातन एंटी-रेबीज इंजेक्शन लगवाना पड़ा। यह घटना 29 जुलाई 2025 को पलारी ब्लॉक के लछनपुर गांव के शासकीय मिडिल स्कूल में हुई। बच्चों ने शिक्षकों को पहले ही खाने के दूषित होने की सूचना दी थी, लेकिन स्वयं सहायता समूह (SHG) ने इसे नजरअंदाज कर खाना परोस दिया। इस घटना ने शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।


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    क्या है पूरा मामला?

     लछनपुर मिडिल स्कूल में मध्याह्न भोजन के लिए तैयार सब्जी को एक आवारा कुत्ते ने जूठा कर दिया। कुछ सतर्क छात्रों ने यह देखकर तुरंत शिक्षकों को सूचित किया। शिक्षकों ने जय लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की रसोइयों को खाना परोसने से मना किया, लेकिन समूह की महिलाओं ने दावा किया कि सब्जी जूठी नहीं हुई और उसे 84 बच्चों को परोस दिया। बच्चों ने घर जाकर अपने परिजनों को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद अभिभावकों और ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया।


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    ग्रामीणों और स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष झालेंद्र साहू ने स्कूल पहुंचकर शिक्षकों और रसोइयों से जवाब मांगा। इसके बाद बच्चों को तुरंत लछनपुर स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां प्रभारी डॉ. वीना वर्मा ने 78 बच्चों को एंटी-रेबीज वैक्सीन की पहली खुराक दी। डॉ. वर्मा ने बताया, "यह टीका एहतियातन लगाया गया है, क्योंकि रेबीज का खतरा गंभीर हो सकता है। पहली खुराक का कोई दुष्प्रभाव नहीं है, और यह कदम अभिभावकों और ग्रामीणों की मांग पर उठाया गया।"


    प्रशासन और विधायक की प्रतिक्रिया

    घटना की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई शुरू की। उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) दीपक निकुंज और खंड शिक्षा अधिकारी नरेश वर्मा ने स्कूल पहुंचकर बच्चों, शिक्षकों, और अभिभावकों के बयान दर्ज किए। हालांकि, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं जांच में शामिल नहीं हुईं। कलेक्टर ने प्रारंभिक जांच के आधार पर जय लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह को मध्याह्न भोजन संचालन से अस्थायी रूप से हटा दिया है और भोजन की जिम्मेदारी स्कूल के संस्था प्रमुख को सौंप दी है।


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    स्थानीय विधायक संदीप साहू ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखकर निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि बिना किसी ठोस आदेश के बच्चों को एंटी-रेबीज टीके क्यों लगाए गए।


    ग्रामीणों और अभिभावकों में आक्रोश

    घटना के बाद अभिभावकों और ग्रामीणों ने स्कूल के बाहर प्रदर्शन कर स्वयं सहायता समूह को हटाने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। एक छात्र के पिता उमाशंकर साहू ने कहा, "यह लापरवाही अस्वीकार्य है। बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया गया। शिक्षकों ने खाना न परोसने की चेतावनी दी थी, फिर भी इसे अनसुना किया गया।" ग्रामीणों ने स्कूल प्रशासन और मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं।


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    रेबीज का खतरा और एंटी-रेबीज टीका

    रेबीज एक घातक वायरल बीमारी है, जो कुत्ते के काटने या जूठे खाने के संपर्क में आने से फैल सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, रेबीज से बचाव के लिए समय पर टीका लगवाना जरूरी है। सामान्य तौर पर, कुत्ते के काटने के बाद एंटी-रेबीज वैक्सीन की 4-6 खुराक दी जाती हैं, जो पहले दिन, तीसरे दिन, सातवें दिन, और 14वें दिन तक दी जाती हैं। इस मामले में, बच्चों को पहली खुराक एहतियातन दी गई, क्योंकि रेबीज का खतरा पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता था।


    मध्याह्न भोजन योजना पर सवाल

    मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करना है, लेकिन इस तरह की लापरवाही ने योजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले भी कई बार मिड-डे मील में खराब खाना, कीड़े, या अन्य समस्याओं की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। इस घटना ने स्वयं सहायता समूहों की जवाबदेही और स्कूल प्रशासन की निगरानी व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है।


    आगे क्या?

    प्रशासन ने मामले की गहन जांच शुरू कर दी है। जिला शिक्षा अधिकारी ने प्रधान पाठक और संकुल समन्वयक को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। ग्रामीणों और अभिभावकों ने मांग की है कि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो और मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए। इस बीच, बच्चों की सेहत पर नजर रखी जा रही है, और स्वास्थ्य विभाग ने आश्वासन दिया है कि सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।


    लापरवाही 

    यह घटना न केवल स्कूल प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति सिस्टम की उदासीनता को भी उजागर करती है। माता-पिता और ग्रामीणों का गुस्सा जायज है, क्योंकि बच्चों की जान जोखिम में डालने वाली ऐसी गलती किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले में दोषियों को कड़ी सजा दे और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए।


    आपकी राय: क्या आपको लगता है कि मध्याह्न भोजन योजना में सुधार की जरूरत है? इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए? अपनी राय कमेंट में साझा करें।


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