दिल्ली स्कूल शिक्षा शुल्क बिल 2025: शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने पेश किया विधेयक, कहा- 'शिक्षा बेचने की चीज नहीं'
दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने दिल्ली स्कूल शिक्षा शुल्क निर्धारण बिल 2025 को विधानसभा में पेश किया।
📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » रिपोर्टिंग सूत्र / काजल कुमारी /प्रकाशित: 04 अगस्त 2025, 20:30 IST
नई दिल्ली :- दिल्ली विधानसभा के मॉनसून सत्र में सोमवार, 4 अगस्त 2025 को शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने 'दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025' पेश किया। इस विधेयक को पेश करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा, "शिक्षा बेचने की चीज नहीं है। यह विधेयक शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने और उन माफियाओं पर कार्रवाई करने के लिए लाया गया है जो शिक्षा को लाभ का धंधा बना रहे हैं।" यह विधेयक दिल्ली के 1,677 निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने के उद्देश्य से लाया गया है। हालांकि, आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस बिल का कड़ा विरोध करते हुए इसे 'निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने वाला' करार दिया है।
दिल्ली स्कूल शिक्षा विधेयक 2025: प्रमुख प्रावधान
29 अप्रैल 2025 को दिल्ली कैबिनेट द्वारा अनुमोदित इस विधेयक में निजी स्कूलों की फीस वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। विधेयक के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:
तीन-स्तरीय समिति संरचना: फीस निर्धारण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्कूल, जिला, और राज्य स्तर पर समितियां गठित की जाएंगी। स्कूल-स्तरीय समिति में प्रिंसिपल, तीन शिक्षक, पांच अभिभावक, और शिक्षा निदेशालय का एक नामित सदस्य शामिल होगा। जिला-स्तरीय समिति स्कूल-स्तरीय निर्णयों के खिलाफ अपील की सुनवाई करेगी, और राज्य-स्तरीय समिति अंतिम अपीलीय प्राधिकरण होगी।
कठोर दंड: पहली बार नियमों का उल्लंघन करने पर स्कूलों पर 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा। बार-बार उल्लंघन पर 2 लाख से 10 लाख रुपये तक का दंड होगा। यदि स्कूल निर्धारित समय में अतिरिक्त फीस वापस नहीं करता, तो 20 दिनों के बाद जुर्माना दोगुना, 40 दिनों के बाद तिगुना, और हर 20 दिन की देरी के साथ बढ़ता रहेगा।
स्कूलों पर सख्ती: बार-बार उल्लंघन करने वाले स्कूलों के प्रबंधन को आधिकारिक पदों से हटाया जा सकता है, और उनकी मान्यता रद्द हो सकती है।
छात्रों पर दबाव पर रोक: स्कूलों को फीस न चुकाने पर छात्रों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई, जैसे रिजल्ट रोकना या नाम काटना, करने से रोका जाएगा। ऐसी शिकायतों पर प्रति छात्र 50,000 रुपये का जुर्माना लगेगा।
क्यों जरूरी था यह विधेयक?
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली के निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वृद्धि की शिकायतें बढ़ी हैं। अप्रैल 2025 में डीपीएस द्वारका में फीस वृद्धि के खिलाफ अभिभावकों के विरोध प्रदर्शन और स्कूल द्वारा छात्रों को निष्कासित करने की घटना ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्कूल के इस कदम को "अमानवीय" करार देते हुए प्रभावित छात्रों को आंशिक भुगतान के बाद पुन: प्रवेश देने का आदेश दिया था।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "पिछली सरकारों ने फीस वृद्धि को रोकने के लिए कोई प्रावधान नहीं बनाया था। इस बिल के जरिए हम अभिभावकों को राहत देंगे और स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाएंगे।" शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने भी जोड़ा, "यह बिल सबसे लोकतांत्रिक है, क्योंकि इसमें सभी हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।"
AAP का विरोध: 'यह बिल जनता के लिए नहीं, स्कूल माफिया के लिए'
आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस विधेयक को "आंखों में धूल झोंकने वाला" करार दिया है। विपक्ष के नेता आतिशी ने आरोप लगाया कि यह बिल 2026-27 सत्र से लागू होगा, जिससे मौजूदा सत्र में अभिभावकों को कोई तत्काल राहत नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा, "स्कूलों ने इस साल 30-45% तक फीस बढ़ाई है। सरकार को पहले इन वृद्धियों को रद्द करना चाहिए और अतिरिक्त फीस वापस करवानी चाहिए।" आतिशी ने यह भी मांग की कि बिल को सार्वजनिक डोमेन में रखकर हितधारकों की राय ली जाए।
AAP के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारदwaj ने दावा किया कि यह बिल "शिक्षा माफिया" को संरक्षण देने के लिए बनाया गया है और इसमें ऑडिट तंत्र को हटाने की साजिश की गई है। उन्होंने सवाल उठाया, "अगर यह बिल अभिभावकों के हित में है, तो इसे अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?"
अभिभावकों और शिक्षकों की प्रतिक्रिया
दिल्ली के अभिभावक संगठन, जैसे यूनाइटेड पेरेंट्स वॉयस (UPV), ने इस बिल का स्वागत किया है। ITL इंटरनेशनल स्कूल, द्वारका की प्रिंसिपल सुधा आचार्य ने कहा, "यह बिल स्कूलों और अभिभावकों के बीच पारदर्शिता लाएगा और अनुचित फीस वृद्धि की शिकायतों को हल करेगा।" वहीं, रोहिणी के सॉवरेन स्कूल के चेयरपर्सन आरएन जिंदल ने भी बिल के दृष्टिकोण की सराहना की।
हालांकि, कुछ अभिभावकों का कहना है कि बिल का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कितनी सख्ती से लागू किया जाता है। एक अभिभावक, रमेश शर्मा ने कहा, "पिछले कई सालों से हम स्कूलों की मनमानी से परेशान हैं। अगर यह बिल वाकई में लागू हो जाता है, तो यह हमारे लिए बड़ी राहत होगी।"
दिल्ली विधानसभा का मॉनसून सत्र: अन्य पहल
यह विधेयक दिल्ली विधानसभा के मॉनसून सत्र (4-8 अगस्त 2025) में पेश किया गया, जो पूरी तरह डिजिटल और पेपरलेस है। यह सत्र भारत का पहला सौर ऊर्जा से संचालित विधानसभा सत्र भी है, जो सालाना 1.75 करोड़ रुपये की बचत करेगा। सत्र में CAG की दो रिपोर्टें, 2023-24 के वित्त और लेखा खातों, और भवन निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर चर्चा होगी।
अंतिम विचार
दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025 निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। शिक्षा मंत्री आशीष सूद और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इसे शिक्षा के व्यावसायीकरण के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम बताया है। हालांकि, AAP के विरोध और तत्काल राहत की मांग ने इस बिल के कार्यान्वयन पर सवाल उठाए हैं। यह देखना बाकी है कि यह विधेयक दिल्ली के 1,677 निजी स्कूलों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में कितना सफल होगा।
आपकी राय: क्या यह बिल अभिभावकों को वाकई राहत देगा? AAP का विरोध कितना जायज है? अपनी राय कमेंट में साझा करें।
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