"क्या मस्जिदों पर कानून लागू नहीं होते? ध्वनि प्रदूषण से परेशान नागरिक, दिल्ली पुलिस की चुप्पी पर सवाल"
पहलगाम की तरह यहाँ भी सुरक्षा का सवाल, लेकिन इस बार ध्वनि प्रदूषण का! क्या दिल्ली सराय बन गई है जहाँ कानून सिर्फ़ कुछ लोगों पर लागू होता है? जब देश की राजधानी दिल्ली में ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों को खुलेआम नज़रअंदाज़ किया जा रहा हो, तो आम आदमी आखिर किस पर भरोसा करे?
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लेखक: लेखक वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार
नई दिल्ली :- पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने कश्मीर में सुरक्षा की चिंताएं बढ़ा दी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में भी नागरिक अपनी ही सुरक्षा और शांति के लिए जूझ रहे हैं? यह कहानी है एक ऐसे नागरिक की, जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद, धार्मिक स्थलों से होने वाले तेज़ ध्वनि प्रदूषण से परेशान है और जिसे दिल्ली पुलिस से कोई मदद नहीं मिल रही। यह सिर्फ़ ध्वनि का शोर नहीं, बल्कि कानून के राज और नागरिकों की गरिमा पर एक बड़ा सवाल है।
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हर सुबह 4:45 बजे की असहनीय शुरुआत:
पीड़ित डॉ. अर्विंद यादव, की पीड़ा मैं, डॉ. अर्विंद यादव, जो वार्ड 155 मिहरावली में रहता हूँ, हर रोज़ सुबह 4:45 बजे एक ही तेज़ आवाज़ से जाग जाता हूँ - मस्जिद से बजने वाले लाउडस्पीकर की आवाज़। मेरी नन्हीं बच्ची इस अप्रत्याशित और तेज़ शोर से डरकर रोने लगती है। यह सिर्फ़ मेरी समस्या नहीं है। मेरे जैसे हज़ारों परिवार इस रोज़ाना के ध्वनि प्रदूषण से पीड़ित हैं, लेकिन हमारी शिकायतें अनसुनी की जा रही हैं। यह स्थिति तब और भी निराशाजनक हो जाती है जब देश की सबसे बड़ी अदालतें भी इस पर स्पष्ट आदेश दे चुकी हैं।
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26 अप्रैल 2025: जब पुलिस की चुप्पी ने चौंका दिया
उस सुबह, जब अधिकांश दिल्लीवासी गहरी नींद में थे, सुबह 4:48 बजे मस्जिद से लाउडस्पीकर की तेज़ आवाज़ ने शांति भंग कर दी। मैंने तुरंत 112 पर कॉल करके शिकायत दर्ज कराई। पीसीआर वैन मौके पर पहुँची, और एक पुलिसकर्मी, ने स्थिति को समझा। लेकिन जांच अधिकारी एसआई के सहयोगी का जवाब चौंकाने वाला था:
"ये मस्जिद है, कुछ नहीं हो सकता। जब योगी जैसा मुख्यमंत्री आएगा तब कुछ होगा।"
यह सुनकर मन में सवाल उठा - क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी ने कोई ऐसा विशेष आदेश दिया है जिससे धार्मिक स्थलों पर कानून लागू न हो? जवाब स्पष्ट था: नहीं। कानून सभी के लिए समान है।
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ध्वनि प्रदूषण कानून: क्या यह सिर्फ़ दिखावा है?
दिल्ली हाईकोर्ट और केंद्रीय पर्यावरण नियमों के अनुसार, रिहायशी इलाकों में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल से अधिक ध्वनि पूरी तरह से अवैध है। यह नियम धार्मिक स्थलों पर भी समान रूप से लागू होता है, चाहे वह मस्जिद हो, मंदिर हो या चर्च। फिर क्यों मस्जिदों पर ये नियम लागू नहीं होते? क्या कानून की किताबें सिर्फ़ पढ़ने के लिए हैं, पालन करने के लिए नहीं?
शिकायत का अंजाम: पुलिस की अनदेखी और धमकियां
शिकायत दर्ज करने के बाद मुझे जिस स्थिति का सामना करना पड़ा, वह और भी भयावह थी। मस्जिद से इमाम के साथ 15-20 लोगों की भीड़ मेरे दरवाज़े पर आ धमकी। एक युवक ने सीधे शब्दों में धमकी दी:
"यहां लाउडस्पीकर बजेगा, तुझे क्या दिक्कत है?
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जब मैंने उनसे बात करने से इनकार किया, तो भीड़ आक्रामक होने लगी। सबसे दुखद बात यह थी कि पुलिस मौके पर मौजूद थी, लेकिन कोई ठोस कार्यवाही करने के बजाय वे लौट गए। मेरी बार-बार की कॉल और लिखित शिकायतों के बावजूद, न तो लाउडस्पीकर हटाए गए और न ही किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। यह स्थिति कानून के राज पर एक गंभीर सवाल उठाती है।
क्या भारत में दो तरह के कानून हैं – एक आम जनता के लिए, दूसरा समुदाय विशेष के लिए?
मस्जिदों पर चार-पांच लाउडस्पीकर खुलेआम ध्वनि प्रदूषण के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जब कानून सभी नागरिकों के लिए बराबर है, तो धार्मिक पहचान के आधार पर यह छूट क्यों? क्या इसका मतलब यह है कि कुछ समुदायों के लिए कानून अलग हैं? यह स्थिति न केवल ध्वनि प्रदूषण का मुद्दा है, बल्कि भारत की धर्मनिरपेक्षता और कानून के समक्ष समानता के सिद्धांतों पर भी चोट करती है।
जनता की आवाज़ कब सुनी जाएगी?
ध्वनि प्रदूषण सिर्फ़ एक छोटी सी असुविधा नहीं है। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य, हमारी नींद, हमारे बच्चों की पढ़ाई और हमारे बुजुर्गों की सेहत पर सीधा और गहरा नकारात्मक प्रभाव डालता है। जब सरकारें इस गंभीर मुद्दे पर मूकदर्शक बनी रहें और पुलिस अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हट जाए, तो सवाल उठता है – क्या दिल्ली सराय बन गई है जहाँ कोई भी आकर अपनी मनमानी कर सकता है? क्या हम अपनी ही राजधानी में सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन जीने के हकदार नहीं हैं? क्या दिल्ली सराय बन गई है? क्या हम अपनी ही राजधानी में सुरक्षित नहीं?
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निष्कर्ष: चेतावनी नहीं, जवाबदेही की ज़रूरत
दिल्ली पुलिस और प्रशासन को अब चेतावनी देने का समय नहीं है, बल्कि उनसे जवाबदेही मांगने का समय है। यह केवल ध्वनि प्रदूषण का मामला नहीं है, बल्कि नागरिकों की गरिमा, उनके अधिकारों और कानून के सम्मान का सवाल है। हमें इस अनदेखी के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून का राज स्थापित हो, न कि किसी भीड़ या समुदाय विशेष की मनमानी का। ये सिर्फ एक अरविन्द यादव की बात नही है ना जाने इस देश के कितने शहर में ऐसे अरविन्द यादव होंगे ?
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