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    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15: सामाजिक समानता का प्रहरी, भेदभाव के विरुद्ध ढाल

    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15: सामाजिक समानता का प्रहरी, भेदभाव के विरुद्ध ढाल


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    लेखक: वरिष्ट पत्रकार दीपक कुमार / संपादकीय डेस्क

    भारतीय संविधान, जो भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है, अपने नागरिकों को कई मौलिक अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है अनुच्छेद 15, जो धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद न केवल भारतीय लोकतंत्र की मूल आत्मा 'समानता' को दर्शाता है, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण की दिशा में भारत की अटूट प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है जहाँ हर नागरिक को समान सम्मान और अवसर मिले। वी न्यूज़ 24 (We News 24) के इस विशेष लेख में, हम अनुच्छेद 15 की गहराई में उतरेंगे, इसके विभिन्न पहलुओं को समझेंगे और जानेंगे कि यह हमारे समाज के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है।



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    अनुच्छेद 15: क्या कहता है संविधान?

    संविधान के भाग III (मौलिक अधिकार) के तहत शामिल, अनुच्छेद 15 को समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने और वास्तविक समानता लाने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। इसे छह खंडों में विभाजित किया गया है, जो समय के साथ समाज की बदलती ज़रूरतों और न्यायिक व्याख्याओं के अनुरूप विकसित हुए हैं:


    अनुच्छेद 15(1):- भेदभाव का सामान्य निषेध: यह खंड अनुच्छेद 15 का मूल है। यह स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। यहाँ "केवल" शब्द का महत्व है। इसका अर्थ है कि यदि भेदभाव का आधार उपरोक्त के अलावा कुछ और है, तो वह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन नहीं हो सकता, बशर्ते वह मनमाना न हो।






    अनुच्छेद 15(2):- सार्वजनिक स्थानों पर पहुँच की समानता: यह खंड यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी नागरिक, उपरोक्त आधारों पर, सार्वजनिक दुकानों, होटल, रेस्तरां, सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों, सार्वजनिक कुएं, नल, स्नान घाट, सड़क और सार्वजनिक रिसॉर्ट के अन्य स्थानों तक पहुँच से वंचित नहीं किया जा सकता। यह खंड सामाजिक बहिष्कार को समाप्त करने और सभी नागरिकों को सार्वजनिक सुविधाओं का समान उपयोग सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।


    अनुच्छेद 15(3):- महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान: यह खंड एक महत्वपूर्ण "सकारात्मक भेदभाव" का प्रावधान करता है। यह राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है। इसका उद्देश्य समाज में महिलाओं और बच्चों की विशिष्ट स्थिति और उनकी सुरक्षा और विकास की आवश्यकता को पहचानना है। उदाहरण के लिए, महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण या बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान इसी खंड के तहत किया गया है।



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    अनुच्छेद 15(4):- पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति (1951 में जोड़ा गया): 1951 में पहले संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया यह खंड, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों, (OBC) अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। यह खंड चंपारण मामले (1951) के बाद आया, जहाँ मद्रास सरकार की जाति आधारित नीति को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। यह खंड ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को शिक्षा और रोज़गार में समान अवसर प्रदान करने के लिए आरक्षण जैसे सकारात्मक कार्रवाई उपायों को संवैधानिक मान्यता देता है।


    अनुच्छेद 15(5):- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण (2005 में जोड़ा गया): 2005 में 93वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया यह खंड, राज्य को निजी (अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर) शैक्षिक संस्थानों में भी अनुच्छेद 15(4) में उल्लिखित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों, SC और ST के लिए आरक्षण लागू करने का अधिकार देता है। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा में भी इन वर्गों की पहुँच सुनिश्चित करना है।





    अनुच्छेद 15(6):- आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण (2019 में जोड़ा गया): 2019 में 103वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया यह सबसे नया खंड है। यह राज्य को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% तक आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति देता है। यह खंड सामाजिक न्याय के दायरे को विस्तृत करता है और आर्थिक मानदंडों को भी आरक्षण के आधार के रूप में शामिल करता है।

    अनुच्छेद 15 की व्याख्या और न्यायिक उदाहरण:

    अनुच्छेद 15 की व्याख्या भारतीय न्यायपालिका द्वारा समय-समय पर की गई है, जिससे इसके दायरे और अर्थ को स्पष्ट किया गया है। कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक उदाहरणों ने इस अनुच्छेद के महत्व को और रेखांकित किया है:



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    चंपारण डोराईराजन बनाम मद्रास राज्य (1951): यह मामला अनुच्छेद 15 के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास सरकार के जाति आधारित आरक्षण आदेश को अनुच्छेद 15 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया। इसी फैसले के बाद संविधान में पहला संशोधन किया गया और अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया।



    इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992): मंडल आयोग मामले के रूप में प्रसिद्ध, इस ऐतिहासिक फैसले ने सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया। हालांकि, कोर्ट ने आरक्षण की कुल सीमा 50% तय की और "क्रीमी लेयर" को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने का निर्देश दिया। इस फैसले ने अनुच्छेद 15(4) की व्याख्या को गहराई से प्रभावित किया।


    जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022): इस हालिया फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने 103वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को संवैधानिक रूप से वैध माना, जिससे EWS आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह फैसला दर्शाता है कि संविधान सामाजिक न्याय के बदलते मानदंडों के प्रति संवेदनशील है।

    अनुच्छेद 15 की व्यापकता और जनता की भाषा में महत्व:

    भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहाँ सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक असमानताएं गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं, अनुच्छेद 15 का महत्व अतुलनीय है। यह अनुच्छेद न केवल भेदभाव को समाप्त करने का एक कानूनी उपकरण है, बल्कि यह एक ऐसे समाज के निर्माण का आधार भी है जहाँ हर व्यक्ति को उसकी पृष्ठभूमि के बजाय उसकी योग्यता और क्षमता के आधार पर आंका जाता है। जनता की भाषा में समझें तो, अनुच्छेद 15 हमें यह विश्वास दिलाता है कि:


    आपका धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान आपकी पहचान को सीमित नहीं करेगा। आप एक भारतीय नागरिक हैं और आपको अन्य नागरिकों के समान ही अधिकार और अवसर प्राप्त हैं।

    सार्वजनिक स्थान सभी के लिए खुले हैं। आप किसी भी दुकान, होटल या सार्वजनिक सुविधा तक पहुँच से केवल इसलिए वंचित नहीं किए जा सकते क्योंकि आप किसी विशेष समुदाय से आते हैं।

    महिलाओं और बच्चों को विशेष सुरक्षा और समर्थन प्राप्त है। समाज में उनकी विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के लिए राज्य उनके लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।

    ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे। आरक्षण जैसे उपाय उन लोगों को अवसर प्रदान करने के लिए हैं जिन्हें सदियों से दबाया गया है।

    आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी सहायता मिलेगी। संविधान यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक पिछड़ेपन के कारण कोई भी शिक्षा या रोज़गार के अवसरों से वंचित न रहे।

    अनुच्छेद 15 केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं है; यह भारतीय समाज के नैतिक और सामाजिक ताने-बाने का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि समानता केवल एक आदर्श नहीं है, बल्कि एक मौलिक अधिकार है जिसके लिए हमें लगातार प्रयास करना चाहिए।


    निष्कर्ष:

    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 सामाजिक समानता और न्याय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक सशक्त प्रतीक है। यह एक जीवंत दस्तावेज़ है जो समाज की बदलती ज़रूरतों और चुनौतियों के जवाब में विकसित हुआ है। इसने न केवल भेदभाव को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के उपायों को भी वैध ठहराया है।


    वी न्यूज़ 24 (We News 24) के रूप में, हमारा मानना ​​है कि हर नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 15 के बारे में जागरूक होना चाहिए। यह जागरूकता ही उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा करने और एक समतामूलक समाज के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाएगी। अनुच्छेद 15 सिर्फ एक कानून नहीं है; यह भारत के हर नागरिक के लिए सम्मान, अवसर और न्याय का वादा है।


    (यह लेख वी न्यूज़ 24 (We News 24) द्वारा संविधानिक जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। हम आशा करते हैं कि यह जानकारी आपको भारतीय संविधान के इस महत्वपूर्ण अनुच्छेद को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी।)

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